नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रों ने आज यहां अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) का औपचारिक शुभारंभ करते हुए विश्व समुदाय का आह्वान किया कि मानवता की भलाई के लिए एवं जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के वास्ते विश्व में सौर ऊर्जा के विकास के काम करने जरूरी हैं।
मोदी और मैक्रों ने यहां राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में करीब 47 देशों के नेताओं की मौजूदगी में संयुक्त राष्ट्र की संधि आधारित इस गठजोड़ का औपचारिक शुभारंभ किया जिसमें 61 देश शामिल हो चुके हैं और 32 देशों ने इसके फ्रेमवर्क करार का अनुमोदन भी कर दिया है। करीब चार घंटे के प्लेनरी सत्र में इन दोनों नेताओं के अलावा 32 देशों के नेताओं के संक्षिप्त संबोधन के बाद दिल्ली सोलर एजेंडा को जारी किया गया।
समारोह में 16 देशों के राष्ट्रपति, चार देशों के प्रधानमंत्री, दो देशों के उपराष्ट्रपति, तीन देशों के उपप्रधानमंत्री तथा अन्य 22 देशों के मंत्री स्तर के प्रतिनिधि शामिल हुए। अन्य 10 देशों के वरिष्ठ राजनयिकों ने शिरकत की। इस मौके पर भारत ने वैश्विक सौर ऊर्जा पहल में नेतृत्वकारी भूमिका लेते हुए विकासशील देशों को सौर ऊर्जा परियोजनाएं बनाने में मदद करने के लिए परियोजना निर्माण केन्द्र (पीपीएफ) के गठन और 15 देशों में 27 परियोजनाओं के लिए 1.393 अरब डाॅलर की मदद देने की घोषणा की।
मोदी ने इस मौके पर विश्व में सौर ऊर्जा तकनीक की उपलब्धता के अंतर को भरने के लिए सौर तकनीक मिशन के भी शुभारंभ की घोषणा करते हुए कहा कि भारत सौर तकनीक के अंतर को भरने के लिए सौर तकनीक मिशन भी शुरू करेगा। इस मिशन का अंतरराष्ट्रीय फोकस होगा और यह हमारी सारी सरकारी, तकनीकी तथा शैक्षणिक संस्थाओं को साथ मिलाकर सौर ऊर्जा क्षेत्र में शोध एवं विकास प्रयासों का नेतृत्व करेगा।
उन्होंने आईएसए की भावी रणनीति के बारे में खुलासा करते हुए कहा, 'मुझे यह घोषणा करते हुए भी ख़ुशी हो रही है कि हम आईएसए सदस्यों को प्रत्येक वर्ष सौर ऊर्जा में 500 लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। हमने पूरे विश्व में 14.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर के 13 सौर परियोजनाएं तो पूरी कर लीं हैं या उनका क्रियान्वयन किया जा रहा है।
भारत 15 अन्य विकासशील देशों में 27 अन्य परियोजनाओं के लिए 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता देने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि हमने पीपीएफ की स्थापना की है जो व्यवहार्य परियोजनाओं को डिजाइन करने के लिए सदस्य देशों को परामर्श सेवाएं देगा।
मोदी ने सौर उर्जा के क्षेत्र में विकास के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि ऐसे द्वीप समूह और देश हैं, जिनके अस्तित्व को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सीधा-सीधा ख़तरा है। तीसरी बात यह है कि सौर ऊर्जा केवल प्रकाश के लिए ही नहीं बल्कि अन्य बहुत से प्रयोगों-यातायात, स्वच्छ रसोई, कृषि में सौर पम्प और चिकित्सा में भी उतनी ही उपयोगी हो सकती है।
उन्होंने कहा कि सौर उर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए तकनीक की उपलब्धता और विकास, आर्थिक संसाधन, कीमतों में कमी, भंडारण तकनीक का विकास, वृहद स्तर पर उत्पादन और नवान्वेषण के लिए पूरा पारिस्थितकीय तंत्र का होना ज़रुरी है!उन्होंने कहा कि सौर उर्जा मानवीय ऊर्जा जरूरतों को किफायती एवं प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम है।
