नई दिल्ली, फलों का राजा कहे जाने वाले आम की फसल प्रायः साल में एक बार ही होती है। लेकिन, राजस्थान के एक किसान ने आम की एक ऐसी किस्म विकसित की है, जो पूरे साल फल देने के लिए जानी जाती है।
आम की सदाबहार नामक यह किस्म कोटा जिले के किसान श्रीकृष्ण सुमन (52) द्वारा विकसित की गई है। आम की फसल के प्रमुख रोगों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता रखने वाली आम की इस किस्म की खेती राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली और हरियाणा समेत देश के अन्य कई राज्यों में हो रही है।
लंगड़ा जैसी आम की प्रचलित किस्म के मुकाबले सदाबहार, जो एक ड्वार्फ किस्म है, के फल अधिक मीठे हैं। आम की इस किस्म के वृक्ष का आकार बहुत बड़ा नहीं होने के कारण यह किचन गार्डनिंग का हिस्सा भी बन सकता है। इसे आरंभ में काफी समय तक गमलों में भी उगाया जा सकता है।
इसके फलों का गूदा मीठा के साथ गहरा नारंगी होता है, और गूदे में बहुत कम फाइबर की मात्रा पायी जाती है, जो इसे अन्य किस्मों से अलग करती है। आम की इस किस्म में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है। करीब 5-6 टन/ हेक्टेयर पैदावार भी आम की इस किस्म को खास बनाती है।
यह किस्म चयन पद्धति एवं ग्राफ्टिंग (कलम बांधना) के जरिये विकसित की गई है। कई प्रयोगधर्मी किसान इसी तरीके से फसलों की किस्मों में सुधार करते रहते हैं। आम की इस किस्म के बारे में बताया जा रहा है कि ग्राफ्टिंग के दो वर्षों के बाद इसके वृक्ष पर फल लगने लगते हैं।
बात वर्ष 2000 की है, जब कोटा की लाडपुरा तालुका के गांव गिरधपुरा के किसान श्रीकृष्ण सुमन ने यह अनुभव किया कि उनके बगीचे में आम का एक ऐसा वृक्ष है, जिसकी बढ़ने की दर दूसरे वृक्षों की तुलना में अधिक है। उन्होंने पाया कि इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की हैं, और इस पर साल की तीनों ऋतुओं में बौर लगते हैं।
आम की इस किस्म के लक्षणों का वह निरंतर बारीकी से अवलोकन करते रहे। इसी के साथ-साथ उन्होंने इस किस्म की पांच कलमें भी तैयार कीं। इन किस्मों को विकसित करने में श्रीकृष्ण सुमन को करीब 15 वर्ष लग गए।
कलमें तैयार करने से लेकर उनके संरक्षण एवं संवर्द्धन के दौरान उन्होंने पाया कि कलम लगाने के दो वर्षों के बाद आम की इस किस्म पर फल लगने शुरू हो जाते हैं। किसी को भी जानकर हैरानी हो सकती है कि आम की यह खास किस्म विकसित करने वाले श्रीकृष्ण सुमन दूसरी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़कर माली के पारिवारिक पेशे में हाथ बंटाने लगे थे।
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत कार्यरत स्वायत्तसाशी संस्थान नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) द्वारा इस किस्म को मान्यता दी गई है।
एनआईएफ की पहल पर बंगलूरू स्थित भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) द्वारा इस किस्म का मूल्यांकन किया गया है। जयपुर के जोबनेर स्थित एसकेएन एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों द्वारा आम की इस किस्म की फील्ड टेस्टिंग भी की गई है।
इस किस्म का पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम तथा आईसीएआर- नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (एनवीपीजीआर), नई दिल्ली के तहत पंजीकरण कराने की प्रक्रिया चल रही है।
राष्ट्रपति भवन स्थित मुगल गार्डन में भी आम की इस किस्म का पौधा लगाया गया है। सदाबहार किस्म विकसित करने के लिए श्रीकृष्ण सुमन को एनआईएफ का नौवां राष्ट्रीय तृणमूल नवप्रवर्तन एवं विशिष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार (नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन ऐंड ट्रेडिशनल नॉलेज अवार्ड) दिया गया है। कई अन्य मंचों पर भी उनके कार्य को सराहा गया है। अलग-अलग चैनलों के माध्यम से एनआईएफ किसानों, किसान नेटवर्कों, सरकारी संगठनों, राज्यों के कृषि विभागों और स्वयंसेवी संगठनों तक आम की इस नई किस्म के बारे में जानकारी पहुंचाने का प्रयास कर रहा है।
वर्ष 2017 से 2020 की तीन वर्षों की अवधि में श्रीकृष्ण सुमन को देश एवं विदेश से आम की इस की 8000 से अधिक कलमों के आर्डर मिले हैं। वर्ष 2018 से 2020 के दौरान श्रीकृष्ण सुमन आंध्र प्रदेश, गोवा, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली समेत देश के विभिन्न राज्यो में आम की सदाबहार किस्म के 6000 से अधिक पौधे भेज चुके हैं। इसके अलावा विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों एवं शोध संस्थानों में ये पौधे लगाए गए हैं।