नई दिल्ली। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के प्रख्यात कवि डॉ. केदारनाथ सिंह का आज रात यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वे 84 वर्ष के थे। पिछले एक वर्ष से बीमार चल रहे सिंह को कई निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया था। उनके निधन के समाचार फैलते ही साहित्य जगत में शोक छा गया।
करीब सात दिन पहले उन्हें दोबारा एम्स में भर्ती कराया गया, जहां आज रात करीब आठ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को तीन बजे लोदी रोड स्थित शवदाह गृह में किया जाएगा।
उनके परिवार में उनका एक पुत्र और पांच बेटियां हैं। उनकी पत्नी का निधन कई साल पहले हो गया था। पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि डॉ. सिंह को करीब डेढ़ माह पहले कोलकाता में निमोनिया हो गया था। इसके बाद से वह बीमार चल रहे थे।
केदारनाथ सिंह हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वह अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ ने उन्हें वर्ष 2013 में 49वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10 वें लेखक थे।
डॉ. सिंह जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत कई सम्मान मिले थे और वे साहित्य अकादमी के फैलो भी थे।
केदारनाथ सिंह का जन्म एक जुलाई 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में हुआ था। उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय से 1956 में हिन्दी में एम.ए. और 1964 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
उनकी मुख्य कृतियाँ कविता संग्रह में अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, तालस्ताय और साइकिल, सृष्टि पर पहरा हैं। उनकी आलोचना कृति में कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्द, मेरे साक्षात्कार प्रमुख हैं।
संपादन में उनकी ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका) और शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) के रूप में है। वह दो पत्रिकाओं के संपादक भी थे, इनमें साखी और शब्द शामिल है।
उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान से भी नवाजा गया। डॉ. सिंह के निधन से हिन्दी साहित्य में शोक की लहर दौड़ गई।
प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी, विष्णु खरे, मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, अरुणकमल, आलोक धन्वा समेत अनेक लेखकों ने उनके निधन को एक साहित्य में अपूरणीय क्षति बताया है। साहित्य अकादमी प्रगतिशील लेखक संघ जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच ने भी डॉ. सिंह के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है।