नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने विवादास्पद फिल्म 'पद्मावत' को दिया गया सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र रद्द करने की मांग करने वाली करणी सेना की ताजा जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई की अपील शुक्रवार को ठुकरा दी।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़़ ने इस प्रतिवेदन को भी खारिज कर दिया कि फिल्म रिलीज किए जाने से जान-माल और कानून-व्यवस्था को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।
पीठ ने वकील एमएल शर्मा द्वारा दायर ताजा याचिका पर तत्काल सुनवाई से इंकार करते हुए कहा कि कानून व्यवस्था कायम रखना हमारी जिम्मेदारी नहीं है। यह सरकार का काम है। याचिका खारिज की जाती है।
वकील ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा 'पद्मावत' को दिए गए यू/ए प्रमाण पत्र को सिनेमैटोग्राफ कानून के प्रावधानों समेत विभिन्न आधार पर रद्द किए जाने की मांग की है। पीठ ने कहा कि हमने गुरुवार को एक तर्कसंगत आदेश पारित किया है। उसने कहा कि सीबीएफसी द्वारा एक बार प्रमाण पत्र जारी किए जाने के बाद हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
न्यायालय ने गुजरात और राजस्थान में 'पद्मावत' के प्रदर्शन पर लगी रोक हटाते हुए इस फिल्म की 25 जनवरी को देशभर में रिलीज का रास्ता गुरुवार को साफ कर दिया था। शीर्ष अदालत ने अन्य राज्यों पर फिल्म के प्रदर्शन पर पाबंदी लगाने के लिए इस तरह की अधिसूचना या आदेश जारी करने पर भी रोक लगा दी है।
इस फिल्म की कहानी 13वीं सदी में महाराजा रतनसिंह एवं मेवाड़ की उनकी सेना और दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध पर आधारित है। इस फिल्म में दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणबीर सिंह ने अभिनय किया है।
न्यायालय ने कहा था कि कानून व्यवस्था कायम रखना राज्यों का दायित्व है। साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि इस दायित्व में फिल्म से जुड़े लोगों को, उसके प्रदर्शन के दौरान तथा दर्शकों को पुलिस की सुरक्षा मुहैया कराना शामिल है। (भाषा)