नई दिल्ली। समलैगिंक शादी को मान्यता को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। समलैगिंक शादी को मान्यता देने की मांग को लेकर होने वाली सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने एक बार फिर हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है।
केंद्र ने सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाले संविधान पीठ से केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि समलैंगिक शादी एक शहरी संभ्रांत अवधारणा है, जो देश के सामाजिक लोकाचार से बहुत दूर है। बता दें कि इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया में भी जमकर बहस चल रही है। फेसबुक से लेकर ट्विटर और इंस्टाग्राम तक इस बारे में चर्चा की जा रही है। देशभर के एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं। ऐसे में सरकार का कोर्ट का जो जवाब आया है कि कम्युनिटी को निराश करने वाला है।
सरकार ने अपने जवाब में कहा कि समलैंगिक विवाह कुछ शहरी लोगों की सोच है, कोर्ट को इसमें नहीं पडना चाहिए, यह संसद का काम है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने हलफनामा में कहा है, विषम लैंगिक संघ से परे विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है। केवल संसद ही व्यापक विचारों और सभी ग्रामीण, अर्द्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी की आवाज, धार्मिक संप्रदायों के विचारों और व्यक्तिगत कानूनों के साथ-साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है। अदालत इस मामले में फैसला नहीं ले सकती
इसके अलावा केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा है कि मामले की सुनवाई से पहले याचिकाओं पर फैसला कर सकते हैं कि इन्हें सुना जा सकता है या नहीं? केंद्र ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज एक अर्बन एलीटिस्ट कॉन्सेप्ट है, जिसका देश के सामाजिक लोकाचार से कोई लेना-देना नहीं है। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता को लेकर केंद्र ने कहा है कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसला करने का मुद्दा नहीं है और समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।
बता दें कि जमीयत उलेमा-ए हिंद ने भी इन याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि यह परिवार व्यवस्था पर हमला है और सभी पर्सनल लॉ का पूरी तरह से उल्लंघन है। शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं में हस्तक्षेप की मांग करते हुए संगठन ने हिंदू परंपराओं का भी हवाला देते हुए कहा है कि हिंदुओं के बीच विवाह का उद्देश्य केवल शारीरिक सुख या संतानोत्पत्ति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति है। हालांकि, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) ने याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि समलैंगिक पारिवारिक इकाइयां सामान्य हैं।
उच्चतम न्यायालय की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ देश में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दिये जाने की मांग संबंधी याचिकाओं पर मंगलवार से सुनवाई करेगी. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस. के कौल, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ 18 अप्रैल को उन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी। इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।