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वैज्ञानिकों का दावा, मानव निर्मित है रामसेतु

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, मंगलवार, 12 दिसंबर 2017 (19:12 IST)
नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने दावा किया है भारत और श्रीलंका के बीच बना पुल मानव निर्मित है। उल्लेखनीय है कि भारतीय धर्मग्रंथों और जनमानस में इस पुल को रामसेतु के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि लंका जाने के लिए राम के नेतृत्व में इस पुल का निर्माण किया गया था। 
 
एनसिएंट लैंड ब्रिज नाम के एक प्रोमो में दावा किया गया है कि रामसेतु के नाम से जाना जाने वाला यह पुल मानव निर्मित है। यह प्रोमो बुधवार की शाम साढ़े सात बजे डिस्कवरी कम्युनिशेन के साइंस चैनल पर अमेरिका में दिखाया जाएगा।
 
अमेरिकन भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक, भारत में रामेश्वरम के नजदीक पामबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लंबी बनी पत्थरों की यह श्रृंखला मानव निर्मित है। इस प्रोमो को अब तक ग्यारह लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। इस वीडियो को साइंस चैनल ने करीब 17 घंटे पर अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया है।
अमेरिकी भू-वैज्ञानिकों के निष्कर्ष के मुताबिक, नासा की तरफ से ली गई तस्वीर प्राकृतिक है। वैज्ञानिकों ने अपने विश्लेषण में यह पाया कि 30 मील लंबी यह श्रृंखला मानव निर्मित है। यह भी पता चला कि जिस सैंड पर यह पत्थर रखा हुआ है यह कहीं दूर जगह से यहां पर लाया गया है। उनके मुताबिक, यहां पर लाया गए पत्थर करीब 7 हजार साल पुराने हैं। 
 
इसी बीच, सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी इस वीडियो को जय श्रीराम कैप्शन के साथ री-ट्वीट किया है। हालांकि यह सेतु आज भी रहस्य बना हुआ है, लेकिन वैज्ञानिकों के इस दावे कि यह पुल मानव निर्मित है, यह मुद्दा एक बार फिर गरमा जाएगा। 
 
उल्लेखनीय है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में रामसेतु का मुद्दा तेजी से उठा था, जब तत्कालीन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया था कि जब राम का ही अस्तित्व नहीं है तो रामसेतु कैसे हो सकता है। 
 
धर्म ग्रंथों में रामसेतु : वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब श्रीराम ने सीता को रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्‍वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था। इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे। वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया।
 
 
डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्रीराम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद श्रीराम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की।
 
नल सेतु : वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्नपूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।- (वाल्मीक रामायण-6/22/76)।
 
 
वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्र तट पर ले आए थे। कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/62) 
 
गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है। 
 
अन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।

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