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नए भारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का बदलता स्वरूप,दशहरा उत्सव में पहली बार महिला मुख्य अतिथि

विजयादशमी पर RSS के 97वां स्थापना दिवस पर विशेष

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विकास सिंह

, मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022 (17:45 IST)
विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 97 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। 1925 में विजयादशमी  पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। संघ की नींव रखते हुए डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने कहा था कि हम जन्म दिवस मनाने के लिए संघ की स्थापना नहीं कर रहे हैं, हम शक्ति की उपासना के लिए संघ की स्थापना कर रहे हैं। अपने 97 वर्ष की स्थापना दिवस पर नागपुर में होने वाले दशहरा कार्यक्रम में संघ ने पहली बार महिला शक्ति को सम्मान देते हुए पर्वातारोही संतोष यादव को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है। दशहरा उत्सव के कार्यक्रम को सरसंघचालक मोहन भागवत भी संबोधित करेंगे। 
 
इतना ही नहीं मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जल्द ही प्रमुख पदों पर जैसे सह कार्यवाह और सह सर कार्यवाह के पदों की जिम्मेदारी महिलाओं को दी जा सकती है। संघ जो 2025 में अपनी स्थापतना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है तब उसने पूरे देश में शाखा विस्तार का लक्ष्य रखा है। माना जा रहा है कि महिलाओं तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति में शामिल महिलाओं को संघ में लाया जा सकता है। संघ में महिलाओं की बड़े पदों पर नियुक्ति की तैयारी को संघ के बदले स्वरूप से ही जोड़कर देखा जा रहा है।  

आज अपने 97 वर्ष के सफर मे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विश्व के सबसे बड़े स्वयं सेवी संगठन में बदल चुका है। वर्तमान में संघ की शाखाओं की संख्या 58 हजार से अधिक है। इस संख्या को संघ ने अपने शताब्दी वर्ष (2025) तक एक लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। संघ अपने पचास से अधिक आनुषंगिक संगठनों के माध्यम से लगभग दो लाख संख्या सेवा प्रकल्प भी संचालित कर रहा है। संघ का दावा है कि इन सेवा प्रकल्पों की समाजसेवी गतिविधियों से समाज के विभिन्न वर्गों के लाखों जरूरतमंद लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार बदलता रहा है। संघ के लगातार बदलते स्वरूप को देखकर कहा जा सकता है कि आज एक नया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  सक्रिय है। संघ लगातार उस वर्ग को फोकस कर रहा है जो उससे दूर माने जाते रहे है। आज संघ मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है। पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागव का मुस्लिम धर्मगुरु से मिलने के लिए जाना और मदरसे में बच्चों से मिलना इसी की एक कड़ी है। संघ का अनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय मुस्लिम मंच इस दिशा में तेजी से कार्य कर रहा है। संघ एवं उसके विचारक इतिहास की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि भारत में मुस्लिम बाहर से नहीं आए, वे यहीं की हिंदू जातियों से धर्मांतरित होकर बने हैं। 
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संघ विचारक रमेश शर्मा कहते हैं कि संघ मानता आय़ा है कि धर्मों को जो अंतर है वह दो-ढाई हजार वर्षो का है,इससे पहले तो सभी सनातनी थे। इसी तरह मुस्लिमों के पूर्वज भी सनातनी और हिंदू रहे और पंथ और पूजा पद्धति बदलने से पूर्वज नहीं बदलते और अब संभवत संघ प्रमुख ही यही समझने संभवत मस्जिद में गए है और मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मिले है। इससे पहले भी संघ के पदाधिकारी मुस्लिम समाज से मिलते रहते है और संघ की एक इकाई राष्ट्रीय मुस्लिम मंच लगातार काम कर रही है।

दूसरी ओर दलितों को संघ से जोड़ने के लिए समरसता अभियान के तहत संघ लगातार अनेक कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। इसी महीने 9 अक्टूबर को संघ प्रमुख मोहन भागवत का उत्तर प्रदेश के कानपुर में वाल्मीकि समाज के वृहद कार्यक्रम में शामिल होने का कार्यक्रम तय है। वहीं अंबेडकर पर संघ की नई विचारधारा को राजनीतिक नजरिए से भाजपा सरकार की अंबेडकर के प्रतीक से जुड़ने के प्रयासों के रूप में भी आसानी से देखा जा सकता है। 

संघ लगातार समाज के पिछड़े और आदिवासी वर्ग के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में लगा हुआ है। मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में संघ अपने सेवा प्रकल्पों के जरिए आदिवासी समुदाय के बीच लगातार सक्रिया है और उनको संघ से जोड़ने के लिए लगातार प्रेरित कर रहा है। संघ के बढ़ते दायरों के इससे अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि हर वर्ष विजयादशमी पर निकलने वाले संघ के पथ संचलन में इस बार इन्दौर महानगर के चार जिलों के 31 नगरों मे 300 से अधिक स्थानों से पथ संचलन निकलाने की तैयारी है।
 
राष्ट्रीय स्वयं संघ लगातार अपना विस्तार करता जा रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत लगातार विभिन्न मंचों से इस बात को रेखांकित करते आए है कि संघ को समझने के लिए संघ के अंदर आना होगा। संघ का हिस्सा बनकर ही संघ को समझा जा सकता है और अपनी जिज्ञासाओं को शांत किया जा सकता है।

ऐसे में आज आरएसएस का जो स्वरूप हमारे सामने है वह सिर्फ एक संगठन नहीं बल्कि  संघ के उन सैक़डों अनुषांगिक संगठनों का संघ संगठन है जो अपने-अपने ढंग से समाज में सक्रिय होकर अनेक सामाजिक समुदायों को प्रभावित कर रहा हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि आज नए भारत में अपने 97 वर्ष के सफर का पूरा करने वाला संघ का नया स्वरूप सामने है।  
 

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