गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- सिया राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी। अर्थात प्राणिमात्र में भगवान जानकर उन्हें प्रणाम करना चाहिए। वर्तमान संदर्भ में देखें तो जय श्रीराम उद्घोष के अर्थ ही बदल गए हैं। सांसदों की शपथ के समय भी लोकसभा में जय श्रीराम का नारा गूंजा और झारखंड में सड़क पर भी। लेकिन, बदनामी तो राम की ही हुई।
हालांकि तुलसी के राम मर्यादित आचरण करते हैं, वे योद्धा हैं फिर भी सौम्यता की मूर्ति हैं। दूसरी ओर आज के दौर में रामभक्तों का जो रूप सामने आ रहा है, वह कहीं भी आततायी रावण को वध करने वाले राम से तो बिलकुल भी मेल नहीं खाता। पिछले दिनों संसद में भी जब एमआईएम सांसद और मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी शपथ ले रहे थे तब भी लोकसभा में जयश्रीराम के नारे गूंजे थे।
संसद में तो खैर राम के नाम से कटाक्ष किया गया, लेकिन सड़क पर जय श्रीराम के नारों के उद्घोष के बीच एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि गंभीर हालत में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। मामला झारखंड का है, जहां 18 जून को एक मुस्लिम युवक की 18 घंटे तक बुरी तरह पिटाई की गई, जिसकी 22 जून शनिवार को इलाज के दौरान मौत हो गई।
भीड़ ने चोरी के शक में तबरेज अंसारी नामक इस युवक पर हमला किया था, जो कि ईद मनाने के लिए महाराष्ट्र से अपने गांव खरसवां पहुंचा था। सवाल यह भी क्या किसी को चोरी के शक में इस हद तक पीटा जाए कि उसकी मौत हो जाए। यदि मान भी लिया जाए कि उसने चोरी की थी तो उसे पुलिस के हवाले किया जाना चाहिए था कि पुलिस जांच कर उसे सजा दिलवाती, मगर दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ, भीड़ ने ऑन द स्पॉट अपना फैसला कर लिया।
इतना ही नहीं भीड़ ने युवक से जय श्रीराम और जय हनुमान के नारे भी लगवाए। तबरेज ने भीड़ के दबाव में जय श्रीराम के नारे भी लगाए, लेकिन भीड़ ने उसे बख्शा नहीं, पीटना जारी रखा। उसे गालियां भी दी गईं। अंसारी की कुछ समय बाद शादी भी होने वाली थी।
राम भी इस तरह की घटनाओं से खुश नहीं होंगे। उन्होंने तो वनवासी शबरी के जूठे बेर खाने में भी संकोच नहीं किया था साथ ही शत्रु के भाई विभीषण को भी गले लगा लिया था। हकीकत में, इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर ये तथाकथित और स्वयंभू रामभक्त राम को ही बदनाम कर रहे हैं।