Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

UN जलवायु सम्मेलन में पीएम नरेन्द्र मोदी का मंत्र

पीएम मोदी ने की ‘ग्रीन क्रेडिट’ पहल की शुरुआत

हमें फॉलो करें Narendra Modi
दुबई , शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023 (19:55 IST)
Modi launches Green Credit initiative: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को यह उल्लेख करते हुए कि दुनिया के पास पिछली सदी की गलतियों को सुधारने के लिए ज्यादा समय नहीं है, लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ बनाने पर केंद्रित ‘ग्रीन क्रेडिट’ पहल की घोषणा की। उन्होंने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन या सीओपी33 की भारत द्वारा मेजबानी का प्रस्ताव भी रखा।
 
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी28) के दौरान राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों के प्रमुखों के उच्च स्तरीय सत्र को संबोधित करते हुए मोदी ने पृथ्वी अनुकूल सक्रिय और सकारात्मक पहल का आह्वान करते हुए कहा कि ‘ग्रीन क्रेडिट’ पहल कार्बन क्रेडिट से जुड़ी व्यावसायिक मानसिकता से परे है।
 
उन्होंने कहा कि यह लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ बनाने पर केंद्रित है और मैं आप सभी को इस पहल में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया के पास पिछली सदी की गलतियों को सुधारने के लिए ज्यादा समय नहीं है।
 
यह पहल अक्टूबर में देश में अधिसूचित ‘ग्रीन क्रेडिट’ कार्यक्रम के समान है। यह बाजार-आधारित अभिनव तंत्र है जिसे व्यक्तियों, समुदायों और निजी क्षेत्र द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों को पुरस्कृत करने के लिए तैयार किया गया है।
 
मोदी ने कहा कि भारत ने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाकर दुनिया के सामने बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है, जो तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपने निर्धारित योगदान या राष्ट्रीय योजनाओं को हासिल करने की राह पर है।
 
पूरी मानवता को चुकानी पड़ रही है कीमत : उद्घाटन सत्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टिल के साथ मंच पर सीओपी28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर के साथ शामिल होने वाले मोदी एकमात्र नेता थे। उन्होंने कहा कि पिछली सदी में मानवता के एक छोटे वर्ग ने प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया। हालांकि, पूरी मानवता को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है, खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ में रहने वाले लोगों को।
 
‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर विकासशील और अल्प विकसित देशों के लिए किया जाता है, जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि केवल अपने हितों के बारे में सोचना दुनिया को केवल अंधकार में ले जाएगा।
 
मोदी का बयान इस संदर्भ में आया है कि गरीब और विकासशील देशों को अमीर देशों द्वारा ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के कारण बढ़ते तापमान से बदलती जलवायु के परिणामस्वरूप बाढ़, सूखा, गर्मी, शीत लहर जैसी जलवायु संबंधी चरम घटनाओं का खामियाजा भुगतना पड़ता है।
 
प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और अनुकूलन के बीच संतुलन बनाए रखने का आह्वान किया और कहा कि दुनिया भर में ऊर्जा रूपांतरण ‘न्यायसंगत और समावेशी’ होना चाहिए। उन्होंने विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए अमीर देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का आह्वान किया।
 
अरब टन तक कम हो सकता है कार्बन उत्सर्जन : प्रधानमंत्री ‘पर्यावरण के लिए जीवन शैली (लाइफ अभियान)’ की पैरोकारी कर रहे हैं, देशों से धरती-अनुकूल जीवन पद्धतियों को अपनाने और गहन उपभोक्तावादी व्यवहार से दूर जाने का आग्रह कर रहे हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि यह दृष्टिकोण (लाइफ अभियान) कार्बन उत्सर्जन को दो अरब टन तक कम कर सकता है।
 
उन्होंने देशों से मिलकर काम करने और जलवायु संकट के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने का आह्वान किया। मोदी ने कहा कि हम एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे और एक-दूसरे का समर्थन करेंगे। हमें सभी विकासशील देशों को वैश्विक कार्बन बजट में अपना उचित हिस्सा देने की जरूरत है।
 
यदि भारत का सीओपी33 की मेजबानी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह इस साल की शुरुआत में जी20 शिखर सम्मेलन के बाद देश में अगला बड़ा वैश्विक सम्मेलन होगा।
 
भारत ने 2002 में नई दिल्ली में सीओपी8 की मेजबानी की, जहां देशों ने दिल्ली मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र को अपनाया, जिसमें विकसित देशों द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के प्रयासों का आह्वान किया गया।
webdunia
जलवायु विज्ञान कार्बन बजट को ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के रूप में परिभाषित करता है जो ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के एक निश्चित स्तर (इस मामले में 1.5 डिग्री सेल्सियस) तक उत्सर्जित किया जा सकता है।
 
विकसित देशों ने पहले ही वैश्विक कार्बन बजट का 80 प्रतिशत से अधिक उपभोग कर लिया है, जिससे विकासशील और गरीब देशों के पास भविष्य के लिए बहुत कम ‘कार्बन स्पेस’ बचा है। मोदी ने यह रेखांकित किया कि भारत दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी का घर है, लेकिन वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में इसकी हिस्सेदारी 4 प्रतिशत से कम है।
 
भारत ने 9 साल पहले हासिल किए लक्ष्य : उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की उन कुछ अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अपने एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर है। भारत ने अपने उत्सर्जन तीव्रता संबंधी लक्ष्यों को निर्धारित समय सीमा से 11 साल पहले और गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्यों को निर्धारित समय से नौ साल पहले हासिल कर लिया। उन्होंने कहा कि भारत यहीं नहीं रुका है, हम महत्वाकांक्षी बने हुए हैं।
 
देश का लक्ष्य 2005 के स्तर से 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत संचयी विद्युत स्थापित क्षमता हासिल करना है। इसने 2070 तक ‘नेट जीरो’ अर्थव्यवस्था बनने के लिए भी प्रतिबद्धता जताई है।
 
इस वर्ष जी20 की अध्यक्षता के तहत भारत ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने के लिए हरित विकास समझौते को लेकर दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से आम सहमति प्राप्त की। (भाषा) 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

देश में बिजली खपत बढ़ी, नवंबर में 8.5 प्रतिशत बढ़कर रही 119.64 अरब यूनिट