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3.48 करोड़ की आबादी वाले केरल पर क्यों इतना मेहरबान है यूएई? जानिए

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-आकांक्षा दुबे
केरल में बाढ़ से निपटने के लिए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की सहायता राशि सुर्खियों में आ गई है। यूएई ने केरल के लोगों की मदद के लिए 700 करोड़ रुपए की पेशकश की, जिसे लेकर राजनीतिक खींचतान शुरू हो गई।
 
केंद्र सरकार ने जब अपनी एक नीति का हवाला देते सहायता राशि न लेने की बात कही तो इससे राज्य के कई नेता असंतुष्ट हो गए और कहा कि सरकार को दोबारा अपने फैसले पर विचार करना चाहिए। यूएई कह चुका है कि केरल के लोग हमेशा से उनकी सफलता की कहानी का हिस्सा रहे हैं और अभी भी हैं।
 
विशेषज्ञों की भी कुछ यही राय है। उनका कहना है कि यूएई का भूतकाल, वर्तमान और भविष्य केरल से जुड़ा हुआ है। ये समझना जरूरी है कि 3.48 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य के लिए यूएई ने इतनी बड़ी मदद राशि क्यों पेश की?
 
इसलिए यूएई के लिए महत्वपूर्ण है केरल
- यूएई के भारतीय प्रवासियों में सबसे ज्यादा केरल से हैं। 
- पूरे मध्यपूर्व में केरल के 38 लाख लोग काम कर रहे हैं जिनमें से 70 से 80 फीसदी सऊदी अरब और यूएई में हैं। 
- अशिक्षित श्रमिकों को तौर पर काम करने वाले यहां के लोगों ने यूएई को उसका वर्तमान स्वरूप दिया।
पर्यटन को बढ़ावा देने में भी केरल के लोग आगे। 
- केरल के लोगों का खाड़ी देशों खासतौर पर यूएई में अच्छा नेटवर्क है। कई लोग वर्षों से यहां रह रहे हैं जिनके जरिये कई अन्य केरलवासी नौकरी की तलाश में यूएई आते हैं। पुराने लोगों पर भरोसा करके यूएई की कंपनियां इन्हें नौकरी भी दे देती हैं।
- हिंदी के अलावा मलयालम फ़िल्म इंडस्ट्री का भी यहां की अर्थव्यवस्था में बड़ा सहयोग।
- केरल के लोग यूएई के हेल्थकेयर, रिटेल, शिक्षा, व्यापार, रियल एस्टेट के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। 
- केंद्रीय मंत्री अलफोंस के मुताबिक, पिछले 50 सालों के दौरान केरल ने विदेशी विनिमय के तौर पर काफी योगदान किया है। पिछले साल ही उससे 75,000 करोड़ रुपए आए हैं। 
 
क्या केरल के लिए भारत बदलेगा अपनी 14 साल पुरानी नीति? 
2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आपदा की स्थिति में विदेशी मदद न लेने की नीति अपनाई थी। उनका मानना था कि भारत अब ऐसी समस्याओं से निपट सकता है और उसे दूसरे देशों से मदद की ज़रूरत नहीं है। इस नीति का एक राजनीतिक पहलू भी था। अगर भारत एक देश से मदद लेता है और किसी अन्य देश को मना करता है तो इससे आपसी रिश्ते खराब हो सकते हैं। 
 
2004 तक ली थी मदद : भारत ने 1991 में उत्तरकाशी भूकंप, 1993 में लातूर भूकंप, 2001 में गुजरात भूकंप, 2002 में बंगाल में चक्रवात, और 2004 में बिहार में आई बाढ़ में विदेशी मदद स्वीकार की थी ।
 
पहले भी ठुकरा चुके हैं सहायता : यह पहला मौका नहीं है जब भारत ने विदेशी मदद को ठुकराया हो। 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा में भारत ने रूस, अमेरिका और जापान की ओर से मिली मदद को अस्वीकार कर दिया था। इतना ही नहीं, 2005 में कश्मीर भूकंप और 2014 में कश्मीर में आई बाढ़ के समय भी देश ने विदेशी सहायता लेने से मना कर दिया था। 
 
फिर भी रास्ता खुला : यह नीति केवल विदेशी सरकारों तक ही सीमित है और यह लोगों और गैर सरकारी संगठनों पर लागू नहीं होती। इस तरह संगठनों के जरिये राशि को पीएम रिलीफ फंड या चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड में भेजा जा सकता है।

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