उदयपुर, जो मेवाड़ की शाही परंपरा और गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है, आजकल अपने राजघराने के आंतरिक विवाद के कारण सुर्खियों में है। महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ और लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के बीच संपत्ति और गद्दी को लेकर चल रहे संघर्ष ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। इस विवाद में चित्तौड़गढ़ के राजतिलक समारोह से लेकर उदयपुर सिटी पैलेस में बवाल तक की घटनाएं शामिल हैं।
चित्तौड़गढ़ में राजतिलक: पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ का 10 नवंबर को निधन हो गया था। इस पर नाथद्वारा से भाजपा विधायक व उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ 25 नवंबर को 2024 सुबह चितौड़गढ़ में महेंद्र सिंह मेवाड़ के 77वें उत्तराधिकारी के तौर पर विश्वराजसिंह मेवाड़ का राजतिलक दस्तूर हुआ।
चित्तौड़गढ़ में राजतिलक की परंपरा और विवाद की शुरुआत
1. राजतिलक की परंपरा: मेवाड़ की परंपरा के अनुसार, किसी भी नए महाराणा का चित्तौड़गढ़ किले में राजतिलक होता है। 25 नवंबर 2024 को, विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक समारोह भव्य रूप से आयोजित किया गया।
तिलक की रस्म: सलूंबर रावत देवव्रत सिंह ने तलवार से अंगूठा काटकर अपने रक्त से विश्वराज सिंह का तिलक किया। तोपची खानदान के अब्दुल रहमान ने 21 तोपों की सलामी दी। राजतिलक के दौरान मंत्रोच्चार और शंखनाद की गूंज सुनाई दी। राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह ने गद्दी की पूजा की और यज्ञ में पूर्णाहुति दी। यह परंपरा मेवाड़ की ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है।
2. उदयपुर सिटी पैलेस में बवाल: चित्तौड़गढ़ में तिलक की रस्म के बाद, धूणी माता के दर्शन और एकलिंग जी मंदिर जाने के लिए विश्वराज सिंह ने उदयपुर सिटी पैलेस का रुख किया। लेकिन सिटी पैलेस के गेट पर उन्हें रोक दिया गया।
अरविंद सिंह मेवाड़ और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह ने इस राजतिलक को गैरकानूनी करार दिया। सिटी पैलेस के प्रवेश पर पथराव और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए, जिससे विवाद और गहराता गया।
उल्लेखनीय है कि मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के बारे में परंपरा है कि जब भी किसी नए महाराणा का राजतिलक होता है, उसके बाद उदयपुर के सिटी पैलेस में धूणी माता के दर्शन की परंपरा निभाई जाती है। फिर महाराणा को एकलिंग जी मंदिर में भी दर्शन करने होते हैं।
चित्तौड़गढ़ में राजतिलक की रस्म के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ भी धूणी दर्शन और एकलिंग मंदिर जाने के लिए मेवाड़ सिटी पैलेस पहुंचे थे, लेकिन उन्हें सिटी पैलेस में घुसने से रोक दिया गया।
सिटी पैलेस उदयपुर में घुसने से इसलिए रोका : मेवाड़ राजपरिवार के संपत्ति विवाद के बीच विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक (दस्तूर) कार्यक्रम के बाद एकलिंग नाथ मंदिर व धुणी माता के दर्शनों के लिए उदयपुर में सिटी पैलेस में आने के खिलाफ अरविंद सिंह मेवाड़ के परिवार ने सार्वजनिक नोटिस तक जारी कर रखा था।
विवाद का इतिहास:
1955 से शुरू हुई संपत्ति की लड़ाई: यह विवाद महज वर्तमान गद्दी तक सीमित नहीं है। मेवाड़ राजघराने में संपत्ति विवाद की शुरुआत 1955 में हुई, जब महाराणा भगवंत सिंह ने अपनी पैतृक संपत्तियां बेचनी शुरू की थीं।
महेंद्र सिंह मेवाड़ (विश्वराज के पिता) ने संपत्ति बेचने का विरोध किया और हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्तियों के बंटवारे की मांग की। भगवंत सिंह ने अपनी वसीयत में संपत्ति के अधिकार अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को सौंप दिए।
भगवंत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी वसीयत में छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का एक्ज्यूक्यूटर बना दिया। साथ ही महेंद्र सिंह को ट्रस्ट और संपत्ति से बेदखल कर दिया गया। 3 नवंबर 1984 को भगवंत सिंह का निधन हो गया था। भगवंत सिंह के बेटे महेंद्र सिंह व अरविंद सिंह के परिवार के बीच 1984 से संपत्ति विवाद चल रहा था। अब यही विवाद महेंद्र सिंह बेटे विश्वराज सिंह और अरविंद सिंह के बेटे लक्ष्यराज सिंह तक पहुंच गया।
मेवाड़ की शाही परंपराएं और धूणी दर्शन का महत्व: मेवाड़ के राजवंश में धूणी माता के दर्शन और एकलिंग जी मंदिर की यात्रा को शाही परंपरा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।
परंपरा को मान्यता: मेवाड़ का असली उत्तराधिकारी और गादीपति उसी को माना जाता है, जिसको सलूंबर की चूंडावत तलवार, भींडर के शक्तावत भाले और बड़ी सादड़ी के झाला चंवर इन तीन वस्तुओं का प्रतीकात्मक अधिकार दिया जाता है। यह परंपरा मेवाड़ के उत्तराधिकारी को उनकी ऐतिहासिक विरासत से जोड़ती है।
क्या संपत्ति विवाद खत्म होगा? विश्वराज सिंह का कहना है कि वे पारंपरिक तौर पर मेवाड़ के 77वें महाराणा हैं और गद्दी के हकदार हैं। लक्ष्यराज सिंह और अरविंद सिंह का दावा है कि सिटी पैलेस और मेवाड़ की संपत्तियां एक ट्रस्ट के अंतर्गत आती हैं और राजतिलक की परंपरा का कोई कानूनी आधार नहीं है।
क्या होंगे समाधान के विकल्प:
कानूनी लड़ाई: यह मामला अदालत में जा सकता है।
समझौता: राजपरिवार के सदस्य आपसी समझ से विवाद सुलझा सकते हैं।
सरकार का हस्तक्षेप: राजस्थान सरकार भी इस मामले में मध्यस्थता कर सकती है।
मेवाड़ राजपरिवार का यह विवाद न केवल ऐतिहासिक संपत्तियों की लड़ाई है, बल्कि शाही परंपराओं और परिवार के बीच आपसी मतभेद का प्रतीक भी है। महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच यह विवाद मेवाड़ की समृद्ध विरासत को धूमिल कर सकता है। इसके समाधान के लिए पारिवारिक एकता और परंपरा का सम्मान जरूरी है।