नई दिल्ली। 2 इंजन वाले राफेल लड़ाकू विमान के सौदे पर विपक्ष द्वारा घेरे जाने के बाद सरकार पसोपेश में दिखाई दे रही है और इसी के चलते उसने पिछले 2 वर्षों से अटके 1 इंजन वाले विमान के सौदे की फाइलों को रद्दी की टोकरी में डाल वायुसेना से अपनी जरूरतों के बारे में नए सिरे से प्रस्ताव भेजने को कहा है।
सरकार के इस कदम से लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रही वायुसेना की चुनौतियां तो बढ़ेंगी ही, रक्षा तैयारियों को लेकर उसकी नीति पर भी सवालिया निशान खड़े होंगे। वायुसेना के लड़ाकू विमान बेड़े में 42 स्वीकृत स्क्वॉड्रन की तुलना में अभी केवल 31 स्क्वॉड्रन हैं।
रूस से खरीदे गए मिग-21 और मिग-27 विमानों के 10 स्क्वॉड्रन को 2022 तक सेवा से बाहर किया जाना है जिससे लड़ाकू विमानों के स्क्वॉड्रन की संख्या 20 के करीब रह जाएगी। 1 स्क्वॉड्रन में 18 विमान होते हैं और वायुसेना को अगले 2-3 सालों में फ्रांस से 36 राफेल की आपूर्ति हो जाएगी लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान होगी। देश में ही बनाए जा रहे हल्के लड़ाकू विमान तेजस की आपूर्ति की गति भी बेहद धीमी है।
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के 1 साल के अंदर ही संप्रग सरकार के फ्रांसीसी रक्षा कंपनी डसाल्ट एविएशन से 2 इंजन वाले 126 बहुद्देशीय लड़ाकू विमान राफेल की खरीद के सौदे को रद्द कर दिया और सीधे फ्रांस सरकार के साथ करार कर पूरी तरह तैयार 36 राफेल विमान खरीदने का ऐलान किया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फ्रांस दौरे के समय तुरत-फुरत में किए गए इस सौदे को लेकर सरकार ने सबसे बड़ा तर्क दिया कि उसने वायुसेना की तात्कालिक जरूरतों को देखते हुए यह सौदा किया है। रक्षा मंत्रालय ने इस सौदे के बाद इस तरह के संकेत दिए कि अब वायुसेना को 2 इंजन वाले और लड़ाकू विमानों की जरूरत नहीं है तथा शेष विमानों की पूर्ति 1 इंजन वाले विमानों से की जाएगी।
इसके लिए एक तर्क यह दिया गया कि इससे पैसे की तो बचत होगी ही, इसके रखरखाव और प्रबंधन में भी सुविधा रहेगी। इन विमानों को 'मेक इन इंडिया' योजना के तहत विदेशी कंपनी के सहयोग से बनाया जाना था। पिछले 2 वर्षों से 1 इंजन वाले 100 से अधिक विमानों की खरीद को लेकर फाइलों में माथा-पच्ची चलती रही और बात किसी अंजाम तक पहुंचती उससे पहले ही राफेल को लेकर हुए विवाद ने ऐसे हालात बना दिए कि सरकार को 1 इंजन के विमान की खरीद प्रक्रिया की 'भ्रूण हत्या' करनी पड़ी।
पहले 2 इंजन और अब 1 इंजन के विमानों की खरीद प्रक्रियाओं पर विराम लगाने की सरकार की ओर से आधिकारिक घोषणा तो नहीं की गई, लेकिन पिछले 1 सप्ताह से उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से मीडिया में निरंतर आ रहीं ऐसी रिपोर्टों का उसने खंडन भी नहीं किया। इन रिपोर्टों के मुताबिक रक्षा मंत्रालय ने वायुसेना से कहा है कि वह 1 इंजन या 2 इंजन के पचड़े में न पड़े और अपनी जरूरत के हिसाब से लड़ाकू विमानों की खरीद का प्रस्ताव नए सिरे से भेजे। नए प्रस्ताव में 1 और 2 इंजन वाले दोनों विमान ही शामिल हो सकते हैं।
जानकारों का कहना है कि सरकार के इस कदम से 2 साल पहले की ही स्थिति उत्पन्न हो गई है और वह एक बार फिर दोराहे पर खड़ी है। उनका कहना है कि भले ही सरकार यह कहे कि उसने सौदों में पारदर्शिता लाने तथा ज्यादा से ज्यादा विक्रेताओं को इसमें शामिल करने के लिए यह कदम उठाया है लेकिन इससे लगता है कि वह लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर पसोपेश में फंस गई है।
विपक्ष ने फ्रांस सरकार के साथ किए गए 36 राफेल विमानों के सौदे को लेकर कई सवाल उठाते हुए सरकार पर घोटाले का आरोप लगाया है और इस मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार राफेल विमानों की खरीद संप्रग सरकार द्वारा तय कीमत से बहुत ज्यादा कीमत पर कर रही है। फ्रांस के साथ गोपनीयता के समझौते के नाम पर सरकार इस सौदे की बारिकीयों का खुलासा नहीं कर रही है लेकिन बार-बार इस बात का दम भर रही है कि उसने जो सौदा किया है वह संप्रग द्वारा किए गए सौदे से सस्ता और कहीं अच्छा है।
जानकारों का कहना है कि इस सारी स्थिति में वर्ष 2032 तक वायुसेना के लड़ाकू विमानों के स्वीकृत स्क्वॉड्रनों की संख्या 42 के लक्ष्य को हासिल करने की संभावना बेहद क्षीण दिखाई देती है। (वार्ता)