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दलित-मुस्लिम गठजोड़ के लिए कराई गई थी सहारनपुर में जातीय हिंसा!

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सहारनपुर , शुक्रवार, 26 मई 2017 (12:56 IST)
सहारनपुर की जातीय हिंसा को लेकर बड़ी साजिश होने की आाशंका जाहिर की जा रही है। इस मामले में सहारनपुर भेजे गए प्रदेश के आला अफसरों और खुफिया विभाग की शासन को भेजी गई रिपोर्ट में चौंकाने तथ्य उजागर हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में जातीय हिंसा की वजह राजनीतिक षड्यंत्र को बताया गया है।
 
रिपोर्ट के अनुसार, 20 अप्रैल को सड़क दूधली में हुई जातीय हिंसा के बाद हालात शांत थे, लेकिन पांच मई को थाना बड़गांव क्षेत्र के शब्बीरपुर-महेशपुर में हुआ बवाल राजनीतिक षड्यंत्र की देन है। इसे अंजाम देने के लिए विभिन्न दलों के छह नेताओं के इशारे पर बड़ी संख्या में बाहरी युवक भी बुलाए गए थे। इससे पहले 26 जुलाई 2014 को सहारनपुर में हुए दंगे को पूर्व कमिश्नर भूपेन्द्र चौधरी की जांच रिपोर्ट में सुनियोजित बताया गया था। 
 
साजिश के तहत दंगे के लिए स्थान का चयन, दंगा फैलाने में बाहरी उपद्रवियों का प्रयोग, आगजनी-पथराव-फायरिंग और सोशल मीडिया का इस्तेमाल आदि सभी तरह के प्रयोग किए गए। सूत्रों के मुताबिक, जांच रिपोर्ट में इसी का हवाला दिया गया है कि यही प्रयोग पिछले 34 दिन में पांच बार हुई जातीय हिंसा में किया गया। 
 
इस मामले में भीम आर्मी का सबसे बड़ा रोल सामने आया है जिसे विभिन्न दलों के छह नेताओं ने आर्थिक मदद की थी। जिसमें मायावती के भाई आनंद कुमार का हाथ भी बताया जा रहा है साथ ही एक अल्पसंख्यक कद्दावर नेता के भी इसमें शामिल होने की बात कही जा रही है।
 
विभिन्न जनपदों से सहारनपुर में आए 18 अपर पुलिस अधीक्षकों, एसटीएफ व एटीएस ने इन नेताओं और उपद्रवियों की फाइल तैयार की है। रिपोर्ट के मुताबिक, षड्यंत्रकारियों का मकसद साफ था कि हिन्दू समाज के दलितों को भड़का कर उन्हें उग्र बनाए रखा जाए, ताकि भविष्य में दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत किया जा सके।
 
आगामी स्थानीय निकाय व लोकसभा चुनाव में दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने के लिए बीते 34 दिन में पांच बार जातीय हिंसा की साजिश रची गई। इसमें घटनास्थल, हिंसा का प्रारूप, समय-सीमा और पात्र, सब कुछ तय था। सहारनपुर हिंसा की जांच के लिए प्रमुख सचिव गृह एमपी मिश्रा की अध्यक्षता में गठित चार सदस्यीय जांच दल एडीजी कानून-व्यवस्था आदित्य मिश्रा, आईजी एसटीएफ अमिताभ यश, डीआइजी सुरक्षा विजय भूषण व खुफिया विभाग द्वारा शासन को भेजी गई प्राथमिक रिपोर्ट में कई सनसनीखेज पहलू उभरकर सामने आए हैं।
 
उत्तरप्रदेश के प्रमुख गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्रा ने गुरुवार (25 मई) को कहा कि सहारनपुर में हुआ बवाल यहां के आपसी ताने-बाने का नहीं बल्कि किसी सुनियोजित षड्यंत्र का परिणाम है, जो बहुत जल्दी ही सामने आ जाएगा। मिश्रा ने यह बात यहां सर्किट हाउस में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही। सहारनपुर के शब्बीरपुर की घटना को लेकर हुई हिंसा को रोकने के लिए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां के हालात को देखते हुए प्रमुख ग्रह सचिव मणिप्रसाद मिश्रा को सहारनपुर भेजा है। 
 
