जांबाज जवान, हिमस्खलन के बावजूद पोस्ट छोड़ने को तैयार नहीं सेना

सुरेश एस डुग्गर
बुधवार, 8 जनवरी 2020 (15:52 IST)
जम्मू। जम्मू संभाग में पुंछ जिले में एलओसी की एक दुर्गम सीमा चौकी शंख पर हुए हिमस्खलन में मौतें हुई हैं। आधिकारिक पुष्टि एक पोर्टर की जान जाने की है, जबकि गैर सरकारी तौर पर कहा जा रहा है कि कुछ जवान अभी भी बर्फ में लापता हैं।

वैसे यह कोई पहली हिमस्खलन की घटना नहीं है एलओसी पर बल्कि सेना ऐसी घटनाओं से सर्दियों में दो चार होती रहती है पर बावजूद इसके वह दुर्गम चौकियों से अपने जवानों को हटाने को राजी इसलिए नहीं है क्योंकि पाक सेना के वादों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

इस घटना में सेना के एक पोर्टर की जान चली गई। वहीं कई अन्य घायल हो गए हैं। मृतक पोर्टर की पहचान जफर इकबाल के रूप में हुई है। जानकारी मिलते ही सेना ने बचाव कार्य शुरू किया था। कड़ी मशक्कत के बाद जवानों ने जफर को बर्फ से बाहर निकाला, लेकिन तब तक उनकी जान चली गई थी। वहीं दो अन्य घायलों को बचाने में सेना को सफलता मिली। घायलों को उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

पाकिस्तान से सटी एलओसी पर दुर्गम स्थानों पर हिमस्खलन के कारण होने वाली सैनिकों की मौतों का सिलसिला कोई पुराना नहीं है बल्कि कारगिल युद्ध के बाद सेना को ऐसी परिस्थितियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। कारगिल युद्ध से पहले कभी कभार होने वाली इक्का दुक्का घटनाओं को कुदरत के कहर के रूप में ले लिया जाता रहा था पर अब कारगिल युद्ध के बाद लगातार होने वाली ऐसी घटनाएं सेना के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही हैं।

वर्ष 2019 में 18 जवानों की मौत बर्फीले तूफानों के कारण हुई है, जबकि 2018 में 25 जवानों को हिमस्खलन लील गया था। अधिकतर मौतें एलओसी की उन दुर्गम चौकियों पर घटी थीं, जहां सर्दियों के महीनों में सिर्फ हेलीकॉप्टर ही एक जरिया होता है, पहुंचने के लिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भयानक बर्फबारी के कारण चारों ओर सिर्फ बर्फ के पहाड़ ही नजर आते हैं और पूरी की पूरी सीमा चौकियां बर्फ के नीचे दब जाती हैं।

हालांकि ऐसी सीमा चौकियों की गिनती अधिक नहीं हैं पर सेना ऐसी चौकियों को कारगिल युद्ध के बाद से खाली करने का जोखिम नहीं उठा रही है। दरअसल, कारगिल युद्ध से पहले दोनों सेनाओं के बीच मौखिक समझौतों के तहत एलओसी की ऐसी दुर्गम सीमा चौकियों तथा बंकरों को सर्दी की आहट से पहले खाली करके फिर अप्रैल के अंत में बर्फ के पिघलने पर कब्जा जमा लिया जाता था। ऐसी कार्रवाई दोनों सेनाएं अपने अपने इलाकों में करती थीं।

अब ऐसा नहीं है। कारण स्पष्ट है। कारगिल का युद्ध भी ऐसे मौखिक समझौते को तोड़ने के कारण ही हुआ था जिसमें पाक सेना ने खाली छोड़ी गई सीमा चौकियों पर कब्जा कर लिया था। नतीजा सामने है। कारगिल युद्ध के बाद ऐसी चौकियों पर कब्जा बनाए रखना बहुत भारी पड़ रहा है। सिर्फ खर्चीली ही नहीं बल्कि औसतन हर साल कई जवानों की जानें भी इस जद्दोजहद में जा रही हैं।

दरअसल, इस बार बर्फबारी ने उस तारबंदी को बुरी तरह से कई इलाकों में क्षतिग्रस्त कर दिया है, जो पाकिस्तानी क्षेत्र से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए लगाई गई थी। हालांकि यह कोई पहला अवसर नहीं था जब तारबंदी को बर्फबारी ने क्षति पहुंचाई हो बल्कि हर साल होने वाली बर्फबारी तारबंदी को नुकसान पहुंचाती है और फिर सेना के जवान उसे नए सिरे से खड़ा करते हैं।

सेना प्रवक्ता का कहना था कि फिलहाल इसके प्रति अंदाजा लगाना कठिन है कि तारबंदी के कितने किमी के हिस्से को क्षति पहुंची है क्योंकि एलओसी के ऊंचाई वाले इलाकों में फिलहाल बर्फबारी रुकी नहीं थी तथा वहां तक सेना के जवान पहुंचने में कामयाब नहीं हुए थे।

इतना जरूर था कि बर्फबारी के कारण क्षतिग्रस्त हुर्द तारबंदी सेना के लिए मुसीबत इसलिए बन गई है क्योंकि हर बार उसका यह अनुभव रहा है कि आतंकी टूटी हुई तारबंदी का सहारा लेकर घुसने की कोशिश करते रहते हैं। यही कारण है कि तारबंदी के क्षतिग्रस्त होने के बाद सेना को एलओसी पर चौकसी तथा सतर्कता को और बढ़ाना पड़ा है क्योंकि पूर्व में भी पाक सेना इन्हीं परिस्थितियों का लाभ उठाने की कोशिश करती रही है।

भारी बर्फबारी के बावजूद सेना एलओसी की उन पोस्टों से अपने जवानों को हटाने को तैयार नहीं थी जो 10-15 फुट बर्फ के नीचे दब गई हैं। रक्षा प्रवक्ता के मुताबिक असल में तारबंदी भी बर्फ के नीचे दफन हो गई है और इन पोस्टों से सैनिकों को हटा लिए जाने का मतलब साफ होता कि घुसपैठियों को कश्मीर की एलओसी पर दूसरा कारगिल तैयार करने का मौका प्रदान करना।

अभी तक हुई हिमस्खलन की कुछ प्रमुख घटनाएं :

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