लोकसभा चुनाव में 60 साल बाद तीसरी बार सत्ता में वापस आने की उपलब्धि हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी सरकार ने 58 साल वह फैसला ले लिया जो उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के लिए किसी बड़े तोहफे से कम नहीं है। मोदी 3.0 सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर लगा प्रतिबंध अब हटा लिया गया है। गृह मंत्रालय की तरफ से इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। ऐसा करके मोदी 3.0 सरकार ने एक बड़े एजेंडे को पूरा कर दिया है।
RSS को लेकर क्या है मोदी सरकार का आदेश?- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर 1966 से रोक लगी थी, जिससे अब मोदी सरकार ने हटा लिया है। भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर आदेश की कॉपी शेयर करते हुए लिखा कि 58 साल पहले जारी एक असंवैधानिक निर्देश को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने वापस ले लिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि मोदी सरकार ने 58 साल पहले यानी 1966 में सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने पर लगाया गया असंवैधानिक प्रतिबंध हटा दिया है. यह आदेश शुरू में ही पारित नहीं होना चाहिए था।
इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था, क्योंकि 7 नवंबर 1966 को संसद में गौ हत्या के खिलाफ एक बहुत बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था। लाखों की संख्या में RSS-जनसंघ ने इसका समर्थन जुटाया था. पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए थे। 30 नवंबर 1966 को RSS-जनसंघ के प्रभाव से डरी हुई इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों के RSS में शामिल होने पर रोक लगा दी थी।
लोकसभा चुनाव में RSS और भाजपा में दिखी थी तल्खी-लोकसभा चुनाव में भाजपा और आरएसएस में तल्खी साफ तौर पर देखने को मिली थी। चुनाव के दौरान जिस तरह से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने संघ को लेकर बयान दिया उससे भाजपा और संघ के बीच की तल्खी को जगजाहिर कर दिया था। दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान अपने एक इंटरव्यू में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे। हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं। इंटरव्यू के दौरान जब भाजपा अध्यक्ष से पूछा गया कि क्या भाजपा को अब आरएसएस के समर्थन की जरूरत नहीं है।
भाजपा और संघ की इस तल्खी खामियाजा भाजपा को उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में उठाना पड़ा था। भाजपा उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में मात्र 35 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। दरअसल भाजपा के लिए आरएसएस जो जमीन पर काम करता है, उसका फायदा भाजपा को चुनाव में होता है, लेकिन इस बार संघ वैसा एक्टिव नहीं रहा है जैसा वह 2014 और 2019 मे था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आपसी समन्वय पर इस बार कई सवाल उठे।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पिछले दो कार्यकाल में संघ के एजेंडे को तेजी से पूरा किया था। 2019 में केंद्र में दूसरी बार सत्ता में वापस आने के बाद मोदी सरकार ने अपने संसद के पहले सत्र में ही संघ के सबसे बड़े एजेंडे ट्रिपल तलाक पर कानून और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बड़े फैसले किए थे।