मेटावर्स पूरी दुनिया में आज इस एक शब्द का हल्ला है। वजह है फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग। जुकरबर्ग ने अपनी सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक के नाम को बदलने का ऐलान किया है। अब इसका नया नाम 'मेटा' होगा। इसके पीछे भविष्य की तकनीक मेटावर्स है। मेटावर्स वो तकनीक है, जो वर्चुअल और रियल दुनिया के बीच का फर्क बहुत हद तक कम कर देगा।
इसी तकनीक पर फोकस करने के लिए फेसबुक का नाम बदलने की कवायद की गई है। जुकरबर्ग ने कहा, 'मेटावर्स प्रोजेक्ट का मिशन पूरा करने के लिए हम खुद को री-ब्रांड कर रहे हैं। अब हमारे लिए फेसबुक फर्स्ट की जगह मेटावर्स फर्स्ट होगा।'
ऐसे में जानना दिलचस्प होगा कि मेटावर्स शब्द कहां से आया और पहली बार ये कहां सुना और पढा गया था।
बता दें कि साइंस फिक्शन स्नो क्रैश पर एक बेहद लोकप्रिय नॉवेल है, जिसे अमेरिकन लेखक नील स्टीफेंसन ने लिखा है। इसी साइंस फिक्शन में मेटावर्स शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया था। इस नॉवेल की कहानी में रियल दुनिया यानी हकीकत की दुनिया के लोग वर्चुअल वर्ल्ड में प्रवेश करते हैं और इस तरह उसकी कहानी आगे चलती है।
यह नॉवेल 1992 में प्रकाशित हुआ था। साइंस फिक्शन के बारे में जानने वाले लोग आज भी इसी नॉवेल को पढ़ना पसंद करते हैं। इसमें साइंस के अलावा कम्प्यूटर, क्रिप्टोकरेंसी, धर्म और फिलोसॉफी आदि कई विषयों पर चर्चा की गई है। इसी के तहत मेटावर्स शब्द का इस्तेमाल किया गया है।
क्या मेटावर्स कोई खतरा है?
पिछले दिनों प्राइवेसी को लेकर काफी हो-हल्ला रहा। सरकार और ट्विटर और फेसबुक के बीच निजता को लेकर कई बार मुद्दे भी उठे। जब वर्चुअल वर्ल्ड और इंटरनेट की बात होती है तो सबसे पहले प्राइवेसी की सुरक्षा ही दिमाग में आती है। हर आदमी अपनी प्राइवेसी को बचाना चाहता है, कोई नहीं चाहता कि उसकी निजी बातों, रिलेशल, गतिविधि, रूचि, अरूचि समेत उसके परिवार आदि जैसी तमाम चीजों के बारे में किसी को पता चले। मेटावर्स वो तकनीक है, जहां रियल और वर्चुअल दुनिया के बीच की खाई को बहुत हद तक कम कर देगा, ऐसे में जाहिर है जब इतने व्यापक रूप से तकनीक का इस्तेमाल होगा तो आपकी प्राइवेसी को खतरा होगा। कंपनियां हमारे जीवन, निजी डेटा और हमारी निजी बातचीत पर नियंत्रण कर सकेंगी।
एआई से बदलेगी दुनिया!
साल 2013 में एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था हर। इस फिल्म में थिओडोर ट्वॉम्बली नाम का एक लेखक अपनी लेखन शैली सुधारने के लिए एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम को खरीदकर उसका सहारा लेता है। जब उसे एआई की क्षमताओं के बारे में पता चलता है तो वो इसे और ज्यादा एक्सप्लोर करता है, इसी सिस्टम की जरिए वो रोजाना एक लड़की से बात करता है, बाद में थिओडोर को उससे प्यार हो जाता है, जबकि वो लड़की एआई सॉफ्टवेयर की महज एक आवाजभर होती है। लेकिन रियल टाइम में थिओडोर की भावनाओं को नियंत्रित करती है। यह फिल्म एआई तकनीक का एक नमुनाभर थी, अब ऐसे में अगर कोई एआई से भी ज्यादा आधुनिक तकनीक ईजाद होती है तो अंदाजा लगाइए कि दुनिया और इसमें रहने वाले इंसान की जिंदगी कितनी बदलने वाली है।