प्रयागराज। सनातन धर्म एवं परंपरा के संवाहक अखाड़े वीरता, त्याग और तपस्या के लिए जाने जाते हैं। इन्हीं वीर 13 अखाड़ों में से एक शैव संन्यासी सम्प्रदाय के श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़े की पेशवाई कुंभ मेले से पहले भव्यता के साथ शुरू हुई।
पेशवाई एक धर्मिक शोभायात्रा है जिसमें साधु-संतों और नागाओं का एक बड़ा समूह हाथी, घोड़ा, ऊंट और पालकी पर सवार होकर गंगा की रेती पर बने छावनी (कैम्प) में पहुंचता है। पेशवाई में आचार्य महामण्डलेश्वर, श्रीमहंत और महंत रथों पर आरुढ़ होते हैं, उनके सचिव हाथी पर, घुड़सवार नागा अपने घोड़ों पर तथा अन्य साधु पैदल आगे रहते हैं। शाही ठाट-बाट के साथ अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए साधु-संत अपने लाव-लश्कर के साथ अपने-अपने गंतव्य को पहुंचते हैं।
निरंजनी अखाड़ा की पेशवाई निकलने से पहले बुधवार को मठ बाघम्बरी गद्दी में दस बजे वैदिक मंत्रों से आराध्य देव कार्तिकेय की पूजा-पाठ के बाद हाथी, घोड़ा, ऊंट, रथ, पालकी और बैंडबाजों पर भजन की स्वर लहरियों के बीच शुरू हुई। हाथी, घोड़े एवं रथ की सजावट देखते ही बन रही थी। उनकी सजावटों को देखकर सड़क किनारे खड़े श्रद्धालुओं की आंखों की पलकें झपकने का नाम ही नहीं ले रही थीं। इन पर बैठे पदाधिकारी फूलों के गजरों से लदे हुए थे।
सड़क के दोनों पटरी पर श्रद्धालु संत, महात्मा, नागाओं की पेशवाई देखने के लिए घंटों से कतारबद्ध खड़े थे। पेशवाई का नेतृत्व अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर बालकनंद गिरि ने किया। इनके साथ साधु्-संतों की जानीमानी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेन्द्र गिरि भी चल रहे थे। पेशवाई में रथों पर बैठे महात्मा, आचार्य श्रद्धालुओं पर माला और फूल लूटाकर मानो उनको स्वस्थ, प्रसन्न और जीवन में तरक्की करने का आशीर्वाद दे रहे थे।
पेशवाई में सबसे पहले करीब 20 फिट लंबी धर्म-ध्वजा को पकड़कर कुछ लोग चल रहे थे। उसके बाद दो घोड़े पर सवार होकर नागा संन्यासी नगाड़ा बजाते हुए चल रहे थे, मानो यह कह रहे हैं कि रास्ता खाली करो, महाराज कार्तिकेय की सवारी आ रही है। रथ पर आराध्य की मूर्ति विराजमान थी, जिसके चारों ओर चार महात्मा खड़े थे। पेशवाई सब्जी मण्डी, लेबर चौराहा, मटियारा रोड, अलोपी देवी मंदिर, दारागंज थाना होते हुए गंगा पार झूंसी स्थित बने शिविर में धर्म ध्वजा के नीचे पहुंची।
बड़ी संख्या में नागा संन्यासियों का समूह करतब दिखाता हुआ चल रहा था। नागा संन्यासी तवारबाजी, लाठी और भाले चलाकर लोगों को आकर्षित कर रहे थे। इनका हैरतअंगेज करतब लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था। शरीर पर भस्म लपेटे नंग-धड़ंग नागा करतब के बीच-बीच में चिलम से दम लगाना नहीं भूल रहे थे। साधु-महात्माओं का समूह मानो सत्य, ज्ञान और शांति की खोज के लिए गंगा किनारे शिविर की तरफ बढ़ता जा रहा था।
पेशवाई में साधु-महात्मा धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, हर-हर महादेव का जयघोष करते हुए चल रहे थे। भव्यता से निकल रही पेशवाई में रथों पर सवार महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर श्रीमहंत और महंतों के दर्शन पाकर कतारबद्ध खड़े श्रद्धालु अपने को धन्य मान रहे थे। सनातन एवं भारतीय संस्कृति का गवाह विदेशी श्रद्धालु भी बने। कुंभ नगरी प्रयाग में साधु-संतों का जप, कल्पवासियों का त्याग एवं नागा संन्यासियों की रहस्यमयी दुनिया को करीब से देखने का मौका मिलेगा।
कुंभ प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में आयोजन होता है लेकिन प्रयागराज का कुंभ सबसे उत्कृष्ट एवं भव्य होता है। गौरतलब है कि इससे पहले जूना, अग्नि, आवाहन और महानिर्वाणी अखाड़े की भव्य पेशवाई निकल चुकी है। 6 जनवरी को प्रयागराज में पहली बार किन्नर अखाड़ा अपना देवत्त यात्रा (पेशवाई) निकालेगा।