नई दिल्ली | फिल्म 'पद्मावत' शुरुआत से ही विवादों में रही है। इस फिल्म के विषय को लेकर राजपूत करणी सेना ने जमकर विरोध किया था। सोमवार को फिल्म देखने के बाद श्री करणी सेना द्वारा नियुक्त दो सदस्यों ने फिल्म को हरी झंडी दे दी है। उनका कहना है कि फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं जिससे किसी की भावना आहत हो।
इस फिल्म के विषय को लेकर राजपूत करणी सेना ने जमकर विरोध किया था। वह फिल्म के प्रदर्शन के खिलाफ थे इसके लिए देशभर में कड़ा विरोध देखने को मिला। फिल्म को काफी बदलाव के बाद 25 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज कर दिया गया था। वहीं फिल्म की रिलीज के बाद करणी सेना के दो इतिहासकारों ने फिल्म को हरी झंडी दे दी है। उनका कहना है कि फिल्म में कुछ भी गलत नहीं है, जिससे किसी की भावना को ठेस लगे।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ किया कि यह उनकी अपनी राय है ना कि समुदाय की। पद्मावत की रिलीज तय करने के लिए गठित किए गए 6 सदस्यों के पैनल में से जिन 2 लोगों का नाम करणी सेना ने लिया है, उन्होंने बेंगलुरू में सोमवार को फिल्म को पास कर दिया है। सोमवार को फिल्म देखने के बाद इन दोनों सदस्यों ने कहा कि फिल्म में कुछ भी गलत नहीं है। उनका कहना है कि फिल्म किसी भी समुदाय की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाती है।
पिछले महीने सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) प्रमुख प्रसून जोशी ने इतिहासकार आर एस खांगरोट और बी एल गुप्ता से संपर्क किया था जिन्होंने श्री श्री रवि शंकर के आश्रम में फिल्म को देखा। फिल्म को लेकर किसी हल तक पहुंचने के लिए ही सबको खास तौर पर निमंत्रित किया गया था।
प्रोफेसर खांगरोट ने कहा, 'ऐतिहासिक रूप से यह फिल्म शून्य है, मुझे नहीं लगता कि फिल्म समाज के किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचाएगी। फिल्म ने इतिहास के साथ कुछ नहीं किया है। हम दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।' वहीं जब फिल्म में रानी पद्मिनी के बारे में पूछा गया तो कॉलेज के प्रिंसिपल खांगरोट ने कहा, 'मैं सिर्फ कहानी या कहानी के संदर्भ में फिल्म को लेकर बात कर सकता हूं। मैं इतिहास के रूप में इसके प्लॉट पर बात कर सकता हूं। सिनेमेटोग्राफी मेरा विषय नहीं है।'
बी एल गुप्ता जोकि राजस्थान यूनिवर्सिटी के एक रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, उन्होंने फिल्म के बारे में कहा,' 'मुझे व्यक्तिगत रूप से इस फिल्म को लेकर ऐसा कुछ भी नहीं लगता है जो किसी विशेष जाति या समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाए। इस फिल्म से कोई भी समस्या नहीं होनी चाहिए'। यहां इन दोनों इतिहासकारों ने यह भी साफ कहा कि, 'यह हमारी अपनी निजी राय है। हम अपनी राय दे रहे हैं और किसी भी संगठन और समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं'।
प्रोफेसर खांगरोट ने यहां यह भी बताया कि जब सीबीएफसी ने उन्हें फिल्म देखने का इंविटेशन दिया था तब वह देश में नहीं थे। अब श्री श्री रवि शंकर ने उन्हें फिल्म देखने का निमंत्रण दिया तो मैंने फिल्म देखी। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन दोनों प्रोफेसर द्वारा फिल्म को हरी झंडी दिखाए जाने के बाद राजपूत संगठन इनसे भी काफी नाराज हैं।