उत्तर प्रदेश के गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्र मानते हैं कि ये संगठित हमलों की सुनियोजित साजिश है. मिश्र के मुताबिक पुलिस को इस बाबत काफी सुराग और सबूत मिले हैं। इस सिलसिले में ज्यादा जानकारियां जुटाई जा रही हैं। मिश्र का दावा है कि जल्द ही पूरी साजिश और उसकी पीछे की ताकतें बेनकाब होंगी। गृह सचिव ने संकेत दिए कि सरकार हिंसा की जांच सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपने के मूड में नहीं है। प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (लॉ एंड ऑर्डर) आदित्य मिश्रा भी गृह सचिव के सुर में सुर मिलाते हैं। उनका कहना है कि हिंसा के बाद गिरफ्तार करीब 50 लोगों ने इस बारे में कई अहम जानकारियां दी हैं। आरोपियों की कॉल डिटेल्स खंगाली जा रही हैं और सच जल्द ही सामने आएगा।
 
गुरिल्ला स्टाइल से हमले की आशंका :
मीडिया रिपोर्ट अनुसार सहारनपुर में अब तक हिंसा की वारदातों में हमलावर अचानक प्रकट होते हैं, खून-खराबा करते हैं और कुछ इस तरह लापता होते हैं कि पुलिस प्रशासन को भनक तक नहीं लग पाती। इसे गुरिल्ला स्टाइल में हमला करना माना जा रहा है। ज्यादातर हमलों को ऐसी जगह अंजाम दिया गया है जहां पुलिस की मौजूदगी कम है और सनसनी फैलने की आशंका ज्यादा। सहारनपुर के सांसद राघव लखनपाल ने भी सहारनपुर हिंसा में गुरिल्ला तकनीक की आशंका से इनकार नहीं किया। उन्हें उम्मीद है कि निष्पक्ष जांच में सच सामने आएगा।
 
भीम आर्मी की कारगुजारी : भीम आर्मी के नेता चन्द्रशेखर आजाद की गिरफ्तारी के संबंध में मिश्रा ने कहा कि बहुत जल्दी चन्द्रशेखर को गिरफ्तार किया जाएगा। नौ मई को सहारनपुर में आठ स्थानों पर हिंसा मात्र गांधी पार्क में धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति न देने पर हुई। यदि हिंसा होती तो गांधी पार्क या किसी एक स्थान पर हो सकती थी, लेकिन आठ स्थानों पर हिंसा का होना इस बात का प्रमाण है कि यह सब कुछ सुनियोजित था। इस हिंसा के लिए पुलिस जांच में भीम आर्मी का नाम स्पष्ट उजागर हुआ। इस संगठन के संस्थापक चन्द्रशेखर के विरुद्ध गंभीर धाराओं में दो मुकदमे भी दर्ज हुए हैं।
 
मुकदमे के बाद पुलिस रिकार्ड के अनुसार, 10 से 12 मई के बीच तीन बार रात को चंद्रशेखर की गिरफ्तारी के लिए उसके छुटमलपुर स्थित आवास पर पुलिस ने दबिश दी, लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका। 21 मई को दिल्ली में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन में भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर के शामिल होने की खबर जगजाहिर थी, लेकिन दो सियासी नेताओं ने पुलिस व प्रशासनिक अफसरों को खौफ दिखाया कि यदि चंद्रशेखर गिरफ्तार हुआ तो इसका संदेश गलत जाएगा। इसके चलते दिल्ली गई पुलिस टीम ने उसकी गिरफ्तारी नहीं की। नतीजतन, बसपा अध्यक्ष मायावती के दौरे के दौरान 23 मई को बड़गांव थानाक्षेत्र में फिर से जातीय हिसा भड़क गई। रिपोर्ट के मुताबिक, एक सप्ताह के भीतर षड्यंत्रकारी नेताओं में से कुछ पुलिस गिरफ्त में होंगे। चंद्रशेखर की गिरफ्तारी के लिए भी पांच टीमें लगी हैं।  

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