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भाजपा अध्यक्ष के लिए संजय जोशी के नाम के मायने, क्या केन्द्र सरकार पर शिकंजा कसना चाहता है संघ?

हमें फॉलो करें Sanjay Joshi
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वृजेन्द्रसिंह झाला

Sanjay Joshi name for post of BJP President: लंबे समय राजनीतिक वनवास भोग रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक संजय जोशी का नाम अचानक भाजपा अध्यक्ष पद के लिए उभरकर आया है। यह एक संयोग है या फिर किसी 'खास रणनीति' का हिस्सा, इस पर फिलहाल अटकलें ही चल रही हैं। लेकिन, भाजपा की वर्तमान राजनीति में यह नाम निश्चित ही चौंकाने वाला है। ऐसा नहीं है कि जोशी इस पद के योग्य नहीं है, उनकी गिनती कुशल संगठकों में होती हैं। यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि वर्तमान भाजपा में जिन नेताओं का दबदबा है, जोशी की उनके साथ बिलकुल भी पटरी नहीं बैठती। 
 
दरअसल, जगत प्रकाश नड्‍डा का भाजपा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल खत्म हो चुका है। वे एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। पार्टी की एक व्यक्ति एक पद की नीति में भी फिट नहीं बैठते। क्योंकि उन्हें केन्द्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण पद दिया जा चुका है। ऐसे में अध्यक्ष के लिए नए नामों की चर्चा है। इन्हीं में एक नाम संजय जोशी का भी है। जोशी के बारे में कभी उनके सहयोगी रहे गोरधन झड़ाफिया ने कहा था- 'अपार क्षमता वाले एक मूक कार्यकर्ता हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय हैं'।  ALSO READ: 25 सितंबर: भाजपा के पितृपुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती, जानें 5 अनसुनी बातें
 
भाजपा को बहुत अच्छे से समझते हैं जोशी : मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री वाले 62 वर्षीय संजय जोशी भाजपा के 'मैकेनिज्म' को भी बखूबी समझते हैं। वे संघ के पूर्वकालिक प्रचारक हैं। 1989-90 में संजय जोशी को आरएसएस ने संगठन को मजबूत करने के लिए गुजरात भेजा था। उस समय उन्हें संगठन मंत्री का पद दिया गया था, जबकि नरेन्द्र मोदी संगठन मंत्री के रूप पहले से ही काम कर रहे थे। दोनों ने ही मिलकर पार्टी को मजबूत किया और 1995 में भाजपा ने पहली बार गुजरात में सरकार बनाई। 
 
उस समय मुख्‍यमंत्री पद के लिए मोदी और जोशी का नाम भी चला था, लेकिन दावेदारी में दोनों पिछड़ गए। तब केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला के नाम मुख्‍यमंत्री के दावेदार के रूप में उभरे थे। मोदी और जोशी ने केशुभाई का साथ दिया था। लेकिन, दो की लड़ाई में तीसरे को फायदा मिला और सुरेश भाई मेहता मुख्‍यमंत्री पद पाने में सफल रहे। इसी बीच मोदी को दिल्ली भेज दिया गया और जोशी संगठन महामंत्री बन गए। इसके साथ ही गुजरात में उनका दबदबा भी बढ़ गया।  ALSO READ: जेपी नड्डा के बाद भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन, 8 दावेदार जिनके हाथों में आ सकती है कमान?
 
...और दोनों के बीच दूरियां बढ़ीं : गुजरात में 1998 में भाजपा एक बार फिर सत्ता में आई। कहा जाता है कि मोदी उस समय गुजरात आना चाहते थे, लेकिन जोशी के कारण ऐसा नहीं हो सका। इसी के बाद दोनों के बीच की दूरियां बढ़ गईं। केशुभाई फिर राज्य के सीएम बने। 2001 में राजनीतिक समीकरण बदले और मोदी की गुजरात में वापसी हुई और वे मुख्‍यमंत्री पद पर आसीन हो गए।

कहा जाता है कि मोदी ने गुजरात लौटने के बाद संजय जोशी को दिल्ली रवाना करवा दिया। हालांकि उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। 2001 से 2005 के कार्यकाल में जोशी ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, जम्मू और कश्मीर, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और मध्य प्रदेश में भाजपा को मजबूत करने का काम किया। सीडी विवाद के बाद जोशी नैपथ्य में चले गए। ALSO READ: भाजपा चौथी बार सरकार बनाए इसकी कोई गारंटी नहीं, नितिन गडकरी ने क्यों दिया ऐसा बयान
 
संघ के करीब हैं जोशी : जोशी और मोदी के संबंधों की खटास किसी से भी छिपी नहीं है, लेकिन जोशी कई मौकों पर मोदी की तारीफ कर चुके हैं। नागपुर में जन्मे संजय जोशी संघ के काफी करीब हैं। वे पूर्णकालिक प्रचारक के तौर पर संघ में सक्रिय भी हैं। जेपी नड्‍डा के बयान कि भाजपा अब बड़ी हो गई है, उसे संघ की जरूरत नहीं है, इस बयान को लेकर संघ में नाराजगी है। संघ भी चाहता है कि अध्यक्ष पद पर संघ के प्रति समर्पित कोई व्यक्ति बैठे। यदि जोशी इस पद पर बैठते हैं तो संघ सरकार पर भी शिकंजा कस पाएगा। हालांकि यह भी सही है कि जोशी की भाजपा में वापसी आसान नहीं होगी। 

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