नई दिल्ली। दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने में कुछ ही महीने शेष हैं और ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के अचानक निधन से दिल्ली कांग्रेस के समक्ष एक ऐसे नेता की तलाश करने की चुनौती उत्पन्न हो गई है, जो उनकी जिम्मेदारी संभाल सके।
दीक्षित के निधन के बाद अब दिल्ली कांग्रेस इकाई के सामने दो चुनौतियां हैं- नया नेता तलाशना और पार्टी में एकजुटता कायम करना। नए नेता को दिल्ली इकाई को एकजुट करने की चुनौती से भी जूझना पड़ सकता है।
एक नेता ने कहा कि नेताओं की मौजूदा जमात में कोई भी दीक्षित की लोकप्रियता से मेल नहीं खाता है। 3 कार्यकारी अध्यक्षों हारून युसूफ, देवेन्द्र यादव और राकेश लिलोठिया क्रमश: वरिष्ठ नेताओं जेपी अग्रवाल, एके वालिया और सुभाष चोपड़ा से कनिष्ठ हैं। नेता ने कहा कि दीक्षित के अचानक निधन से दिल्ली कांग्रेस बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जो इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी।
वर्ष 2013 के बाद से हर प्रमुख चुनाव में तीसरे स्थान पर रह रही कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहकर आम आदमी पार्टी कुछ हद तक किनारे करने में सफल रही थी और उसे कुछ उम्मीद दिखाई दी थी। कांग्रेस 5 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी।
दीक्षित अगले वर्ष जनवरी-फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही थीं। अब पार्टी को चुनाव से पहले संगठन का नेतृत्व करने के लिए एक नए नेता की तलाश करनी होगी। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व प्रमुख अजय माकन ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे दिया था। (भाषा)