कश्मीरी महिलाओं को धमकी, बुर्के में रहो वरना...

सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। कश्मीरी महिलाओं को एक बार फिर इस्लामिक ड्रेस कोड के नाम पर बंदिशों में बांधने की मुहिम आरंभ की जा चुकी है। इसकी शुरूआत लश्करे तैयबा के विदेशी आतंकियों की ओर से की गई है जो कश्मीर में निजामे मुस्तफा लागू करना चाहते हैं।


पहले भी 18 साल पूर्व ऐसी कोशिश में दुख्तराने मिल्लत मुंह की खा चुका है। लश्कर की ओर से दक्षिण कश्मीर में इस आशय के हस्तलिखित पोस्टर चिपकाए गए हैं। इन पोस्टरों में बुर्का न पहनने वाली कश्मीरी युवतियों व महिलाओं को ‘गंभीर परिणाम’ भुगतने की चेतावनी भी है तो शोपियां कस्बे की उन कुछ महिलाओं की ‘तारीफ’ भी है जिनके प्रति ये पोस्टर कहते थे कि उन्होंने बुर्का अपनाकर इस्लाम का आदर किया है।

वर्ष 2000 में अलगाववादी नेता आसिया अंद्राबी के नेतृत्व वाला दुख्तराने मिल्लत गुट ऐसी नाकाम कोशिश कर चुका है जब उसके सदस्यों ने न सिर्फ रेस्तरां जाने वाली युवतियों के चेहरों पर तेजाब फैंका था बल्कि जबरन तालिबान टाइप बुर्का पहनाने के लिए युवतियों के चेहरों पर रंग भी पोता था। लश्करे तौयबा ऐसा ही कुछ करने का इरादा जता रहा है। ये पोस्टर कहते थे कि कश्मीरी युवतियों को बुर्का ऐसा पहनना होगा जिसमें से सिर्फ उनकी आंखें नजर आएं।

ये पोस्टर कहते थे कि ऐसा न करने वाली महिलाएं और युवतियां परिणामों के लिए खुद जिम्मेदार होंगी। पर इसके लिए कोई भी राजी नहीं है। खासकर ग्रामीण इलाकों की महिलाएं जो अपने पतियों तथा अन्य परिजनों के साथ खेतों में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। उनके बकौल, बुर्का उनके लिए रुकावट है। अतः वे उसे नहीं पहन सकतीं। दरअसल, कश्मीर में 1990 में आतंकवाद की शुरुआत के साथ ही कश्मीरी महिलाओं तथा युवतियों को कई बार बुर्का पहनाने की मुहिमें छेड़ी जा चुकी हैं। ये कई बार खूनी भी साबित हुई हैं और अंततः आतंकी गुटों को इसमें पराजय ही सहन करनी पड़ी है।

सिर्फ हार ही नहीं बल्कि इस्लामिक ड्रेस कोड तथा तालिबान टाइप कायदे कानून जबरदस्ती थोपने के अपने प्रयासों के कारण विदेशी आतंकी गुट जनसमर्थन भी खो चुके हैं। इतना जरूर था कि ताजा मुहिम को पुलिस किसी शरारती तत्व की कारस्तानी बताती है तो हिज्बुल मुजाहिदीन गुट इस मुहिम से अपने आप को अलग करने की बात करता है।

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