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Pahalgam Terror Attack : सिंधु जल संधि खत्म होने से कैसे बर्बाद हो जाएगा पाकिस्तान?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, गुरुवार, 24 अप्रैल 2025 (08:37 IST)
Sindhu water treaty : पहलगाम आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए पाकिस्तान से सिंधु जल संधि स्थगित करने का एलान कर दिया। इस फैसले से पाकिस्तान पानी की एक एक बूंद के लिए तरसेगा और बर्बाद हो जाएगा। बताया जा रहा है कि भारत का यह फैसला युद्ध और परमाणु बम के इस्तेमाल से भी ज्यादा खतरनाक है। ALSO READ: Pahalgam Terror Attack : पहलगाम हमले के बाद CCS Meeting के 5 बड़े फैसले कैसे तोड़ देंगे Pakistan की कमर
 
भारत ने बुधवार को घोषणा की कि पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक कि इस्लामाबाद सीमा पार आतंकवाद के लिए अपना समर्थन विश्वसनीय रूप से बंद नहीं कर देता। यह कदम मंगलवार को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों सहित 26 लोगों के एक आतंकवादी हमले में मारे जाने के बाद उठाया गया है।
 
दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं इन न‍दियों का पानी : सिंधु नदी प्रणाली में मुख्य नदी सिंधु के साथ-साथ बाएं किनारे की इसकी पांच सहायक नदियां रावी, व्यास, सतलुज, झेलम और चिनाब हैं। दाएं किनारे की सहायक नदी ‘काबुल’ भारत से होकर नहीं बहती है। रावी, व्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां कहा जाता है जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु मुख्य नदियां पश्चिमी नदियां कहलाती हैं। इसका पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान में पंजाब का एक बड़ा हिस्सा सिंचाई के लिए सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। ALSO READ: Pahalgam Terror Attack : भारत के कड़े फैसले से तिलमिलाया पाकिस्तान, ताबड़तोड़ बुलाई हाईलेवल मीटिंग
 
क्या है सिंधु जल संधि : वर्ष 1960 के सितम्बर महीने में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अयूब खान के बीच यह जल संधि हुई थी। विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई इस संधि में रेखांकित किया गया था कि कैसे भारत और पाकिस्तान, दोनों सिंधु नदी के पानी का इस्तेमाल करेंगे। इस जलसंधि के मुताबिक, भारत को जम्मू कश्मीर में बहने वाली सिंध, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने का अधिकार नहीं है।
 
संधि में लिंक नहरों, बैराजों और ट्यूबवेलों के लिए धन जुटाने और निर्माण के लिए भी प्रावधान शामिल किए थे। खास तौर से सिंधु नदी पर तारबेला बांध और झेलम नदी पर मंगला बांध पर। इनसे पाकिस्तान को उतनी ही मात्रा में पानी लेने में मदद मिली जो उसे पहले उन नदियों से मिलती थी जो संधि के बाद भारत के हिस्से में आ गई थीं। ALSO READ: क्या है सिंधु जल समझौता, जिसे भारत ने रद्द कर पाकिस्तान को दिया बड़ा झटका
 
क्यों हुआ था सिंधु नदी समझौता : यह नौबत इसलिए आई क्योंकि 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन  के बाद दोनों देशों के बीच पानी पर विवाद हो गया था। 1 अप्रैल 1948 से भारत ने, अपने इलाके से होकर पाकिस्तान जाने वाली नदियों का पानी रोकना शुरू कर दिया। तब 4 मई 1948 को विवाद निपटाने के लिए एक इंटर-डोमिनियन समझौता हुआ जिसके तहत भारत को सालाना भुगतान के बदले में बेसिन के पाकिस्तानी हिस्सों को पानी उपलब्ध कराना था। हालांकि यह रास्ता स्थाई नहीं था, बस एक ऐसा तरीका था जहां से विवाद निपटाने का काम शुरू होकर और आगे जाना था।
 
फिर आखिरकार 1951 में टेनेसी वैली अथॉरिटी और अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग दोनों के पूर्व प्रमुख डेविड लिलिएनथल ने अपने लेखन के लिए इस क्षेत्र का दौरा किया। तब उन्होंने सुझाव दिया कि भारत और पाकिस्तान को नदियों पर एक तंत्र का साथ में विकास और फिर उसका प्रबंधन देखना चाहिए। उन्होंने इसके लिए एक समझौते का सुझाव दिया। 
 
1954 में वर्ल्ड बैंक ने दोनों देशों को एक प्रस्तावित समझौता थमाया। इस पर छह साल तक कई दौर की बातचीत के बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अय्यूब खान ने 1960 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही सिंधु नदी जल संधि प्रभाव में आई। 
 
जम्मू कश्मीर को हो रहा था 8000 करोड़ का नुकसान : इस जलसंधि से जम्मू कश्मीर को प्रतिवर्ष 8000 करोड़ का नुकसान हो रहा था? यह नुकसान वह पड़ोसी मुल्क कर रहा है, जो आतंकवाद फैलाकर अन्य प्रकार के नुकसान में भी लिप्त है। जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ ही आम लोग भी लंबे समय से इस संधि को रद्द करने की मांग कर रहे थे। 
 
सेना का भी मानना था कि अगर भारत जलसंधि को तोड़ कर पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी को रोक लेता है तो पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा और बदले में भारत जम्मू कश्मीर से पाकिस्तान को अपना हाथ पीछे खिंचने के लिए मजबूर कर सकता है।
edited by : Nrapendra Gupta 

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