श्रीनगर। कश्मीरियों की चिंता सीमाओं पर बढ़ते घुसपैठ के प्रयासों के साथ ही आतंकी हमलों में आने वाली तेजी से भी है। इसमें राज्य पुलिस की यह स्वीकारोक्ति तड़का लगाने में कामयाब रही है कि आतंकी युवाओं की भर्ती करने में कामयाब हो रहे हैं।
फिलहाल घुसपैठ और घुसपैठियों की संख्या पर सेना और राज्य पुलिस आपस में भिड़ रही हैं। सेना, पुलिस के दावों को नकारते हुए यह जतलाने की कोशिश कर रही है कि उस पार से घुसपैठ तेज हुई है और बहुतेरे आतंकी घुसने में कामयाब इसलिए हुए हैं, क्योंकि तारबंदी के बावजूद एलओसी पर लूप होल को बंद नहीं किया जा सकता है।
एलओसी से सटे इलाकों में होने वाले हमले और हत्याएं, सेना के दावों को बल जरूर देते हैं। यह बात अलग है कि पुलिस ऐसे हमलों के लिए राजनीतिक रंजिश के एंगल से भी सेाचती है। दोनों ही पक्ष इन हमलों और हत्याओं के प्रति जो भी दावा करते रहें, पर अब इस सच्चाई से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि राजनीतिक हत्याओं से कश्मीर फिर से इसलिए हिल गया है क्योंकि आम आदमी की सोच है कि जब राजनीतिज्ञ ही सुरक्षित नहीं हैं तो आम आदमी की सुरक्षा कैसे हो पाएगी।
ऐसे हमलों के बाद पंचों-सरपंचों के इस्तीफों से हुई किरकिरी से बचने की खातिर सरकार ने उनकी सुरक्षा का भार सेना के कांधों पर डालने की कोशिश कर लोगों में सुरक्षा की भावना जगाने का प्रयास किया है। मगर इस प्रयास पर पुलिस अधिकारियों के वे बयान पानी फेरते नजर आ रहे हैं जिसमें वे कह रहे हैं कि आतंकियों द्वारा कश्मीरी युवाओं की भर्ती बड़े पैमाने पर की जा रही है ताकि वे कश्मीर को फिर से पुराने ढर्रे पर ला सकें।
इस वर्ष के दौरान कश्मीर में आतंकी हिंसा को सबसे अधिक बताने वाले कश्मीर पुलिस के अधिकारी भी इसके प्रति रहस्योद्घाटन कर रहे हैं कि आतंकी भर्तियां करने में कामयाब रहे हैं। ऐसे में आम नागरिकों का दहशतजदा होना स्वभाविक है जो पहले से ही घुसपैठ और बढ़ते हमलों से चिंता में थे।
इस बीच जिस वादी-ए-कश्मीर में शांति लौटने के दावे किए जा रहे थे वहां उस पार से घुसपैठ और पहाड़ों से नीचे उतरते आतंकियों के साथ बढ़ती मुठभेड़ों से कश्मीर थर्राने लगा है। पिछले एक माह में हुई दर्जन से अधिक मुठभेड़ों ने सुरक्षाबलों की चिंता इसलिए बढ़ाई है क्योंकि यह मुठभेड़ें कुछ तालिबानियों तथा अल-कायदा सदस्यों से भी हुई थीं।
विशेषकर कुपवाड़ा और बारामुल्ला जिले में ताजा घुसपैठ करने वाले और सर्दी के कारण पहाड़ों से नीचे उतर आए आतंकियों से हुई मुठभेड़ें चिंता का विषय बनती जा रही हैं। चिंता का स्पष्ट कारण मुठभेड़ों में लिप्त आतंकियों की लड़ने की क्षमता है।
यह कहते हैं अधिकारी : ऐसी लड़ने की क्षमता से हमारा पहले कभी मुकाबला नहीं हुआ था।’ सेना प्रवक्ता भी दबे स्वर में कुछ ऐसा ही स्वीकारते हैं, लेकिन साथ ही कहते थे कि हमारे लिए आतंकी, आतंकी ही होता है चाहे वह किसी भी संगठन से संबंध रखता हो।
माना कि सेना के लिए तालिबान तथा अल-कायदा के कश्मीर में एक्टिव होने की खबर प्रत्यक्ष तौर पर अधिक चिंता का विषय नहीं हो लेकिन अन्य सुरक्षाबलों और कश्मीरियों के लिए यह परेशानी का सबब इसलिए बन रही है क्योंकि अगर अन्य सुरक्षाबल उनका मुकाबला करने में आपको सक्षम नहीं पा रहे तो दूसरी ओर कश्मीरी आने वाले दिनों में कश्मीर में पुनः बर्बादी की जंग के पुनजीर्वित होने की शंका से ग्रस्त हैं।