जम्मू। वार्षिक अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी है। आज भी जम्मू के बेस कैंप से 6 हजार से अधिक श्रद्धालु इसमें शामिल हुए। जबकि समाचार भिजवाए जाते समय तक एक लाख से अधिक ने पवित्र गुफा में बनने वाले हिमलिंग के दर्शन कर लिए थे। इस बीच इस यात्रा की प्रतीक 'छड़ी मुबारक' की विशेष पूजा के कार्यक्रम को भी जारी कर दिया गया था।
परसों जम्मू से कोई जत्था रवाना नहीं किया गया था। आज 6 हजार श्रद्धालुओं को रवाना किया गया जबकि रास्ते में रूके हुए श्रद्धालुओं को भी आगे बढ़ने की अनुमति प्रदान की गई जिस कारण यह संख्या 10 हजार को पार कर गई।
यात्रा की प्रतीक छड़ी मुबारक की विशेष पूजा कार्यक्रम जारी करते हुए महंत दीपेंद्र गिरि ने बताया कि अमरनाथ यात्रा के लिए भूमि पूजन, नवग्रह पूजन और ध्वजारोहण 13 जुलाई को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में लिद्दर नदी किनारे होगा। इसके साथ ही धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमरेश्वर धाम की तीर्थयात्रा आरंभ होगी। अलबत्ता, अमरेश्वर धाम के लिए पवित्र छड़ी मुबारक सात अगस्त को अपने विश्राम स्थल दशनामी अखाड़ा से प्रस्थान करेगी।
अमरेश्वर धाम को ही अमरनाथ की पवित्र गुफा पुकारा जाता है। श्रीनगर के मैसूमा के बाहरी छोर पर ही दशनामी अखाड़ा मंदिर स्थित है और इसके महंत दीपेंद्र गिरि ही अमरनाथ की पवित्र छड़ी मुबारक के संरक्षक हैं। महंत दीपेंद्र गिरि ने बताया कि 13 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
अनादिकाल से चली आ रही परंपरा के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा के दिन लिद्दर नदी किनारे अमरेश्वर धाम की तीर्थयात्रा के लिए भूमि पूजन, नवग्रह पूजन और ध्वजारोहण का अनुष्ठान होता है। इसके बाद ही तीर्थयात्रा का विधान है।
उन्होंने बताया कि अगर अमरेश्वर धाम की तीर्थयात्रा का पुण्य प्राप्त करना है और अगर धर्मानुसार इस तीर्थयात्रा में शामिल होना है तो श्रद्धालुओं को पहलगाम के रास्ते से ही पवित्र गुफा के लिए यात्रा करनी चाहिए। पहलगाम से पवित्र गुफा तक के मार्ग में विभिन्न जगहों पर कई तीर्थस्थल हैं, जो इस यात्रा से पूरी तरह जुड़े हुए हैं।
महंत दीपेंद्र गिरि ने बताया कि बुधवार 13 जुलाई को लिद्दर किनारे सभी धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करने के बाद हम सभी लोग वापस दशनामी अखाड़ा लौट आएंगे। इसके बाद 28 जुलाई को पवित्र छड़ी मुबारक गोपाद्री पर्वत पर स्थित शंकराचार्य मंदिर में भगवान शंकर का जलाभिषेक करेगी।
इसके अगले दिन 29 जुलाई को मां शारिका भवानी मंदिर में छड़ी मुबारक पूजा करने जाएगी। दशनामी अखाड़ा स्थित अमरेश्वर मंदिर में पवित्र छड़ी मुबारक की स्थापना 31 जुलाई रविवार को होगी। इसके बाद नागपंचमी के दिन दो अगस्त को दशनामी अखाड़ा में छड़ी पूजन होगा और उसके बाद सात अगस्त को छड़ी मुबारक पवित्र गुफा के लिए प्रस्थान करेगी।
सात और आठ अगस्त को पहलगाम में ही विश्राम करने के बाद नौ अगस्त को चंदनबाड़ी में छड़ी मुबारक पहुंचेगी। शेषनाग में 10 अगस्त और 11 अगस्त को पंचतरनी में पूजा करने के बाद 11 अगस्त रक्षाबंधन की सुबह पवित्र गुफा में प्रवेश करेगी और इसके साथ ही वहां विराजमान हिमलिंग स्वरूप भगवान शंकर के मुख्य दर्शन होंगे। उसी दिन छड़ी मुबारक पहलगाम लौट आएगी।
