महाराष्ट्र भाजपा के हाथ से निकल चुका है। जोड़ तोड़ के भरोसे सरकार बनाने में माहिर समझी जाने वाली भाजपा की महाराष्ट्र में जमकर फजीहत हुई है। सरकार बनाने के लिए संवैधानिक मर्यादा को ताक पर रखना भाजपा को भारी पड़ गया और सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट के आदेश देने के 5 घंटे के अदंर 80 घंटे के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा देने का एलान कर दिया। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस का इस्तीफा उसके शीर्ष नेतृत्व मोदी - शाह की हार है।
सूबे में सरकार बनाने के लिए जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग कर संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा को भंग किया उसको लेकर अब सवाल पूछे जाने लगे है। सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि जो राज्य भाजपा के गढ़ में रुप में पहचाने जा रहे थे वहां क्या मोदी –शाह का जादू अब खत्म हो गया है।
केंद्र में दूसरी बार 303 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई मोदी सरकार महाराष्ट्र और हरियाणा में अपने पहले इम्तिहान में बुरी तरह फेल हो गई। हरियाणा में 75 पार का दावा करने वाली भाजपा बहुमत से पीछे रहने के बाद जैसे –तैसे दुष्यंत चौटाला के समर्थन से सरकार तो बना ली लेकिन सरकार कितने दिन चलेगी इसको लेकर संशय बना हुआ है। महाराष्ट्र में अपने 30 साल पुराने दोस्त शिवसेना के साथ चुनाव लड़ी भाजपा गठबंधन मे तो बहुमत का आंकड़ा छू लिया था लेकि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर ऐसी उलझी की खुद की कुर्सी ही नहीं बचा पाई।
महाराष्ट्र की सत्ता हाथ से जाने के बाद भाजपा अब हिंदी भाषी बड़े राज्यों में सिमटती हुई दिखाई दे रही है। 2014 से भाजपा मे मोदी- शाह युग प्रारंभ होने के बाद जिस भाजपा ने 2017 तक देश के 70 फीसदी हिस्से में अपनी सरकार बन ली थी वह देखते ही देखते अब 40 फीसदी से कम हिस्से पर काबिज रह गई है। जिस तेजी से भाजपा का ग्राफ बढ़ रहा था वह अब उतनी ही तेजी से गिर रहा है।
राज्यों में भाजपा के जीत के इस अश्वमेध घोड़े को सबसे पहले मई 2017 में पंजाब में कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर ने रोका था। कैप्टन अमरिंदर ने अपने बल पर राजनीतिक के अखाड़े में भाजपा को जो पटखनी दी थी उसे अब महाराष्ट्र में शरद पवार ने अपने पंच से बिल्कुल बेदम कर दिया है। मई 2017 नंवबर 2019 तक आते आते भाजपा के हाथ से पांच बड़े प्रदेश पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र निकल चुके है।
इन राज्यों के भाजपा के हाथ से निकलने से सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या मोदी और शाह का जादू अब खत्म की ओर है। महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में भाजपा को चुनावी नैय्या को धारा 370 और ट्रिपल तलाक जैसे कार्ड भी पार नहीं लगा पाए इससे यह अंदाजा लगाना आसान है कि आने वाले समय भाजपा की राह में कांटे ही कांटे है।
अगर आने वाले चुनावी राज्यों की बात करें तो इस समय चुनावी राज्य झारखंड में भाजपा पूरी तरह अकेले पड़ चुकी है और यहां विपक्ष की तरफ से उसको कड़ी चुनौती मिल रही है। इसके साथ ही आने वाले समय में दिल्ली, बिहार और पश्चिम बंगाल में भाजपा की राह आसान नहीं होने वाली है। यह तीनों ही राज्य ऐसे है जहां महाराष्ट्र की तरह क्षेत्रीय क्षत्रप मोदी - शाह को मात देने के लिए अपनी किलेबंदी मजबूत करने में जुटे हुए है। दिल्ली में केजरीवाल और बंगाल में ममता बनर्जी अपने कोर वोट बैंक को अगर एकजुट रखने में सफल रही तो निश्चित तौर पर आने वाले कुछ दिनों तक मोदी- शाह के हाथ निराश ही लगेगी।