नजरिया : JNU की हिंसा ‘विचारों की स्वतंत्रता’ पर हमला, यूनिवर्सिटीज को दबाने और बदनाम करने की हो रही कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी से बातचीत
देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी JNU एक बार फिर चर्चा में है। रविवार शाम देश के सबसे प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थान जेएनयू में जिस तरह हिंसा हुई उसके बाद कई सवाल उठ खड़े हो रहे है। सवाल हिंसा करने वाले नकाबपोश गुंडों से लेकर यूनिवर्सिटी प्रबंधन पर खड़े हो रहे है। दिल्ली में पहले जामिया में पुलिस की बर्बर कार्रवाई और अब जेएनयू में नकाबपोशों की गुंडागर्दी और हिंसा क्या देश के बड़े शिक्षण संस्थानों को दबाने की साजिश तो नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी जेएनयू में हुई हिंसा को दुखद बताते हुए कहते हैं कि जिस तरह एक के बाद एक शिक्षण संस्थानों पर हमला किया जा रहा है वह एक तरह से फ्रीडम ऑफ थॉट विचारों की स्वतंत्रा ( Freedom of thoughts ) पर हमला है।
वह कहते हैं कि हाल कि घटनाओं के देखकर यही लगता हैं कि देश में जो एक सोच है उससे भिन्न सोच को सहन या बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है। वह कहते हैं कि जबकि हायर एजुकेशन के संस्थान और यूनिवर्सिटी में विचारों की स्वतंत्रा होनी चाहिए और भारत की पंरपरा भी यही हैं इसलिए हमारे यहां 108 उपनिषद की विचारों को अलग अलग ढंग से कहा जाता है।
वेबदुनिया से बातचीत में रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि मौजूदा समय सबसे खराब और चिंताजनक बात जो कुछ भी हो रहा है उसको सरकार को प्रश्रय मिल रहा है। वह कहते हैं कि चाहे बात जेएनयू की या जामिया मिलिया का या बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सबके पीछे सरकार का प्रश्रय मिला हुआ दिखाई देता है।
वह कहते हैं कि बीएचयू में जिस तरह प्रोफेसर की नियुक्त में विवाद हुआ वह यह दिखाता है कि इन सबके तार एक दूसरे से जुड़े हुए है जिसमें एक जैसी विचारधारा और सोच को बढ़ाने का काम किया जा रहा है। वह कहते हैं लगातार ये कोशिश की जा रही है कि खिले दिमाग से लोग नहीं सोचे और न चले ऐसी कोशिश लगातार हो रही है जो भारत की संस्कृति के विपरीत है।
वह कहते हैं कि सत्ता में जो लोग वह चाहते है कि सब कुछ उनके हिसाब से हो और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जो स्थाई प्रशासन है वह भी स्वंतत्र रूप से काम नहीं कर रहा है सरकार को आती है और चली जाती है लेकिन पुलिस और प्रशासन का स्वंतत्र रुप से कामकाज नहीं करना बेहद चिंताजनक है।
वह जेएनयू मामले में पुलिस के साथ साथ मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि जिस तरह जेएनयू की घटनाओं को छात्रों के दो गुटों का संघर्ष बातने पर कहते हैं कि जो तस्वीरें आई है उससे साफ है कि नकाबपोश लोगों का एक गुट हमला कर रहा है ऐसे में इसे दो गुटों का संघर्ष बताना मीडिया की भूमिका पर सवाल अपने आप खड़ा कर रहा है।
वेबदुनिया से बातचीत में रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि जिस तरह आज एक तरह से डर और हिंसा के सहारे दबाने की कोशिश की जा रही है व लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है। वह कहते हैं कि अगर लोगों को अपनी बात कहने का मौका नही मिल रहा है तो ये बेहद चिंताजनक है।
वह कहते हैं कि CAA के खिलाफ जिस तह यूथ सड़क पर निकल कर आंदोलन कर रहा और उसके साथ ही साथ यूनिवर्सिटी को टारगेट किया जा रहा है उसको कैंपस को बदनाम करने की साजिश भी माना जा सकता है। वह कहते हैं कि पहले जामिया और जेएनयू में दोनों घटनाएं साबित करती है हिंसा और डर के दबाने की कोशिश की जा रही है और इसको संरक्षण में मिल रहा है।