राम के लिए सत्ता का त्याग कर दिया था कल्याण सिंह ने

Webdunia
शनिवार, 21 अगस्त 2021 (23:23 IST)
यूं तो अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन में भाग लेने वाले कई नेताओं ने राजनीति के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई मगर बाबरी विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले कल्याण सिंह का नाम इस आंदोलन के साथ अमर हो गया।
 
‘बाबूजी’ के नाम से राजनीतिक गलियारों में पहचाने जाने वाले कल्याण ने 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद न सिर्फ सत्ता की बलि दी बल्कि इस मामले में सजा पाने वाले वह एकमात्र शख्सियत थे। कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम तेजपाल लोधी और माता का नाम श्रीमती सीता देवी था। उनका विवाह रामवती से हुआ। सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा से भाजपा सांसद हैं। 
 
ढांचा गिरने के बाद छोड़ा मुख्‍यमंत्री पद : वर्ष 1967 में, वह पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के लिए चुने गए और वर्ष 1980 तक सदस्य रहे। अतरौली विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले कल्याण 1991 और 1997 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए थे। जून 1991 में यूपी के मुख्यमंत्री बनाए गए सिंह के कार्यकाल के दौरान 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों में बाबरी ढांचा गिरा दिया, जिसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।
 
उन्होंने कहा था कि ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान हुई। मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने के बाद कल्याण सिंह को जेल भी जाना पड़ा था।
1993 के विधानसभा चुनाव में वह अतरौली के अलावा कासगंज से निर्वाचित हुए। इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन सरकार बनाई गई, जबकि विधान सभा में कल्याण नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में नजर आए। 
 
भाजपा छोड़ बनाई नई पार्टी : सिंह सितंबर 1997 से नवंबर 1999 के बीच एक बार फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 21 अक्टूबर 1997 को बसपा ने कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। दिसंबर 1999 में बीजेपी के साथ मतभेदों के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी और 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' का गठन किया।
 
वर्ष 2004 में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर वह भाजपा में वापस आ गए। वर्ष 2004 के आम चुनावों में वह बुलंदशहर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद नियुक्त किए गए। वर्ष 2009 में वह भाजपा से एक बार फिर अलग हो गए और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर एटा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

1000km दूर बैठा दुश्मन पलक झपकते तबाह, चीन-पाकिस्तान भी कांपेंगे, लैंड अटैक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण

उद्धव ठाकरे की 2 दिन में 2 बार चेकिंग से गर्माई महाराष्ट्र की सियासत, EC ने कहा- शाह और नड्डा की भी हुई जांच

महाराष्ट्र में विपक्ष पर बरसे मोदी, कहा अघाड़ी का मतलब भ्रष्टाचार के सबसे बड़े खिलाड़ी

Ayushman Card : 70 साल के व्यक्ति का फ्री इलाज, क्या घर बैठे बनवा सकते हैं आयुष्मान कार्ड, कैसे चेक करें पात्रता

बोले राहुल गांधी, भाजपा ने जितना पैसा अरबपति मित्रों को दिया उससे ज्यादा हम गरीब और किसानों को देंगे

सभी देखें

नवीनतम

LIVE: झारखंड में दिखा मतदान का उत्साह, राज्यपाल संतोष गंगवार ने डाला वोट

Weather Update: पहाड़ों पर बर्फबारी से मैदानी भागों में बढ़ी ठंड, दिल्ली एनसीआर में सुबह-शाम हल्की ठंड का एहसास

ट्रंप ने मस्क को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी, विवेक रामास्वामी को भी मिला अहम पद

Jharkhand Election: झारखंड में सत्ता का कौन बड़ा दावेदार, किसकी बन सकती है सरकार

Manipur: जिरिबाम में मेइती समुदाय के 2 पुरुषों के शव बरामद, 3 महिलाएं और 3 बच्चे लापता

अगला लेख
More