उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। मुख्यमंत्री योगी सुबह 10.45 बजे पीएम मोदी से मिलने लोक कल्याण मार्ग पहुंचे और करीब डेढ़ घंटे तक दोनों नेताओं के बीच मुलाकात हुई। कोरोना के चलते करीब 5 महीने बाद हो रही मोदी-योगी की इस मुलाकात पर भाजपा के नेताओं के साथ-साथ विरोधियों और राजनीतिक पंडितों की भी नजरें टिकी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली से लेकर लखनऊ तक मोदी और योगी के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं होने की खबरों के बीच आज मोदी और योगी की मुलाकात हुई।
ऐसे में जब उत्तर प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी अपने चरम पर पहुंच गई है और पिछले कुछ दिनों से सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा में कई प्रकार की अटकलों का बाजार गर्म है तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अचानक दिल्ली के दो दिन के दौरे पर जाना और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात करना यह बता रहा है कि अब यूपी का सियासी एपिसोड निर्णायक दौर में पहुंच गया है।
उत्तर प्रदेश की सियासत को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र 'वेबदुनिया' से बातचीत में कहते हैं कि आज योगी-मोदी की होने वाली मुलाकात से एक बात एकदम स्पष्ट हो गई है कि योगी हटेंगे नहीं। अगर केंद्रीय नेतृत्व को योगी को हटाना होता तो यह मुलाकातें नहीं हो रही होती। योगी आदित्यनाथ के दो दिन के दिल्ली दौरे से इतना साफ है कि वह हटने वाले नहीं है और न उनकी कुर्सी को फिलहाल कोई खतरा है।
नागेंद्र आगे कहते हैं कि जब ये कहा जाता है कि योगी के पास एक भी विधायक नहीं है, तो नहीं भूलना चाहिए कि योगी जब आये थे तब भी कोई विधायकों के बूते थोड़े ही आये थे। जिसके बूते तब थे, उसका बल आज भी उंनके साथ है। उसी (संघ) के कारण इस मुलाकात (मोदी-योगी मुलाकात) की भी नौबत आई है।
वहीं आज मोदी-योगी की मुलाकात के बाद यह देखना भी दिलचस्प होगा कि लंबे समय से उत्तरप्रदेश में भाजपा के अंदर नाराजगी और खेमेबाजी की जो खबरें निकल कर सामने आ रही है उसका खत्म करने के लिए आखिर क्या फॉर्मूला तैयार होता है।
नागेंद्र कहते हैं कि ऐसे में जब उत्तर प्रदेश चुनाव के सिर्फ 8 महीने बचे हैं टेक्निकली तो दिसम्बर तक का ही वक़्त है फिर सब कुछ चुनाव मोड में होगा। ऐसे में चेहरा बदलना किसी भी सूरत में सम्भव नहीं है। हां, चुनाव बाद उस चेहरे का क्या होता है, ये अलग बात है।
'वेबदुनिया' से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक नागेंद्र कहते हैं कि पहले यह समझना होगा कि उत्तर प्रदेश में सरकार और संगठन में जो कुछ भी चल रहा है उसकी असली जड़ कोई और नहीं खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनका स्वभाव है। योगी का स्वभाव झुकने वाला नहीं है जिसके चलते मोदी-शाह की भाजपा में पहली बार पर्सनालिटी क्लेश दिखने को भी मिल रहा है। ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या मोदी-योगी की मुलाकात में दो कदम आगे,एक कदम पीछे हटने वाली रणनीति पर दोनों पक्ष बढ़ते हुए दिखाई देते है।
मोदी-योगी की मुलाकात की जमीन तैयार करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सामने इस वक्त चार चुनौतियां है। पहला योगी को बचाना है, दूसरा उत्तर प्रदेश में वर्तमान सरकार को कोई संकट नहीं होने देना, तीसरा 2022 में सरकार को फिर से कैसे वापस लाया जाए और सबसे बड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को कोई नुकसान नहीं पहुंचे इसको सुनिश्चित करना।
मोदी-योगी की मुलाकात का सीधा असर उत्तर प्रदेश के साथ भाजपा शासित अन्य राज्यों मध्यप्रदेश और कर्नाटक पर भी पड़ेगा। दिल्ली में मोदी-योगी की इस मुलाकात से यह संदेश भी साफ है कि मोदी को योगी से कोई चुनौती नहीं है और मोदी और शाह योगी को साइडलाइन नहीं कर रहे है।