सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले के बाद प्राइवेट नौकरी करने वाले एक शख्स के पेंशन में 10 या 20 प्रतिशत की नहीं बल्कि 1200 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
हरियाणा टूरिज्म कॉर्पोरेशन की 37 साल की नौकरी में प्रवीण कोहली के वेतन में कभी भी इतनी बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी, जितनी की रिटायरमेंट के 4 साल बाद पेंशन की रकम में हुई। इस साल 1 नवंबर को प्रवीण की पेंशन की राशि में 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई, जिसके बाद उनकी पेंशन की रकम 2,372 रुपए से बढ़कर 30,592 रुपए हो गई।
यह अप्रत्याशित बदलाव अक्टूबर 2016 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद आया जिसमें अदालत ने ईपीएफओ को कर्मचारी पेंशन योजना के तहत 12 याचिकाकर्ताओं की पेंशन को रिवाइज करने का निर्देश दिया था।
दरअसल प्रवीण कोहली समेत कुछ और याचिकाकार्ताओं ने ईपीएफओ से संपर्क कर ईपीएस योगदान पर सीमा को हटाने की मांग की थी और इसे पूरे वेतन पर लागू करने को कहा। ईपीएफओ ने उनकी मांग को खारिज करते हुए 1996 के संशोधन का हवाला दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने ईपीएफओ के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उच्च न्यायालय ने ईपीएफओ के खिलाफ फैसला दिया।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। आखिरकार फैसला कर्मचारियों के हक में आया और कोर्ट ने ईपीएफओ को आदेश मानने कहा, लेकिन इस फैसले को लागू करने में एक साल का वक्त लग गया, लेकिन आखिरकार 1 नवंबर को ईपीएफओ ने कोर्ट के फैसले को लागू कर दिया।
उल्लेखनीय है कि ईपीएफ के तहत आने वाली पेंशन योजना के करीब 5 करोड़ सदस्य हैं। प्राइवेट सेक्टर के हर कर्मचारी को अपनी बेसिक सैलरी में से 12 फीसदी सैलरी और महंगाई भत्ता (डीए) इसमें देना होता है। कंपनी भी कर्मचारी के बराबर ही योगदान करती है। कंपनी के योगदान का 8.33% हिस्सा ईपीएस को जाता है। नौकरी बदलने के दौरान या फिर बेरोजगारी के वक्त पर कर्मचारी अपना ईपीएफ निकालते हैं तब उन्हें ईपीएस का पैसा नहीं दिया जाता है। यह पैसा केवल सेवानिवृत्ति के बाद ही दिया जाता है।