महाराष्ट्र में अपने 30 साल पुराने साथी को खोने वाली भाजपा की अब गठबंधन को लेकर दूसरी अग्निपरीक्षा बिहार में होने जा रही है। शिवसेना के बाद NDA में शामिल दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के उससे अलग होने की अटकलें तेज हो गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू के भाजपा से अलग होने की अटकलें लगने की सबसे बड़ी ठोस वजह उसका चुनावी राज्य झारखंड में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ना माना जा रहा है। बिहार से सटे झारखंड में नीतीश की पार्टी का अलग होकर चुनाव होकर लड़ना उसके भाजपा के साथ बिहार में बने गठबंधन के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। इसके साथ ही झारखंड के बाद दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी नीतीश की पार्टी ने सभी 70 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है।
नीतीश और भाजपा के संबंधों को लेकर लंबे समय से अटकलों का बाजार गरम है। लोकसभा चुनाव NDA के साथ लड़ने वाली जेडीयू के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने का फैसला भी दोनों के रिश्तों में आई खटास की ओर इशारा कर रहा है। अब जब बिहार विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा हुआ है तब महाराष्ट्र के उलटफेर का सीधा असर बिहार में भी देखने को मिलेगा ऐसा सियासत के जानकार मान रहे है। महाराष्ट्र के घटनाक्रम के बाद अब सबकी निगाहें भाजपा और जेडीयू के रिश्तों पर लग गई है और माना जा रहा है कि भाजपा को बिहार में भी गठबंधन को लेकर एक अग्निपरीक्षा से जूझना होगा।
‘महाराष्ट्र मॉडल’ पर नजर – महाराष्ट्र में विचारधारा के आधार पर परस्पर विरोधी होते हुए भी शिवसेना, एनसीपी और भाजपा के गठबंधन ने जिस तरह भाजपा को सूबे की सत्ता में काबिज होने से रोक दिया उसकी गूंज अब बिहार में भी सुनाई देने लगी है। राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी का रुतबा रखने वाली राष्ट्रीय जनता दल के सबसे वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार में भी महाराष्ट्र के तर्ज पर एक नया गठबंधन बनाने की वकालत की है जिसका एक मात्र उद्धेश्य भाजपा को सत्ता में आने से रोकना होगा।
रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि बिहार में अगर गैर भाजपा दल साथ आए और महाराष्ट्र फॉर्मूला लागू हुआ तो भाजपा की निश्चित तौर पर हार होगी। उन्होंने कहा कि भाजपा को हराने के लिए नीतीश कुमार को आरजेडी के साथ आने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। रघुवंश प्रसाद ने राज्य में भाजपा को रोकेने के लिए भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की बात कही है। रघुवंश प्रसाद का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि महाराष्ट्र में भाजपा को पटखनी देने वाली शिवसेना की नजर अब एनडीए के उन सहयोगियों पर लग गई है जो भाजपा से नाराज चल रहे है जिसमें सबसे पहला नाम जेडीयू के नेता नीतीश कुमार का ही है।
विचारधारा का टकराव – बिहार में वर्तमान में सत्तारुढ़ भाजपा और जेडीयू भले ही एक साथ नजर आ रही लेकिन विचारधारा के आधार पर दोनों के रास्ते एकदम अलग - अलग है। विचारधारा पर दोनों ही पार्टियों में सबसे नया टकराव NRC, जनसंख्या नियंत्रण कानून और धारा 370 के मुद्दें पर देखने को मिला है। एक ओर भाजपा पूरे देश में NRC लागू करने की बात कह रही है तो वहीं जेडीयू असम में ही NRC को विरोध कर चुकी है और पार्टी में नीतीश के बाद दूसरे सबसे बड़े नेता प्रशांत किशोर खुलकर NRC का विरोध कर चुके है। वही
जनसंख्या नियंत्रण को लेकर नीतीश साफ कह चुके है कि जनसंख्या वृद्धि के लिए किसी एक धर्म के लोगों को टारगेट करना सही नहीं है। इससे पहले जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दें पर भी नीतीश भाजपा के रुख से सहमत नहीं नजर आए थे। बिहार में बाढ़ को लेकर भी भाजपा के बड़े नेताओं ने जिस तरह सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहरा दिया उससे भी रिश्तें सुधरने की बजाए बिगड़ते ही जा रहे है।
दोहरा पाएगा इतिहास ? - 2014 में केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने राज्यों में भाजपा की सरकार बनाने के लिए सियासत का जो अश्वमेध यज्ञ शुरु किया तो उसके घोड़े को सबसे पहले बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले महागठबंधन ने रोका था। 2015 में बिहार में आरजेडी ,जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन ने भाजपा को बुरी तरह मात दी थी। विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल लालू की पार्टी आरजेडी सबसे बड़े दल के रुप में उभरी थी जिसने 81 सीटों पर जीत का परचम लहराया था वहीं जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटों मिली थी।
बिहार में महागठबंधन ने 243 विधानसभा में अपने अन्य सहयोगी छोटे दलों के साथ 178 सीटों पर कब्जा कर लिया था। वहीं पीएम मोदी और शाह की ताबड़तोड़ रैलियों के बाद भी भाजपा के खाते में केवल 53 सीटें ही आ पाई थी। हलांकि बिहार में महागठबंधन की एकता ज्यादा दिन नहीं चल पाई और दो साल के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग होने का एलान करेते हुए जुलाई में भाजपा के सर्मथन से सरकार बनी ली।
भाजपा के राष्ट्रीय अमित शाह भले ही यह साफ कर चुके हो कि 2020 में गठबंधन की ओर से नीतीश ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे लेकिन अब महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है। अब देखना होगा कि नीतीश कुमार और उनके सिपाहसलार प्रशांत किशोर भाजपा पर भरोसा कर उसके साथ ही जाते है या महाराष्ट्र फॉर्मूले को अपनाते हुए एक बार 2015 का इतिहास दोहराते हुए दिखाई देंगे।