प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी... एक हंसता-मुस्कराता चेहरा... गजब की ऊर्जा और ताजगी। लेकिन, पिछले कुछ दिनों की उनकी तस्वीरों पर नजर डालें तो उनके सौम्य मुखड़े पर तनाव की रेखाएं कुछ ज्यादा नजर आने लगी हैं। आखिर इसके पीछे वजह क्या है, क्या किसी की नजर लग गई है? यह तो उनके करीबी ही बता सकते हैं, लेकिन एक बात तय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की आहट उन्हें जरूर बेचैन कर रही है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 282 सीटें लाकर अपने बूते केन्द्र में भाजपा सरकार बनाई थी, लेकिन सहयोगियों को भी उन्होंने अपने साथ रखा। सत्ता संभालने के बाद पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से ऊपर की ओर उठा था, मगर चुनाव की पदचाप सुनते ही विपक्षी नेताओं की तरह यह ग्राफ भी 'हरकत' करने लगा है।
इसमें कोई संदेह नहीं सत्ता कायम रखने का दबाव तो उन पर होगा ही और जिस तरह पिछले साढ़े तीन सालों में उन्होंने खुद को 'वन मैन आर्मी' की तरह पेश किया है, वह भी उनकी मुश्किल बढ़ाने वाला ही होगा। क्योंकि भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता कहीं न कहीं खुद को हाशिए पर ही महसूस करते हैं।
प्रधानमंत्री के तनाव की बड़ी वजह नोटबंदी और जीएसटी भी हो सकते हैं। क्योंकि नोटबंदी के समय जो जनसमर्थन उन्हें मिला था, अब रिजर्व बैंक के आंकड़े सामने आने के बाद विरोध में तब्दील होता जा रहा है। जीएसटी का दांव भी उलटा ही पड़ता दिखाई दे रहा है। व्यापारी वर्ग में इसको लेकर काफी गुस्सा है। लोगों का तो यह भी कहना है कि जीएसटी के बाद उनके धंधे ही चौपट हो गए। कागजी खानापूर्ति बढ़ गई वह अलग।
कुछ साल पहले के चुनावी माहौल को याद करें तो तब कांग्रेस बनाम शेष विपक्ष की बात होती थी, लेकिन अब इसके उलट भाजपा विरुद्ध विपक्ष की बातें खुलकर सामने आ रही हैं। गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में तो सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद सत्ताधारी दल को इसका ट्रेलर भी दिखा चुके हैं। अब यदि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने हाथ मिला लिए तो 'कमल' को जमीन दिखाने में आसानी हो जाएगी। ... तो तनाव की यह वजह भी स्वाभाविक तौर पर समझी ही जा सकती है।
जिन दलों के साथ मिलकर भाजपा ने विगत लोकसभा चुनाव में दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी, अब या तो उनकी राजनीतिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है या फिर वे भाजपा और मोदी पर ही आंखें तरेर रहे हैं। शिवसेना को ही लें, लंबे साथ के बावजूद इस भगवा दल ने भाजपा से दूरियां बना लीं, वहीं अकाली दल की लोकप्रियता में काफी कमी आई है। जदयू नेता नीतीश कुमार कब पलटी मार जाएं कुछ कह नहीं सकते। यह स्थिति भी तो तनाव बढ़ाने वाली ही है।
रही बात एससी-एसटी और पेट्रोल के बढ़ते दामों की तो जनता से जुड़े इन मुद्दों ने भी तो तनाव बढ़ाने का ही काम किया है। अब यह देखना कम रोचक नहीं होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव मोदी के तनाव को और बढ़ाते हैं या एक बार फिर उनका हंसता, मुस्कराता और ताजगी भरा चेहरा दिखाई देता है।