नई दिल्ली। बेमौसम बारिश, आपूर्ति में बाधा और कोविड-19 महामारी के चलते लगे लॉकडाउन और अन्य चिंताओं ने खुदरा महंगाई दर को 2020 में भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर ही रखा। अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार धीमी होने के बीच इस स्थिति के कम से कम निकट अवधि में बरकरार रहने की संभावना है।
सालभर खाद्य वस्तुओं के दामों में तेजी ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति की दर को ऊपर बनाए रखा। मार्च के महीने में 5.91 प्रतिशत के स्तर को छोड़कर यह सालभर 6.58 से 7.61 प्रतिशत के दायरे में रही। विशेषज्ञों का मत है कि चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति के करीब 6.3 प्रतिशत पर बनी रहेगी।
आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी परेशानियों के बीच थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति मई में शून्य से 3.37 प्रतिशत से नीचे के निम्नतम स्तर और जनवरी में 3.1 प्रतिशत के उच्च स्तर पर रही। कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन के चलते चरमराई देश की अर्थव्यवस्था में फिर से सुधार के शुरुआती संकेत दिखने लगे हैं। हालांकि 2020 में सरकार ने अप्रैल और मई के खुदरा मुद्रास्फीति आंकड़े भी जारी नहीं किए। इसकी वजह लॉकडाउन के चलते अधिकारियों का सर्वेक्षण के लिए क्षेत्र में नहीं पहुंच पाना रही।
ग्राहकों को टमाटर, प्याज और आलू की खरीद के लिए भी जेब से ज्यादा रकम देनी पड़ी। हालांकि इनकी कीमतों को लेकर केंद्र सरकार भी चिंतित है इसलिए उसने 2 साल पहले 'ऑपरेशन ग्रीन्स' पहल की शुरुआत की है। इसका मकसद देशभर में वाजिब दाम पर इनकी पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना है। भारतीय रसोइयों में इस्तेमाल होने वाली इन 3 प्रमुख सब्जियों की कीमत 60 से 80 रुपए प्रति किलोग्राम के बीच रही। इसकी वजह बेमौसम बारिश के चलते इनका उत्पादन प्रभावित होना और लॉकडाउन से आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होना रही।
रिजर्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक खरीफ की बंपर पैदावार के चलते अनाजों के दाम में कमी आ सकती है लेकिन सर्दियों की सब्जियों और अन्य खाद्य वस्तुओं के दाम ऊंचे बने रहने की संभावना है। (भाषा)