नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सॉफ्टवेयर कंपनी विप्रो के पूर्व अध्यक्ष अजीम प्रेमजी और उनकी पत्नी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी है। दरअसल, उन्होंने शीर्ष न्यायालय में एक याचिका दायर कर एक गैरसरकारी संगठन (एनजीओ) की शरारतपूर्ण शिकायत पर बेंगलुरु की एक अदालत द्वारा उन्हें जारी किए गए समन रद्द करने की मांग की थी।
एनजीओ द्वारा दायर शिकायत में विश्वास तोड़ने और 3 कंपनियों को प्रेमजी समूह की एक कंपनी में विलय करने में भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाया गया था। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने एनजीओ, इंडियन अवेक फॉर ट्रांसपेरेंसी और अन्य को नोटिस भी जारी किया तथा उनका जवाब मांगा है।
प्रेमजी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, अभिषेक सिंघवी और अन्य ने कहा कि शिकायत शरारतपूर्ण प्रकृति की है। वरिष्ठ अधिवक्ता एस. गणेश और अधिवक्ता विपिन नायर ने जी. वेंकेटेश्वर राव की ओर से पेश होते हुए कहा कि इस एनजीओ का इस्तेमाल अगंभीर वाद दायर करने के लिए आर सुब्रमणयन नाम का व्यक्ति कॉर्पोरेट मुखौटा के तौर पर कर रहा है।
प्रेमजी और अन्य ने उच्च न्यायालय के 15 मई के आदेश को चुनौती दी थी जिसने निचली अदालत द्वारा 27 जनवरी को जारी समन को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी। प्रेमजी और अन्य के खिलाफ समन निचली अदालत ने एनजीओ द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर जारी किया था। एनजीओ ने आरोप लगाया था कि 3 कंपनियों से 45,000 करोड़ रुपए की संपत्ति एक निजी न्यास में और एक नवस्थापित कंपनी में हस्तांतरित करने में गैरकानूनी कार्य किए गए।
प्रेमजी और अन्य ने अपनी अपीलों में कहा है कि शिकायतकर्ता एनजीओ ने साक्ष्यों और दस्तावेजों पर गौर नहीं किया जिनमें यह भी शामिल है कि विलय की योजना को कर्नाटक उच्च न्यायालय के 26 मार्च 2015 के आदेश के जरिए पहले ही मंजूरी मिल चुकी थी। (भाषा)