- डिटेंशन कैंप से संजय वर्मा और दीपक असीम
एनआरसी के तहत असम में 19 लाख लोगों को भले ही बांग्लादेशी घुसपैठिया घोषित कर दिया गया हो मगर इन्हें रखने का कोई इंतजाम अभी नहीं है। एक भी डिटेंशन कैंप अभी बनकर तैयार नहीं हुआ है। गोलपारा में जो एक बन रहा है उसे तैयार होने में 6 महीने लगेंगे। तब तक असम की जेलों के एक कोने को डिटेंशन कैंप घोषित कर वहीं पर कथित घुसपैठियों और 'डी वोटरों' को रखा जा रहा है।
ऐसे लोगों की संख्या करीब 1000 है। मगर इनका कोई संबंध एनआरसी से नहीं है। असल बात यह है कि एनआरसी के तहत अभी तक एक भी आदमी को न तो पकड़ा गया है और न ही डिटेंशन सेंटर में रखा गया है। जो लोग यहां जेल में हैं वह अवैध रूप से सीमा पार करते बिना कागजात यहां रहते पकड़ाने वाले लोग हैं। हर सीमावर्ती राज्य में यह सब रूटीन बात है।
ऐसा लगता है कि मीडिया को सुपारी दी गई है कि एनआरसी के नाम पर देश के अल्पसंख्यकों में भय का वातावरण बनाओ। आइए, अब इस पर बात करें कि कितने मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर में डाला जा सकता है। अभी वह नागरिकता संशोधन विधेयक पास नहीं हुआ है जिसके तहत बाहर से आने वाले जैन, सिख, हिंदू और बौद्धों को नागरिकता दी जाए और मुसलमानों को घुसपैठिया करार दे दिया जाए।
फ़र्ज़ कीजिए ऐसा हो गया तो सिर्फ असम में 19 लाख कथित घुसपैठियों में जो 6 लाख मुस्लिम हैं, उन्हें संभालने में किसी भी सरकार के पसीने छूट सकते हैं। देश के अन्य राज्य की जेलों की तरह असम की जेलों में भी पहले ही क्षमता से ज्यादा कैदी हैं। फिर नियमानुसार सभी विदेशी नागरिकों या संदिग्धों को जेल में नहीं डाला जा सकता। उसके लिए डिटेंशन कैंप में रखकर तमाम सुविधाएं देना जरूरी हैं।
गोलपारा में जो कैंप बन रहा है, वह 20 बीघा में फैला हुआ है। इसकी लागत 46 करोड़ आ रही है। पुलिस हाउसिंग डिपार्टमेंट द्वारा इसे बनाया जा रहा है। इसमें 3000 लोगों को रखा जा सकेगा। अब जरा हिसाब लगाइए जो 6 लाख मुस्लिम विदेशी घोषित हुए हैं उनके लिए कितने डिटेंशन सेंटर बनाना पड़ेंगे? हिसाब है 200 सेंटर। क्या इतनी सरकारी जमीन है? करीब 920 करोड़ रुपए डिटेंशन सेंटर बनाने में लगेंगे। इसके बाद हर आदमी पर करीब 10 हज़ार रुपए महीना खर्च आएगा।
नियमों के मुताबिक, इनसे कोई काम नहीं कराया जा सकता। लिहाजा सब बैठकर खाएंगे। इतने सारे लोगों को हिरासत में रखने के लिए कितने सारे कर्मचारियों की नियुक्ति पुलिस विभाग या जेल विभाग को करनी होगी? कोई समझौता बांग्लादेश सरकार से हुआ नहीं है कि वह इन्हें अपने देश में स्वीकार करे। चलिए, यह असम की बात हुई। अगर सारे राज्यों में एनआरसी चलाकर हजारों-लाखों मुसलमानों को विदेशी घोषित किया जाता रहा तो कहां रखेंगे?
फर्ज कीजिए पूरे देश में एक करोड़ या 50 लाख लोग इन्होंने पकड़ लिए तो उनका करेंगे क्या? असम सरकार इस पागलपन को भांप चुकी है और उसने 10 अन्य डिटेंशन सेंटर बनाने का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया है। कुल मिलाकर एक ही यह नमूना बन रहा है जिसमें पता नहीं कोई कभी रखा भी जाएगा या नहीं। बहरहाल गोलपारा डिटेंशन कैंप में बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल भवन भी बनाया जा रहा है।
अगर कोई पूरा परिवार घुसपैठिया साबित होता है तो यहां पूरे परिवार को रखा जा सकेगा। बच्चे औरतों के पास रहेंगे, मर्द अलग सोएंगे। मनोरंजन के लिए भी एक रीक्रिएशन रूम बन रहा है। पानी यहीं जमीन से निकालेंगे। असम के बुद्धिजीवी सवाल उठा रहे हैं कि हमारे टैक्स की कमाई इन पर खर्च करने की क्या आवश्यकता है? इससे तो बेहतर है इन्हें वर्क परमिट देकर छोड़ दिया जाए।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)