नई दिल्ली। सियासी अखाड़े के दांव-पेंच में माहिर पहलवान मुलायम सिंह यादव ने अपनी लंबी राजनीतिक पारी में अपने दांव से कई लोगों को चित किया। करीब 23 साल पहले उन्होंने अपने इसी तरह के एक सियासी दांव से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदों को झटका दिया था और इसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार की भी भूमिका थी।
यह वाकया वर्ष 1999 का है, जब सोनिया गांधी नई-नई कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं। उस साल 17 अप्रैल को जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने लोकसभा में विश्वासमत खो दिया तब सोनिया ने सरकार बनाने का दावा पेश किया था।
तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से मुलाकात के बाद सोनिया गांधी ने संवाददाताओं से कहा था कि हमारे पास 272 का आंकड़ा है और हमें इससे अधिक की आशा है और हमें विश्वास है कि हम इससे अधिक संख्या हासिल कर लेंगे।
बहरहाल, मुलायम सिंह यादव की कुछ अलग योजना थी और वे प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी का समर्थन करने के इच्छुक नहीं थे। उस वक्त समाजवादी पार्टी के 20 लोकसभा सदस्य थे। यादव ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के नाम का प्रस्ताव दिया।
उन्होंने कहा था कि हमें साथ आकर यह फैसला करना चाहिए कि नई दिल्ली में नेता कौन होगा? इसके करीब 1 महीने बाद ही लोकसभा में कांग्रेस के तत्कालीन नेता शरद पवार ने विदेशी मूल का मुद्दा उठाया जिसे बाद में भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया।
कांग्रेस कार्यसमिति की 15 मई 1999 को बैठक हुई जिसमें पार्टी में बगावत हुई। फिर पवार ने कुछ अन्य नेताओं के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया। इस तरह से सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदों को झटका लगा था। भाजपा को 1998 के लोकसभा चुनाव में 182 सीटें मिली थीं जिनमें 57 सीटें उत्तरप्रदेश से आई थीं। कांग्रेस को 141 सीटें मिली थीं। बाद में 2004 में मुलायम सिंह यादव और पवार दोनों संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा बने।
Edited by: Ravindra Gupta(भाषा)