नई दिल्ली। सरकार द्वारा रुपे और भीम-यूपीआई के जरिये भुगतान पर एमडीआर शुल्क समाप्त किए जाने के चलते रिजर्व बैंक को 2020 में बैंकों को नि:शुल्क लेनदेन के लिए करीब 1,800 करोड़ रुपए देने पड़ सकते हैं।
आईआईटी बंबई के प्रोफेसर आशीष दास द्वारा तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 और 2019 में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 2,000 रुपए तक के सौदे के लिए डेबिट कार्ड और भीम यूपीआई से भुगतान पर एमडीआर समर्थन उपलब्ध कराया था।
उन्होंने कहा कि आगे चलकर यदि रिजर्व बैंक डेबिट कार्ड और भीम-यूपीआई पर आवश्यक समर्थन उपलब्ध कराता है तो बेहतर होगा कि इसका लॉजिस्टिक्स प्रबंधन एनपीसीआई पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन देने के लिए पिछले महीने घोषणा की थी कि रुपे और यूपीआई प्लेटफार्म के जरिये भुगतान पर एक जनवरी, 2020 से कोई मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) शुल्क नहीं लगेगा।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने जो एमडीआर मूल्य ढांचा तैयार किया है उसके तहत रुपे डेबिट कार्ड के लिए यह 2,000 रुपए तक के सौदे के लिए 0.4 प्रतिशत (लेनदेन क्यूआर कोड आधारित होने की स्थिति में 0.3 प्रतिशत) और 2,000 रुपए से अधिक के सौदे के लिए 0.6 प्रतिशत (क्यूआर कोड आधारित लेनदेन पर 0.5 प्रतिशत) होगा। यह अक्टूबर, 2019 से लागू हुआ है। किसी भी लेनदेन पर एमडीआर की सीमा 150 रुपए है।
सरकार ने संकेत दिया है कि रिजर्व बैंक और संबंधित बैंकों को लोगों द्वारा भुगतान के डिजिटल तरीके अपनाने से नकदी के रखरखाव पर खर्च में जो बचत होगी उससे वे इस लागत का बोझ उठाएंगे।