अयोध्या पर फैसला सुप्रीम कोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों के लिए चैलेंज
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी का नजरिया
अयोध्या मामले को लेकर दिल्ली से लेकर अयोध्या तक हलचल तेज हो गई है। पूरे विवाद में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई खत्म होने के बाद अब अयोध्या के साथ देश के लोगों को भी इंतजार है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन चली सुनवाई के बाद मामले से जुड़े सभी पक्षकार अपने अपने पक्ष में फैसला आने का अनुमान जता रहे है। अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले और दीपोत्सव को लेकर वेबदुनिया ने अयोध्या मामले को पिछले 30 साल से अधिक समय से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी से खास बातचीत की।
नाजुक मोड़ पर अयोध्या का मामला - वेबदुनिया से बातचीत में बीबीसी के पूर्व पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि इस वक्त अयोध्या विवाद बहुत नाजुक मोड़ पर आ पहुंचा है। वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यह हैं कि कैसे इस मामले का कोई सर्वमान्य हल निकाला जाए। अयोध्या का मसला आस्था और लोगों के विश्वास के साथ साथ कानून और पुरातत्व और ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार से जुड़ा हुआ है।
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के सामने चैलेंज है कि वह कैसे इस मामले का ऐसा हल निकाले जिससे की शांति व्यवस्था बने रहने के साथ सभी पक्ष संतुष्ट भी हो जाए। वह कहते हैं कि ये भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस मामले में सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 में जो विशेष शक्तिया दी गई है उसका प्रयोग करते हुए अपने फैसले के लिए कोई बड़ा और नया कदम उठाएगा या नहीं।
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि इतिहास में 500 साल पहले जो गलती की गई थी उसको सुधारने या सही करने के लिए सुप्रीम कोर्ट कोई बड़ा और नया कदम उठाता या रुल ऑफ लॉ के अनुसार ही चलता है यह भी सुप्रीम कोर्ट के सामने एक बड़ा चैलेंज है।
त्रिपाठी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन चली सुनवाई में भी विवादित जमीन के बारे में कोई भी पक्ष अपने हक में कोई भी फ्रूफ रेव्न्यू रिकॉर्ड नहीं पेश कर पाया है। इस बारे में रेव्यून रिकॉर्ड में कई दस्तावेज नहीं पेश कर पाया वह कहते हैं कि चाहे मुस्लिम पक्ष की बात की जाए थे बाबर ने कैसे जमीन पर अपहना क या निर्मोही अखाड़ा के पास भी जमीन के संबंध के कोई दस्तावेज नहीं है, वहीं रामलाल विराजमान जिसको पूजा करने का अधिकार है उसके पास भी वहां पर मूर्ति की स्थापना का कोई रिकॉर्ड नहीं मिल पाया।
इसके साथ ट्रस्ट के संबंध में भी वह कोई रिकॉर्ड नहीं पेश कर पया। रामदत्त त्रिपाठी कहते है कि इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुराने कब्जे के आधार पर तीन पक्षों को जमीन को बांट दिया था और जिसे अंसतुष्ट होकर सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट गए थे। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या रिलीफ देता है।
1992 की अपेक्षा प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती - वेबदुनिया से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या पर आने वाला फैसला प्रशासन के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। 1992 के अयोध्या के अपने अनुभवों पर वह कहते हैं कि 1992 के अपेक्षा इस बार हालात प्रशासन के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।
