गगनयान का वर्ष, 2024 होगा अंतरिक्ष अनुसंधान का एक बड़ा वर्ष

राम यादव
गुरुवार, 11 जनवरी 2024 (19:54 IST)
  • 2024 भारत का होगा गगनयान वर्ष
  • यूरोपीय अंतरिक्ष संठन के पास रॉकेट नहीं
  • भारत शुक्र पर भी भेजेगा अपना यान
Space Race in 2024: हर नया वर्ष अंतरिक्ष अनुसंधान के नए प्रयासों और नए कार्यक्रमों का वर्ष होता है। समय के साथ उन देशों की संख्या भी बढ़ रही है, जो अंतरिक्ष की ओर अपने हाथ-पैर बढ़ा रहे हैं।
 
भारत के अंतरिक्ष अधिकरण इसरो ने 2023 में ऐसी धूम मचाई कि सारी दुनिया चकित रह गई। उसने भारत की ओर से रिकॉर्ड 7 मिशन आयोजित किए, जिनमें चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 का ऐतिहासिक अवतरण और भारत की पहली सूर्य वेधशाला, आदित्य-एल1 का सफल प्रक्षेपण सर्वाधिक प्रशंसनीय हैं।
 
दुनिया को विश्वास नहीं हो पा रहा था कि भारत ऐसा अद्भुतकार्य करने में भी सक्षम है। 2024 शुरू होने के साथ ही आदित्य-एल1 पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य के पास की अपने लिए नियत कक्षा में स्थापित भी हो गया। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ का कहना है कि 2023 के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 2024 में कम से कम 12 नए प्रक्षेपण होंगे। नए वर्ष के पहले ही दिन इसरो का PSLV-C58 रॉकेट, एक एक्स-रे पोलारीमीटर उपग्रह और 10 अन्य उपग्रहों को लेकर श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र से रवाना हुआ। पोलारिमीटर उपग्रह एक अंतरिक्ष वेधशाला है। उसकी सहायता से ब्लैक होल और अन्य खगोलीय पिंडों का अध्ययन होगा।
 
गगनयान वर्ष : 2024 को सोमनाथ ने 'गगनयान का वर्ष' बताया। उनका कहना था कि 3 अंतरिक्ष यात्रियों के साथ 2025 में जिस गगनयान को अंतरिक्ष में भेजा जाना है, उसकी अचूक तैयारी के लिए 2024 में कम से कम दो और दौर के परीक्षण होंगे। गगनयान, भारत का पहला समानव अंतरिक्ष मिशन होगा। वह तीन अंतरिक्ष यात्रियों को तीन दिनों के लिए पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर की परिक्रमा कक्षा में ले जाएगा और सुरक्षित वापस भी लाएगा। वास्तविक मानव मिशन से पहले अनेक प्रकार के परीक्षणों द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी प्रणालियां भलीभांति काम कर रही हैं। पहली समनाव उड़ान से पहले मनुष्य-जैसा दिखने वाले 'व्योमित्र' नाम के एक ह्यूमनॉइड रोबोट के साथ एक परीक्षण उड़ान और एक मानव रहित उड़ान भी होगी।
 
गगनयान मिशन से की जा रही अपेक्षाओं में कई महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास शामिल है। उनमें चालक दल को अंतरिक्ष में सुरक्षित ले जाने और वापस लाने के लिए मनुष्य के उपयुक्त एक प्रक्षेप्य वाहन, पृथ्वी जैसा वातावरण प्रदान करने के लिए एक जीवन समर्थन प्रणाली और किसी आपात स्थिति में मिशन त्याग कर जान बचाने के लिए आवश्यक प्रणाली को गिनाया जा सकता है।
 
पिछले साल 7 फरवरी को इसरो ने भारतीय नौसेना के साथ केरल के कोच्चि में भावी चालक दल वाले मॉड्यूल की पुनर्प्राप्ति का अभ्यास किया था। 2024 में लंबे समय से प्रतीक्षित नासा-इसरो के SAR मिशन सहित कई ऐसे मिशन कतार में हैं, जिन्हें अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है।
भारत का पहला शुक्रयान : इसरो के वैज्ञानिक इस साल शुक्र ग्रह (वीनस) के बारे में जानकारी प्रप्त करने के लिए अपना पहला शुक्रयान वहां भेजेंगे। उनकी रुचि मुख्य रूप से शुक्र ग्रह के वायुमंडल की बनावट और उसके ज्वालामुखियों की गतिविधियों को जानने-समझने में है। सौरमंडल के सभी ग्रहों में से शुक्र ग्रह ही पृथ्‍वी के सबसे निकट तक आता है। तब वह पृथ्वी से 3,80,00,000 किलोमीटर दूर होता है। वह पृथ्वी से थोड़ा छोटा है और केवल 243 दिनों में ही सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। वहां जीवन संभव नहीं है, क्योंकि उसकी ऊपरी सतह का औसत तापमान 464 डिग्री सेल्सियस है।
 
