लिव इन रिलेशन में रह रही एक महिला ने जब प्रयागराज हाईकोर्ट से अपनी सुरक्षा के लिए याचिका लगाई तो कोर्ट ने उसकी अपील ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा जो शादीशुदा महिला अपने पति को छोड़कर किसी दूसरे मर्द के साथ रह रही है और वो सुरक्षा की मांग करती है तो उसे सुरक्षा देने का मतलब ऐसे संबंधों को सहमति देना है। अगर महिला को किसी से खतरा है तो वह पुलिस की मदद ले सकती है।
प्रयागराज, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दूसरे व्यक्ति के साथ 'लिव इन' संबंध में रह रही एक शादीशुदा महिला की उसके पति से सुरक्षा की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
यह याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति केजे ठाकर और न्यायमूर्ति सुरेश चंद की पीठ ने कहा, हम ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा देने के खिलाफ नहीं हैं जो अन्य समुदाय, जाति के व्यक्ति के साथ रहना चाहते हैं
पीठ ने कहा, यदि याचिकाकर्ता अनीता से कानूनी रूप से विवाह करने वाला देवेंद्र कुमार अपनी पत्नी के साथी (दूसरे याचिकाकर्ता) के घर में जबरदस्ती घुसा तो यह आपराधिक विवाद के दायरे में आता है, जिसके लिए अनीता पुलिस के पास जा सकती है
अदालत ने कहा, हालांकि, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पहले से विवाहित और कानून का पालन करने वाला कोई भी व्यक्ति अवैध संबंध के लिए इस अदालत से सुरक्षा की मांग नहीं कर सकता, क्योंकि अवैध संबंध इस देश के सामाजिक ताने-बाने के दायरे में नहीं आता
अदालत ने अनीता और उसके साथी द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए उन पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया। अदालत ने किसी तरह की सुरक्षा भी देने से मना कर दिया, क्योंकि यह एक तरह से ऐसे अवैध संबंधों को सहमति देने जैसा होगा।
महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति उसे मारा पीटा करता था जिसकी वजह से उसने उसे छोड़ दिया और अपने साथी के साथ रहना शुरू कर दिया। लेकिन हाल ही में उसका पति उसके साथी के घर में घुस गया और उन्हें परेशान करने लगा था।
अदालत ने अनीता के पति के साथ उसके मतभेदों के आरोपों पर कहा, “यदि अनीता का अपने पति से कोई मतभेद है तो उसे सबसे पहले अपने पति से अलग होने के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी। (भाषा)