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डॉ. शरद पगारे : ऐतिहासिक प्रेमकथाओं के 'व्यास'

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वृजेन्द्रसिंह झाला

Sharad Pagare passed away: पिछले मार्च की ही तो बात है, जब वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शरद पगारे जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उस समय उनकी चाल, बातचीत और उत्साह को देखकर बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि वे इतनी जल्दी दुनिया को अलविदा कह देंगे। दरअसल, नईदुनिया के पूर्व प्रधान संपादक स्व. अभय छजलानी के प्रथम पुण्यतिथि प्रसंग (23 मार्च, 2024) के सिलसिले में उनका एक वीडियो रिकॉर्ड करना था। उस समय उन्होंने बताया कि अभय जी किस तरह मालवा और निमाड़ के लेखकों को प्रोत्साहित करते थे, उनकी रचनाओं को नईदुनिया में प्रमुखता से स्थान देते थे। यदि अभय जी को आलेख में कुछ काट-छांट भी करनी होती थी तो वे लेखक से इस संबंध में परामर्श जरूर करते थे। अभय जी की और भी कई विशेषताओं के बारे में उन्होंने बताया था।
 
बातों ही बातों में उन्होंने अपने ऐतिहासिक उपन्यास 'पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी' की मुख्‍य पात्र धर्मा के बारे में बताया, जो कि सम्राट अशोक की मां थी। चम्पा के एक गरीब दरिद्र ब्राह्मण की बेटी थी धर्मा। अपूर्व सुंदरी, अनुपम रूपसी। उसके पिता ने धर्मा को पाटलिपुत्र के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र युवराज बिन्दुसार को भेंट में दे दिया। फिर मालिश वाली नाइन से लेकर उसके साम्राज्ञी बनने की पूरी कहानी है इस उपन्यास में। ALSO READ: इंदौर के जाने माने साहित्यकार डॉ. शरद पगारे का निधन
 
उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि इस ऐतिहासिक प्रेमकथा के कुछ सूत्र टूटे हुए थे। जब उनसे पूछा कि आपने इन्हें जोड़ने के लिए क्या किया? उन्होंने कहा कि मैंने वही किया जो एक साहित्यकार या कथाकार करता है। अर्थात मैंने उन टूटे हुए सूत्रों को जोड़ने के लिए अपनी कल्पना का सहारा लिया और उसे पूरा किया। पगारे जी को 'पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी' के लिए कुछ समय पहले ही प्रतिष्ठित व्यास सम्मान से नवाजा गया था, जो उनके व्यक्तित्व से मेल भी खाता है। जिस तरह का उनका सृजन था, उसे देखते हुए उन्हें ऐतिहासिक प्रेमकथाओं का व्यास (वेदव्यास) भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 
 
शाहजहां और गुलारा बेगम तथा औरंगजेब और बेगम जैनाबादी की प्रेमकथाओं पर आधारित उनके उपन्यास काफी चर्चा में रहे। उन्होंने मालवा की ऐतिहासिक प्रेमकथाओं पर भी प्रमुखता से कलम चलाई। इनमें वासवदत्ता-उदयन, बिंदुसार-धर्मा, सम्राट अशोक-देवी, गर्द भिल्ल-साध्वी सरस्वती, मुंज-मृणालवती, रूपमती-बाज बहादुर प्रमुख हैं। उनकी रचनाओं के कई भाषाओं में अनुवाद भी हुए। 
 
5 जुलाई 1931 में खंडवा मध्य प्रदेश में जन्मे शरद पगारे ने इतिहास विषय में एमए, पीएचडी की। मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में 3 से अधिक दशकों तक अध्यापन कार्य किया। रिसर्च के साथ ही ऐतिहासिक एवं साहित्यिक कथाओं व उपन्यासों का लेखन किया। वर्ष 1987-88 में रोटरी इंटरनेशनल इल्योंनाय अमेरिका द्वारा विश्व से 10 चयनित प्रोफेसरों में डॉ. शरद पगारे को विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय बैंकॉक, थाईलैंड में अध्यापन हेतु भेजा गया था। पगारे जी के नाम पर और भी कई उपलब्धियां दर्ज हैं। 
 
पगारे जी की सबसे बड़ी खूबी थी वे छोटे-बड़े सभी लोगों से सहजता से मिलते थे। जब भी उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने कभी भी व्यस्तता या वक्त नहीं होने का बहाना नहीं बनाया। वे हमेशा सहजता से मिले। नईदुनिया से उनका काफी जुड़ाव रहा। इसी के चलते वेबदुनिया से भी उनका गहरा जुड़ाव रहा। वे हमेशा कहते थे कि वेबदुनिया में साहित्य को अच्छा स्थान दिया जाता है। आज पगारे जी हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन अपनी रचनाओं के माध्यम से वे अपने प्रशंसकों के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे। वेबदुनिया परिवार डॉ. शरद पगारे को श्रद्धासुमन अर्पित करता है और शोक संतप्त परिजनों के प्रति संवेदना प्रकट करता है। 

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