भारत भी, पृथ्वी से 400 किलोमीटर ऊपर रहकर उसकी परिक्रमा कर रहे आजकल के अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की तरह का, अपना एक अलग स्टेशन 2035 तक अंतरिक्ष में स्थापित करना चाहता है। 2040 तक किसी भारतीय को चंद्रमा पर भेजने की भी बात हो रही है। भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार अभी से लगभग 8.4 अरब डॉलर के बराबर आंका जा रहा है। अनुमान है कि आने वाले वर्षों में इसमें 6 से 8 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि होगी। पिछले 20 वर्षों में भारत द्वारा लॉन्च किए गए विदेशी और स्वदेशी उपग्रहों की संख्या क्रमशः 429 और 10 थी। यानी, भारत बड़ी संख्या में विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज कर अच्छी-ख़ासी कमाई कर रहा है।
 
यूरोपीय अंतरिक्ष संठन के पास रॉकेट नहीं : नए वर्ष के आगमन के साथ ही दुनिया के अन्य अंतरिक्ष संगठनों ने भी अपने-अपने कार्यक्रमों की झलक दी है। यूरोपीय देशों के अंतरिक्ष संगठन ESA को आशा है कि इस साल वह अपने नए वाहक रॉकेट अरियान-6 को सेवारत कर पाएगा। यह काम वास्तव में 4 साल पहले ही हो जाना चाहिए था, पर कोविड महामारी के कारण विलंब होता गया।
 
'एसा' के पास इस समय ऐसा कोई रॉकेट नहीं है, जो भारी चीज़ों को अंतरिक्ष में भेज सके। अरियान-5 वाली पीढ़ी का उसका अंतिम वाहक रॉकेट जुलाई 2023 में खप गया। अमेरिकी अरबपति एलन मस्क की कंपनी 'स्पेस एक्स' के रॉकेट इस बीच इतने सस्ते पड़ते हैं कि यूरोप वालों के सारे समीकरण गड़बड़ाने लगे हैं। तब भी उन्हें आशा है कि उनका अपना अरियान-6 रॉकेट भविष्य के लिए एक अच्छा विकल्प सिद्ध होगा। 
  
अमेरिका चंद्रमा पर पुनः पहुचने के अपने नये मिशन 'आर्तेमिस' के अंतर्गत, नवंबर 2024 में आर्तेमिस-2 का प्रक्षेपण करेगा। तीन पुरुष और एक महिला अंतरिक्षयात्री 'ओरायन' नाम के यान में बैठ कर चंद्रमा तक जायेंगे, उसके फेरे लगाएंगे, पर वहां उतरे बिना वापस आ जायेंगे। यह देखते हुए कि यह उड़ान कितनी समस्या-मुक्त या समस्या-पूर्ण रही, चारों चंद्रयात्री 8 से 21 दिनों के भीतर पृथ्वी पर वापस आ जायेंगे।
 
यदि सब कुछ ठीक-ठाक चला, तो पांच दशक बाद, संभवतः 2025 में एक बार फिर, अमेरिकी चंद्रयात्री चंद्रमा पर विचरण करते दिखेंगे। चंद्रमा पर पहुंचने के पुराने 'अपोलो' मिशन के अंतर्गत वहां गए चंद्रयात्री, चंद्रमा की भूमध्यरेखा के निकट उतरे थे। इस बार नासा ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 13 ऐसे स्थानों की पहचान की है, जहां अमेरिकी चंद्रयात्री अपने पैर रखेंगे।
 
नासा चंद्रमा पर पानी तलाशेगा :  नासा ने चंद्रमा पर विचरण करने के लिए एक नया रोवर बनाया है— वाइपर (VIPER)। उसे 2024 के अंत में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरकर नोबाइल (Nobile) नाम के क्रेटर की खोजबीन करनी होगी। समझा जाता है कि यह क्रेटर किसी दूसरे आकाशीय पिंड के साथ हुई टक्कर से बना है।

शून्य से भी 200 डिग्री सेल्सियस कम तापमान वाले इस क्षेत्र में नासा की दिलचस्पी, चंद्रमा की ऊपरी सतह पर ही नहीं, सतह के नीचे भी जमकर बर्फ बन गए पानी का पता लगाने में है। जो भी जानकारियां मिलेंगी, उनके आधार पर चंद्रमा पर मिल सकने के संसाधनों वाली जगहों का एक नक्शा तैयार किया जाएगा, ताकि चंद्रमा पर के दीर्घकालिक मिशनों तथा वहां कोई आधार शिविर बनाने के लिए इस नक्शे का उपयोग हो सके।
 