वह कहते हैं कि अयोध्या सिर्फ कानूनी नहीं करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ मुद्दा है और ऐसे समय सोशल मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। 1992 में कोई संदेश प्रसारित करने के लिए लाउडस्पीकर का साहारा लिया जाता लेकिन आज जिस तरह सोशल मीडिया पर क्लोज ग्रुप के सहारे मैसेज का आदान प्रदान बहुत तेजी से होता है जो भावनाओं को भी भड़का सकते है। वह कहते हैं 1992 की तुलना में आज के समय समाज में सांप्रदायिक डिवाइड बहुत ही बढ़ चुका है। ऐसे में सरकार के सामने चुनौती है कि अयोध्या सहित पूरे देश में शांति औऱ सामाजिक सौहार्द को बनाए रख सके।
आस्था और अस्तित्व से जुड़ा अयोध्या का मामला - वेबदुनिया से बातचीत में रामदत्त त्रिपाठी महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि अयोध्या मामला पूरी तरह आस्था और अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा है। अयोध्या मसले से एक ओर हिंदुओं की आस्था जुड़ी है तो दूसरी ओर अयोध्या का फैसला मुसलमानों के अस्तित्व से एक तरह से जुड़ा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुसलमान समाज की नजर इसलिए भी है क्योंकि उनको लगता है कि अगर अयोध्या में फैसला उनके आगे के भविष्य पर भी असर डालेगा। आज मुसलमानों के मन में कहीं न कहीं डर है कि आगे भी बहुत कुछ छिन जाएगा। रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि अयोध्या मामले पर फैसले का असर अयोध्या के साथ ही पूरे देश विशेषकर कश्मीर पर भी पड़ेगा. इतिहास गवाह हैं कि अयोध्या पर किसी उठापटक पर पूरे देश पर किस तरह प्रभाव पड़ता है।
अब मध्यस्थता की उम्मीद कम - अयोध्या विवाद पर आखिरी दौरे में मध्यस्थता की कोशिशों की खबरों पर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि ऐसी सिर्फ चर्चा है कि सुनवाई के आखिरी दिन मध्यस्थता की लेकर भी चर्चा है। वह कहते हैं कि जो चर्चा है कि उसके मुताबिक मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन पर अपना दावा छोड़ने को तैयार है वहीं मुस्लिम पक्ष चाहता है कि इसके बदले अयोध्या में जो मस्जिदों में वर्तमान में ASI के अधीन है वहां पर उनको नमाज पड़ने की अनुमित दी जाए। इसके साथ अयोध्या में अन्य छोटी और कमजोरी हो चुकी मस्जिदों का जीर्णोद्धार भी हो सकते ।
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि आज के समय उनके विचार से मुस्लिम पक्ष के ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर विहिप और बजरंग दल जैसे संगठन तैयार नहीं होंगे। इस साथ ही अयोध्या केस में राममंदिर की पैरवी कर रहे निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान जैसे पक्ष भी अब मध्यस्थता नहीं सुप्रीमकोर्ट से इस मामले पर अंतिम निर्णय चाहहते है। वहीं दीपावली पर विश्व हिंदू परिषद की विवादित परिसर में दीपों का जलाने की मांग को वह सहीं नहीं ठहराते है।
योगी सरकार को दीपोत्सव मनाना सहीं नहीं - अयोध्या में यूपी सरकार के दीपोत्सव मनाने के कार्यक्रम पर वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि ऐसे संवेदनशील समय सरकार को उत्सव मनाने से बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का फैसले आने से पहले अयोध्या में जिस तरह माहौल है ऐसे में सरकार कोई उत्सव मानने की जरुरत नहीं है।
वह साफ कहते हैं कि ऐसे कार्यक्रम से एक पक्ष का मनोबल बढ़ता है दूसरा पक्ष दबाव और निराशा में आ जाता है। जब सरकार का कोई धर्म नहीं होता है उसके लिए सभी धर्म बराबर होते है उसके लिए सब धर्म बराबर होते है।
रामदत्त त्रिपाठी महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि जब सरकार और प्रशासन एक विशेष समुदाय के साथ खड़ा हुआ नजर आता है तो हालात के बिगड़ने का खतरा खड़ा हो जाता है। अयोध्या में खासकर देखा गया है कि जब प्रशासन निष्पक्ष रहा तो सबुकछ शांति से निपट गया जैसे 1990 का समय और 2010 में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में अयोध्या मामले पर अपना फैसला सुनाया है।