नई दिल्ली। स्वच्छता अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा अभियान बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि महात्मा गांधी के स्वच्छता मिशन के पीछे उनकी व्यापक सोच थी और इसी से प्रेरणा लेते हुए सरकार स्वच्छता के साथ ही पोषण पर भी समान रूप से जोर दे रही है।
राष्ट्रपति भवन में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, 'चार दिन के इस सम्मेलन के बाद हम सब इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि, विश्व को स्वच्छ बनाने के लिए 4पी आवश्यक हैं। ये 4पी वाले चार मंत्र राजनीतिक नेतृत्व, सार्वजनिक वित्त पोषण, लोगों की भागीदारी और लोगों की हिस्सेदारी हैं।'
मोदी ने कहा कि समृद्ध दर्शन, पुरातन प्रेरणा, आधुनिक तकनीक और प्रभावी कार्यक्रमों के सहारे आज भारत टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने की तरफ तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि हमारी सरकार स्वच्छता के साथ ही पोषण पर भी समान रूप से बल दे रही है।' प्रधानमंत्री ने कहा कि आज वह सुन और देख रहे हैं कि स्वच्छ भारत अभियान ने देश के लोगों का मिज़ाज बदल दिया है, किस तरह से भारत के गांवों में बीमारियां कम हुई हैं, इलाज पर होने वाला खर्च कम हुआ है। इससे उन्हें बहुत संतोष मिलता है।
स्वच्छता के क्षेत्र में उपलब्धियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 4 साल पहले खुले में शौच करने वाली वैश्विक आबादी का 60% हिस्सा भारत में था, आज यह 20% से भी कम हो चुका है।
मोदी ने कहा कि पिछले चार वर्षों में सिर्फ शौचालय ही नहीं बने, गांव-शहर खुले में शौच से मुक्त ही नहीं हुए बल्कि 90% से अधिक शौचालयों का नियमित उपयोग भी हो रहा है।
उन्होंने कहा कि जनभावना का ही परिणाम है कि साल 2014 से पहले ग्रामीण स्वच्छता का दायरा जो लगभग 38 प्रतिशत था, वह आज 94 प्रतिशत हो चुका है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में खुले में शौच से मुक्त गांवों की संख्या 5 लाख को पार कर चुकी है। भारत के 25 राज्य खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर चुके हैं।
उन्होंने कहा, 'आज मुझे गर्व है कि गांधी जी के दिखाए मार्ग पर चलते हुए सवा सौ करोड़ भारतवासियों ने स्वच्छ भारत अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा जन आंदोलन बना दिया है उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने गांधी जी को, उनके विचारों को, इतनी गहराई से नहीं समझा होता, तो सरकार की प्राथमिकताओं में भी स्वच्छता अभियान कभी नहीं आ पाता।'
मोदी ने कहा कि उन्हें स्वच्छता के संदर्भ में बापू से ही प्रेरणी मिली, और उन्हीं के मार्गदर्शन से स्वच्छ भारत अभियान भी शुरू हुआ।
उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति गंदगी को स्वीकार नहीं करता, उसे साफ करने के लिए प्रयत्न करता है, तो उसकी चेतना भी चलायमान हो जाती है। उसमें एक आदत पैदा होती है कि वह परिस्थितियों को ऐसे ही स्वीकार नहीं करेगा।
जीवन में स्वच्छता के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई चीज गंदगी से घिरी हुई है और वहां पर उपस्थित व्यक्ति अगर उसे साफ नहीं करता है, तब फिर वह उस गंदगी को स्वीकार करने लगता है।
उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद ऐसी स्थिति हो जाती है कि वह गंदगी उसे गंदगी लगती ही नहीं। यानि एक तरह से अस्वच्छता व्यक्ति कि चेतना को जड़ कर देती है।
मोदी ने कहा कि अगर आप बारीकी से गौर करेंगे, मनन करेंगे, तो पाएंगे कि जब हम गंदगी को दूर नहीं करते तो वही अस्वच्छता हमारे अंदर उन परिस्थितियों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति पैदा करने लगती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि साल 1945 में प्रकाशित अपने ‘रचनात्मक कार्यक्रम' में बापू ने जिन जरूरी बातों का जिक्र किया था, उनमें ग्रामीण स्वच्छता भी एक महत्वपूर्ण खंड था। (भाषा)