2024 के अंत में नासा हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति (Jupeter) के एक उपग्रह 'यूरोपा' की खोज-ख़बर लेने के लिए 'यूरोपा क्लिपर' नाम का एक अंतरिक्षयान रवाना करेगा। यूरोपा ठोस बर्फ की एक मोटी परत से ढका है। अनुमान है कि बर्फ की इस परत के नीचे एक महासागर छिपा हुआ है, जिस में सिद्धांततः जीवन का अस्तित्व भी हो सकता है। बृहस्पति बहुत बड़ी मात्रा में रोडियोधर्मी विकिरण उत्सर्जित करता है। डर है कि यह विकिरण 'यूरोपा क्लिपर' के लिए गभीर चुनौती बन सकता है। इसलिए उसके बहुत संवेदनशील उपकरणों को विकिरण से बचाव का अतिरिक्त प्रतिरक्षण दिया गया है।
 
'यूरोपा क्लिपर' यूरोपा के बहुत निकट से उसके 45 फेरे लगाते हुए उसे अच्छी तरह स्कैन करेगा और स्कैन के विवरण पृथ्वी पर भेजेगा। 45 फेरों के बाद 'यूरोपा क्लिपर' का सारा ईंधन या तो खप चुका होगा या बृहस्पति के प्रचंड विकिरण ने ईंधन खत्म होने से पहले ही 'यूरोपा क्लिपर' को नष्ट कर दिया होगा।   
 
चीन का चांग 'ए6 : इस साल चीन भी एक बार फिर चंद्रमा पर अपना एक अवतरण यान भेजेगा। चांग'ए6 (Chang'e6) नाम का उसका यान चंद्रमा पर उतरकर वहां की ज़मीन के दो किलो के बराबर नमूने एकत्रित करेगा और उन्हें लेकर दो महीने बाद पृथ्वी पर वापस लौट आएगा। वैज्ञानिक इन नमूनों के विश्लेषण के आधार पर जानने का प्रयास करेंगे कि चंद्रमा के बनने का, बल्कि पूरे सौरमंडल के बनने का भला इतिहास क्या है? इस इतिहास के बारे में वैसे तो बहुत-सी अटकलें लगाई जाती हैं, पर बहुत से प्रश्न अनुत्तरित भी रह जाते हैं। 
 
जापान की पहल : जापान भी कुछ समय से अंतरिक्ष की खोज में बहुत दिलचस्पी लेने लगा है। जापानी अंतरिक्ष एजेंसी 'जाक्सा' (JAXA) सितंबर 2024 में मंगल ग्रह के उपग्रह फ़ोबोस के पास अपना एक अन्वेषण यान भेजेगी। तीन वर्षों की उड़ान के बाद जापानी यान जब फ़ोबोस के पास पहुंचेगा, तब वह क़रीब 100 मीटर की ऊंचाई पर से उस पर एक रोवर उतारेगा।

केवल 22 किलोमीटर व्यास का फ़ोबस हमारे चंद्रमा से 160 गुना छोटा है। उसकी गुरुत्कर्षण शक्ति इतनी क्षीण है कि वहां हर चीज़ पृथ्वी पर अपने वज़न के केवल एक हज़ारवें हिस्से के बराबर रह जाएगी। इस कारण उस पर उतारे गए रोवर को बहुत सावधानी के साथ इतनी धीमी गति से चलना-फिरना होगा कि वह कहीं अंतरिक्ष की गहराइयों में न लुढ़क जाए। 
 
जापानी रोवर, फ़ोबोस की ऊपरी सतह की बनावट के नमूने एकत्रित करेगा। इन नमूनों को बाद में पृथ्वी पर लाने का प्रयास होगा। ऐसा यदि हो पाया, तो यह अपने ढंग की अब तक की पहली सफलता होगी। मंगल ग्रह पर अमेरिकी रोवरों ने वहां की ज़मीन के जो नमूने आदि लिये हैं, उनका अब तक रोवरों के उपकरणों ने ही अध्ययन-विश्लेषण किया है। इन नमूनों को अभी तक पृथ्वी पर नहीं लाया जा सका है।

अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन नासा और यूरोपीय संगठन एसा मंगल ग्रह पर के नमूनों को 2033 से पहले पृथ्वी पर ला सकने की संभावना नहीं देख रहे हैं। उन नमूनों को मंगल पर जा कर उठाने और वहां से पृथ्वी पर लाने के लिए जैसा यान चाहिये, वह यान ही अभी तक नहीं बन पाया है। उसे यूरोपीय अंतरिक्ष संगठन एसा (ESA) को बनाना है।Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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