आपदा के 8 साल, केदारनाथ क्षेत्र में जलप्रलय से आम थे तबाही के मंजर...

निष्ठा पांडे
बुधवार, 16 जून 2021 (13:08 IST)
देहरादून। 16 जून 2013 के दिन केदारनाथ क्षेत्र में आई जलप्रलय देश के हजारों लोगों के जीवन को भी लील गई। ठीक 8 साल पहले आज ही के दिन पेश आए इस हादसे से तत्कालीन कांग्रेस सरकार के नेतृत्व को भी बदलने को मजबूर होना पड़ा और विजय बहुगुणा के स्थान पर हरीश रावत मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारपुरी में पुनर्निर्माण की शुरुआत कर 2 साल में केदारनाथ यात्रा को ढर्रे पर लाने का काम कर दिखाया, जो पुनर्निर्माण मौजूदा भाजपा सरकार द्वारा भी जारी है।

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आपदा में केदारनाथ क्षेत्र को इतनी क्षति पहुंची कि तबाह हुई केदारपुरी को संवारने की कोशिशें अब तक भी लगातार जारी हैं। तब की तबाही से एकमात्र मंदिर ही वहां बच सका। केदार प्रलय में 2,241 होटल, धर्मशाला एवं अन्य भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे। पुलिसकर्मियों ने अपनी जान पर खेलकर करीब 30 हजार लोगों को बचाया था। यात्रा मार्ग एवं केदार घाटी में फंसे 90 हजार से अधिक लोगों को सेना द्वारा सुरक्षित बचाया गया। जलप्रलय का असर अलग-अलग स्थानों पर भी पड़ा जिसमें 991 लोगों की जान गई थी। 11 हजार से ज्यादा मवेशी पानी में बह गए थे। 1309 हैक्टेयर भूमि बह गई। 9 राष्ट्रीय मार्ग एवं 35 स्टेट हाईवे क्षतिग्रस्त हो गए। करीब 2,385 सड़कों को बड़ा नुकसान हुआ। 85 मोटर पुल एवं 172 छोटे बड़े पुल प्रलय में बह गए।

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केदार पुनर्निर्माण के लिए मनमोहन की तत्कालीन केंद्र सरकार ने जी भरकर पैसे मंजूर किए। प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण पर 2,700 करोड़ रुपए खर्च हुए। पुनर्निर्माण की ये शुरुआत मौजूदा भाजपा सरकार में भी जारी है। केदार बाबा के भक्त होने के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी दिलचस्पी यहां के कामों में लगातार बनी रही। अब धाम में सभी तरह के निर्माण कार्य श्री केदारनाथ उत्थान चैरिटी ट्रस्ट के माध्यम से हो रहे हैं। कुल मिलाकर केदारपुरी में पुनर्निर्माण के मरहम से आपदा के जख्मों को मिटाने की कोशिशें लगातार जारी हैं।

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लोगों को यह शिकायत भी है कि धाम में तो निर्माण कार्यों में तेजी नजर आ रही है लेकिन 2013 आपदा की शिकार केदार घाटी में राहत और पुनर्निर्माण कार्यों की रफ्तार में वैसी तेजी नजर नहीं आ रही। लोगों के दिलों में बैठे जलप्रलय के डर ने केदार घाटी के कई परिवारों को मैदान के इलाकों में पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया। वहीं जो लोग आज भी यहां पर निवास कर रहे हैं, उनके मन में आपदा के जख्म अब भी हरे हैं। आज भी जब आसमान से बादल बरसते हैं तो खौफनाक यादों के रूप में त्रासदी के ये जख्म हरे हो जाते हैं।

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