लंबे चले एक अभियान के बाद ब्रिटेन के सिक्कों या नोटों पर पहली बार अश्वेत, एशियाई और जातीय अल्पसंख्यक (बीएएमई) समूहों की प्रसिद्ध हस्तियों की तस्वीर प्रदर्शित होगी। यह यहां चलाए गए एक अभियान के बाद संभव हो सकेगा।
तमाम और लंबी कोशिशों के बाद ‘द बैंकनोट्स ऑफ कलर’ अभियान ने सरकार से सिक्के या करेंसी पर अश्वेत लोगों की तस्वीर को छापने के बारे में विचार करने के लिए कहा था।
अगर सबकुछ ठीक रहा तो भारतीय मूल की ब्रिटिश जासूस नूर इनायत खान की तस्वीर भी यूके के सिक्कों पर नजर आ सकती है। नूर इनायत दुनिया में एक बेहद ही लोकप्रिय जासूस थीं। उन्हें दूसरे विश्वयुद्ध में अपने स्पेशल ऑपरेशन में योगदान के लिए याद किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन में आज तक किसी भी अश्वेत शख्सियत की तस्वीर सिक्के या नोट पर नहीं छापी गई है। इस अभियान की अगुवाई पूर्व कंजरवेटिव पार्लियामेंट्री कैंडिडेट जेहर जैदी ने की है।
जैदी ने इंडिपेंडेंट अखबार से कहा ब्रिटेन को बनाने में सभी पृष्ठभूमि के लोगों ने मदद की है। वी टू बिल्ट ब्रिटेन अभियान समूह समावेशी इतिहास दिखाना चाहता था और सभी जातीय व सामाजिक पृष्ठभूमि व सभी क्षेत्रों के लोगों ने ब्रिटेन को बनाने में मदद की है। जैदी ने कहा कि अगर आप बैंक ऑफ इंग्लैंड और रॉयल मिनी वेबसाइट्स में नोट्स और सिक्कों को देखेंगे तो उन लोगों का प्रतिबिंब होना चाहिए, जिन्होंने हमारे इतिहास और संस्कृति का निर्माण किया है।
कौन है नूर इनायत खान?
नूर इनायत खान का 1914 में मॉस्को में पैदा हुई थी। वह 18वीं शताब्दी में मैसूर के राजा रहे टीपू सुल्तान की वंशज थीं। नूर के पिता हजरत इनायत खान मैसूर के राजा टीपू सुल्तान के प्रपौत्र थे और उनकी मां ओरा मीना रे बेकर (अमीना बेगम) एक अमेरिकी महिला थीं।
पहले नूर एक वॉलिंटियर की तरह ब्रिटेन की सेना में भर्ती हुईं, लेकिन बाद में एयरफोर्ट की सहायक महिला यूनिट में भर्ती हो गईं। उनकी फ्रेंच की अच्छी जानकारी और बोलने की क्षमता ने स्पेशल ऑपरेशन्स ग्रुप का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया और फिर वह बतौर जासूस काम करने के लिए तैयार हो गईं। जल्द ही फ्रांस के एक शहर में महिला जासूस टीम के साथ काम करना शुरू कर दिया। उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्पेशल ऑपरेशन एक्जिक्युटिव में शानदार काम के लिए जाना जाता है।
वह ब्रिटेन की पहली मुस्लिम वॉर हीरोइन थीं और पहली महिला रेडियो ऑपरेटर थीं, जिन्हें नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। फ्रांस में उनका काम था कि वह छापामार कार्रवाई को बढ़ावा दें। 1943 में वह सीक्रेट एजेंट बनीं। जून 1943 में उन्हें एक रेडियो ऑपरेटर के तौर पर ट्रेन कर के फ्रांस भेज दिया गया। बता दें कि ऐसे अभियानों में जो पकड़ा जाता था, उसे हमेशा के लिए कैद झेलनी पड़ती थी या मौत की सजा मिलती थी, लेकिन नूर ने ये बेहद जोखिम भरा काम भी किया। हालांकि, नूर ने जर्मनी पुलिस को चकमा देते हुए अपनी जासूसी जारी रखी। हालांकि बाद में वे पकडी गईं और 13 सितंबर 1944 को नाजियों ने उन्हें तीन अन्य महिला जासूसों के साथ गोली मार दी। उस वक्त वे सिर्फ 30 साल की थीं।