जम्मू। जम्मू-कश्मीर में बुधवार को विभिन्न पार्टियों द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद भी राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर दी। राज्यपाल ने इन 5 कारणों से लिया यह बड़ा फैसला...
व्यापक खरीद-फरोख्त होने और सरकार बनाने के लिए बेहद अलग राजनीतिक विचारधाराओं के विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए धन का लेन-देन होने की आशंका की रिपोर्टें हैं। ऐसी गतिविधियां लोकतंत्र के लिए हानिकारक हैं और राजनीतिक प्रक्रिया को दूषित करती हैं। इसलिए राज्यपाल ने विधानभा भंग कर दी।
विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं वाली पार्टियों के साथ आने से स्थाई सरकार बनना असंभव है। इनमें से कुछ पार्टियां तो विधानसभा भंग करने की मांग भी कर चुकी हैं। ऐसे में राज्यपाल ने किसी भी दल को मौका देने के बजाए विधानसभा भंग करने का फैसला किया।
दरअसल, पिछले कुछ वर्ष का अनुभव यह बताता है कि खंडित जनादेश से स्थाई सरकार बनाना संभव नहीं है। ऐसी पार्टियों का साथ आना जिम्मेदार सरकार बनाने की बजाए सत्ता हासिल करने का प्रयास है। बहुमत के लिए अलग-अलग दावे हैं। राज्य में ऐसी व्यवस्था की उम्र कितनी लंबी होगी इस पर भी संदेह था।
जम्मू कश्मीर की नाजुक सुरक्षा व्यवस्था के चलते सुरक्षा बलों के लिए स्थाई और सहयोगात्मक माहौल की जरूरत है। ये बल आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगे हुए हैं और अंतत: सुरक्षा स्थिति पर नियंत्रण पा रहे हैं।
क्या बोलीं महबूबा मुफ्ती : जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता ने बुधवार की रात कहा कि प्रदेश में एक महागठबंधन के विचार ने ही भाजपा को बेचैन कर दिया।
महबूबा ने ट्वीट किया, 'एक राजनेता के रूप में मेरे 26 वर्ष के करियर में मैंने सोचा था कि मैं सब कुछ देख चुकी हूं ...। मैं उमर अब्दुल्ला और अंबिका सोनी का तहेदिल से आभार व्यक्त करना चाहती हूं जिन्होंने हमें असंभव दिखने वाली चीज को हासिल करने में मदद की।'
उमर अब्दुल्ला ने भी उठाए फैसले पर सवाल : नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया कि उनकी पार्टी पांच महीनों से विधानसभा भंग किए जाने का दबाव बना रही थी। यह कोई संयोग नहीं हो सकता कि महबूबा मुफ्ती के दावा पेश किए जाने के कुछ ही मिनटों के भीतर अचानक विधानसभा को भंग किए जाने का आदेश आ गया।