नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर) भारत, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लगातार नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है। एक नये अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), हैदराबाद के शोधकर्ताओं ने धातु-कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) बैटरी पर महत्वपूर्ण शोध किया है। शोधकर्ताओं ने मंगल ग्रह के कृत्रिम वातावरण में लिथियम-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी की तकनीकी व्यवहार्यता को दर्शाया है। लिथियम-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी का उपयोग न केवल पेलोड के भार को कम कर सकता है, बल्कि अंतरिक्ष मिशनों के लॉन्च की लागत को भी कम कर सकता है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर चंद्र शेखर शर्मा का कहना है कि मंगल मिशन 2024 जैसे भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन में ऊर्जा वाहक के रूप में धातु-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी के उपयोग से पेलोड का भार घटाया जा सकता है। उन्होंने इसकी प्रौद्योगिकी के लिए पेटेंट भी दायर किया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई है।
चंद्र शेखर शर्मा आईआईटी हैदराबाद के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रोफेसर शर्मा भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा स्थापित स्वर्णजयंती फेलोशिप के इस वर्ष के प्राप्तकर्ता भी हैं। वह भारत के मंगल मिशन के लिए ऊर्जा वाहक के रूप में धातु-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी की वैज्ञानिक समझ और तकनीकी विकास पर शोध कर रहे हैं। उनका अध्ययन, शोध पत्रिका मैटेरियल्स लेटर्स में प्रकाशित किया गया है।
फेलोशिप के एक भाग के रूप में शोधकर्ताओं का लक्ष्य धातु-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी तकनीक का एक प्रोटोटाइप विकसित करना और मंगल मिशन में इस तकनीक की व्यवहार्यता का पता लगाना है। इसके अंतर्गत, विशेष तौर पर सतह के लैंडर और रोवर्स के लिए कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उपयोग किया जाएगा, जो मंगल ग्रह के वातावरण में प्रचुरता से उपलब्ध है। धातु-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी का विकास द्रव्यमान और आयतन में कमी लाने के साथ उच्च विशिष्ट ऊर्जा घनत्व प्रदान करेगा, जो पेलोड के भार में कमी लाएगा और ग्रहीय-मिशन की लॉन्च लागत को कम करेगा।
इस शोध का एक अन्य आयाम धातु-कार्बन डाईऑक्साइड बैटरी प्रौद्योगिकी का विकास करना भी है, जो जलवायु में कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन पर रोक लगाने के लिए एक स्वच्छ विकल्प के रूप में उभरी है। धातु-कार्बन डाईऑक्साइड में, लीथियम-आयन बैटरियों की तुलना में कहीं अधिक ऊर्जा घनत्व प्रदान करने और कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने की प्रभावी क्षमता है।