Mahua Moitra news in hindi : पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में संसद से निष्कासित की गईं तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा को 14 साल के राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। बैंकर से नेता बनने, कांग्रेस से तृणमूल कांग्रेस में आए और फिर सांसद बनने का उनका सफर बेहद रोमांचक है।
कुछ समय के लिए संसदीय करियर पर अचानक लगे विराम के बावजूद विपक्ष के अटूट समर्थन ने एक अलग तस्वीर पेश करते हुए वर्तमान भारतीय राजनीति में मोइत्रा का गहरा प्रभाव दिखाया है। कृष्णानगर लोकसभा सीट से पहली बार संसद पहुंचीं मोइत्रा को शुक्रवार को संसद से निष्कासित कर दिया गया।
लोकसभा की आचार समिति की रिपोर्ट में उन्हें अनैतिक एवं अशोभनीय आचरण के लिए जिम्मेदार ठहराया गया जिससे उनके निष्कासन का रास्ता बना। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने हंगामेदार चर्चा के बाद लोकसभा में मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव पेश किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। चर्चा में मोइत्रा को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया।
अपने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए मोइत्रा ने इस फैसले की तुलना कंगारू अदालत द्वारा सजा दिए जाने से करते हुए आरोप लगाया कि सरकार लोकसभा की आचार समिति को, विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर करने का हथियार बना रही है।
कैसा रहा महुआ का राजनीतिक सफर : असम के कछार जिले में 1974 में जन्मी मोइत्रा की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में हुई और फिर वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गई। न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज़ में निवेश बैंकर रहीं
मोइत्रा ने राहुल गांधी की 'आम आदमी का सिपाही' पहल से प्रेरित हो कर राजनीति का रुख किया। उन्होंने 2009 में कांग्रेस की युवा इकाई में शामिल होने के लिए लंदन में अपना हाई-प्रोफाइल बैंकिंग करियर त्याग दिया। कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई में तैनात की गईं मोइत्रा ने पार्टी के नेता सुब्रत मुखर्जी के साथ मिलकर काम किया।
पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार के खिलाफ बदलाव की बयार के बीच मोइत्रा और मुखर्जी 2010 के कोलकाता नगर निगम चुनाव से महज कुछ दिन पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। इसमें ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी ने जीत हासिल की।
2011 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी से टिकट न मिलने के बावजूद मोइत्रा ने धैर्यपूर्वक इंतजार किया और 2016 के विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने पर करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की।
उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया लेकिन उनके ओजस्वी भाषण और वाद-विवाद कौशल ने उन्हें राष्ट्रीय मीडिया में पार्टी की प्रमुख प्रवक्ता बना दिया। मोइत्रा को 2019 में कृष्णानगर लोकसभा सीट से टिकट मिला और वह विजयी हुईं।
ज्यादा अनुभव न होने के बावजूद संसद में मोइत्रा के जोशीले भाषणों ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया और वह
टेलीविजन पर होने वाली बहसों में टीएमसी की तरफ से सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बन गईं।
अपने मन की बात कहने के लिए पहचानी जाने वाली मोइत्रा को अकसर संगठन के मामलों में पार्टी से मतभेदों का सामना करना पड़ा और ममता बनर्जी ने उन्हें सार्वजनिक रूप से फटकार भी लगाई।
पिछले दो साल में विवाद मोइत्रा का पर्याय बन गए जिसमें पत्रकारों को 'दो कौड़ी' का बताने वाली टिप्पणी भी शामिल हैं जिसके कारण स्थानीय बांग्ला मीडिया ने लंबे समय तक उनका बहिष्कार किया था।
उन्होंने पिछले साल एक सम्मेलन में देवी काली को मांस खाने वाली और शराब पीने वाली कह कर देशभर में
राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था।
राजद्रोह कानून की मुखर विरोधी मोइत्रा कानूनी लड़ाइयों में भी सक्रियता से शामिल रही हैं। उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की हुई है।
पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले के बीच मोइत्रा ने कहा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार को चुनौती देने की वजह से परेशान किया गया। उन्होंने भारी जनादेश के साथ संसद में लौटने का संकल्प जताया।
भले ही इस विवाद से सांसद के रूप में उनका पहला कार्यकाल अचानक समाप्त हो गया लेकिन टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व के अटूट समर्थन के साथ पार्टी के भीतर उनका कद निश्चित रूप से बढ़ा है।
विपक्ष भी मोइत्रा के साथ है। भाजपा के खिलाफ हमले बोलने के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का उनके साथ खड़े रहना, भारतीय राजनीति के जटिल क्षेत्र में मोइत्रा के प्रभाव को दर्शाता है। (भाषा)
Edited by : Nrapendra Gupta