उन्होंने कहा कि विश्व की हर परंपरा ने सूर्य को महत्व दिया है। भारत में वेदों ने हज़ारों साल पहले से सूर्य को विश्व की आत्मा माना है। आज जब हम जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौती से निपटने का रास्ता ढूंढ रहे हैं तो हमें इस प्राचीन दर्शन के संतुलन और समग्र दृष्टिकोण की ओर देखना होगा।
उन्होंने कहा, 'एक ओर बहुत से देश हैं जिनमें सूरज साल भर चमकता है परन्तु संसाधनों और तकनीक का अभाव सौर ऊर्जा के इस्तेमाल में आड़े आता है, रूकावट बनता है।' प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत में दुनिया का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम शुरू हुआ है। हम 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करेंगे जिसमें से 100 गीगावाट बिजली सौर ऊर्जा से होगी। हमने इसमें से 20 गीगावाट सौर ऊर्जा का लक्ष्य हासिल कर लिया है।'
मोदी ने सौर मिशन के लिए विश्व समुदाय को 10 सूत्रीय कार्ययोजना भी दी। तो मुझे विश्वास है कि निजी दायरों से बाहर निकलकर एक परिवार की तरह हम उद्देश्यों और प्रयासों में एकता और एकजुटता ला सकेंगे।' उन्होंने कहा कि नवंबर 2015 में पेरिस में जो बीज पड़े थे आज उनके अंकुर निकल आए हैं। उन्होंने कहा, 'आईएसए का यह नन्हा पौधा आप सभी के सम्मिलित प्रयास और प्रतिबद्धता के बिना रोपा ही नहीं जा सकता था। इसलिए मैं फ्रांस का और आप सबका बहुत आभारी हूँ।'
इस मौके पर मैक्रों ने कहा कि वह और मोदी इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि सौर ऊर्जा के इस मिशन के परिणाम जमीन पर उतारने के काम में गति लाई जाये और लोगों को प्रेरित किया जाये। उन्होंने कहा कि दुनिया को सौर ऊर्जा के व्यावहारिक उपयोग को बढ़ावा देकर हमें इस पृथ्वी को अपने बच्चों के लिए उनकी मौजूदगी में ही उनके रहने लायक बनाना है।
उन्होंने कहा कि दुनिया में अर्थव्यवस्थाएं बदल गई हैं और नागरिकों की जिंदगी बदल रही है। हमारे पर एक ही धरती है जिसे बचाना है। उन्होंने विकासशील देशों को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने पर बल देते हुए कहा कि उनके पास संसाधन एवं क्षमता नहीं हैं और उनकी राह के ये रोड़े हमें हटाना है। इसके लिए बहुत बड़ी की राशि की जरूरत है।
मैक्रों ने कहा कि आईएसए को सौर ऊर्जा के डाटा बैंक बनाने, पारदर्शी वित्त पोषण का प्लेटफॉर्म बनाने तथा उसके गारंटी के औज़ार के रूप में स्थापित करने के लिए विश्व बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं से रियायती ऋण सुलभ कराने के लिए काम करना होगा। उन्होंने दुनिया में अक्षय ऊर्जा के समर्थन में संघर्ष करने वालों की क्षमता का विकास करने और 'सोलर मामाज़' बनाने का भी आह्वान किया।
उन्होंने सौर ऊर्जा के विकास को जलवायु न्याय के लिए भी महत्वपूर्ण करार दिया। इससे पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। प्लेनरी सत्र में अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष एवं रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे, ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर जनरल सर पीटर कॉसग्रोव, बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल हमीद, लंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना के अलावा गैबों, माली, नाइजर, नौरू टोगो, गुयाना, फिजी, तुवालु, बुरकीना फासो, घाना, वानुआतु, कोस्ट आइवरी, चाड, जिबूती, सेशेल्स आदि आदि के नेताओं ने भी संबोधित किया। (भाषा)