विवादों और अमरनाथ यात्रा का चोली-दामन का साथ : वार्षिक अमरनाथ यात्रा फिर से विवादों में है। इस बार विवाद इसमें शामिल होने वालों की सुरक्षा की खातिर सारे प्रदेश में की जाने वाली रोडबंदी और रेलबंदी का है। इस पर बवाल मचा हुआ है। जानकारी के लिए अमरनाथ यात्रा और विवादों का चोली-दामन का साथ है।
कश्मीर में फैले आतंकवाद के साथ ही अमरनाथ यात्रा के नाम पर बार-बार विवाद पैदा करने की साजिशें होती रही हैं। वर्ष 1990 के बाद आतंकी संगठन हरकत उल अंसार ने इस यात्रा पर रोक लगाने का फतवा जारी कर दिया। हालांकि 1996 के बाद कभी भी आतंकी संगठनों ने सार्वजनिक तौर पर यात्रा के खिलाफ किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन श्रद्धालुओं को बार-बार निशाना बनाने की साजिश रची जाती रहीं।
बीते तीन दशक के दौरान श्री अमरनाथ यात्रा के लगभग 120 श्रद्धालुओं की हत्या की जा चुकी है। भले ही मौसम के कारण कभी बाधा आई हो पर श्रद्धालुओं का जोश लगातार बढ़ता ही गया। अलगाववादी सीधे शब्दों में इस यात्रा को भारतीयता से जोड़ते हुए कहते हैं और उन्हें डर है कि कश्मीर में उनकी दुकानें कमजोर हो सकती हैं। चूंकि आम कश्मीरी की इसमें सीधी भागीदारी होती है, इसलिए वह धर्म की आड़ लेने से नहीं चूकते।
यह दुष्प्रचार किया जाता है कि आरएसएस इस यात्रा को बढ़ा रही है और उनके संगठन पूरे कश्मीर को शैव परंपरा का एक बड़ा तीर्थ क्षेत्र घोषित करने के लिए इस तीर्थयात्रा को बढ़ावा दे रही है, पर वह खुलकर विरोध करने का साहस नहीं कर पाते। साथ ही प्रत्यक्ष तौर पर इसे कश्मीर की साझी विरासत का प्रतीक बताते हैं।
यह विरोध चलते रहे पर अलबत्ता यात्रा के खिलाफ कश्मीर में अगर मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध जताया तो वर्ष 2003 में पीडीपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के दौर में। राज्य सरकार और बोर्ड के बीच या फिर यूं कहा जाए कि तत्कालीन मुख्यमंत्री और तत्कालीन राज्यपाल एसके सिन्हा के बीच विवाद यात्रा की अवधि को लेकर शुरू हुआ। तत्कालीन राज्यपाल एसके सिन्हा चाहते थे कि यात्रा की अवधि को बढ़ाया जाए।
इस यात्रा पर जबरदस्त सियासत वर्ष 2008 में हुई। अमरनाथ भूमि आंदोलन के बहाने पहली बार जम्मू संभाग कश्मीरी दबंगई के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। विवाद उस समय शुरू हुआ, जब राज्य सरकार ने बालटाल में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बोर्ड को अस्थाई तौर पर जमीन देने का फैसला किया।
पीडीपी ने इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद से समर्थन वापस ले लिया। हंगामा बोर्ड को जमीन देने के फैसले से शुरू हुआ था लेकिन यात्रा शुरू होने से पहले प्रमुख अलगाववादी नेता मसर्रत आलम ने अलगाववादी एजेंडे पर हंगामा शुरू कर दिया। और अब एक बार फिर अमरनाथ यात्रा विवादों से घिरी हुई है लेकिन श्रद्धालुओं पर इसका कोई प्रभाव नजर नहीं आता है क्योंकि यह अविरल रूप से बढ़ती जा रही है।