जम्मू एयर फ़ोर्स के टेक्निकल एरिया में एक ज़ोरदार रहस्यमय धमाका हुआ है। भारतीय वायु सेना ने इस घटना पर ट्वीट किया है जिसमें बताया गया है कि "रविवार की सुबह जम्मू एयर फ़ोर्स स्टेशन के टेक्निकल एरिया में कम तीव्रता के दो धमाके हुए। एक धमाके के कारण एक इमारत की छत को नुक़सान पहुंचा है वहीं दूसरा धमाका खुली जगह में हुआ।"
वायु सेना ने दूसरे ट्वीट में बताया है कि इस घटना में किसी सामान को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा है और नागरिक एजेंसियों के साथ जांच जारी है। बताया गया है कि ये धमाका देर रात दो बजे, टेक्निकल एरिया के अंदर हुआ जिसे भारतीय वायु सेना इस्तेमाल करती है।
बीबीसी के सहयोगी पत्रकार मोहित कंधारी ने बताया है कि जम्मू एयरपोर्ट की हवाई पट्टी और एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल भारतीय वायु सेना के नियंत्रण में है जिसे आम यात्रियों की उड़ान के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। बताया गया है कि फ़ॉरेंसिक टीम ने घटनास्थल की जाँच कर, वहाँ से कुछ नमूने एकत्र किये हैं।
एनआईए की टीम मौक़े पर पहुंच चुकी है। इस घटना के बाद जम्मू और कश्मीर सीमा पर सुरक्षा को रेड-अलर्ट कर दिया गया है। इसके साथ ही पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी सुरक्षा को चाक-चौबंद कर दिया गया है और चेक-प्वाइंट्स पर पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है।
न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि विस्फोटों को अंजाम देने के लिए दो ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। एएनआई ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि इस हादसे में दो कर्मी मामूली रूप से घायल हुए हैं।
एजेंसी ने रक्षा मंत्रालय के हवाले से लिखा है कि घटना के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वाइस एयर चीफ़, एयर मार्शल एचएस अरोड़ा से बात की। स्थिति का जायज़ा लेने के लिए एयर मार्शल विक्रम सिंह जम्मू पहुंच रहे हैं।
बीबीसी संवाददाता जुगल पुरोहित के मुताबिक़, अभी यह बहुत जल्दबाज़ी होगी कि इस हमले पर कोई टिप्पणी की जाए लेकिन जैसा की एयरफ़ोर्स ने अपने ट्वीट में टेक्निकल एरिया का ज़िक्र किया है, वह चिंता की बात है।
जुगल कहते हैं कि यह महत्वपूर्ण इस लिहाज़ से है कि टेक्निकल एरिया एयरफ़ोर्स का सेंटर है या यूं कहें सबसे अहम क्षेत्र होता है क्योंकि वहीं पर सारे पुर्जे, एयरक्राफ़्ट और हेलीकॉप्टर होते हैं। वहीं पर सारे हार्डवेयर रखे जाते हैं। एक एयरफ़ोर्स बेस के दो मुख्य धड़े होते हैं, एक तो टेक्निकल एरिया और दूसरा एडमिनिस्ट्रेटिव एरिया। इस लिहाज़ से यह हमला बहुत गंभीर है। इसे सिर्फ़ दो छोटे धमाके के तौर पर नहीं देखा जा सकता है।
जुगल पुरोहित पठानकोट हमले का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब वहां हमला हुआ था तो वहां के सीनियर अधिकारियों ने कहा था कि हम एयरफ़ोर्स हैं और हमें हमारे इलाक़ों को हवाई हमलों से बचाना है।
जुगल कहते हैं अभी कुछ जगहों से जो ख़बरें आ रही हैं उनमें कई में कहा जा रहा है कि यह ड्रोन हमला है, अगर ऐसा है तो यह बेहद गंभीर बात है।
जम्मू एयरफ़ोर्स स्टेशन इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
जम्मू में बीबीसी के सहयोगी मोहित कंधारी के मुताबिक़, जम्मू हवाई अड्डा एक घरेलू हवाई अड्डा है जो भारत और पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा से सिर्फ़ 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस क्षेत्र में यह भारतीय वायु सेना की रणनीतिक संपत्तियों में से एक है क्योंकि यहीं से विभिन्न इलाक़ों से संबंध और आपूर्ति संचालित की जाती है। माल वाहन के लिए इस्तेमाल होने वाले ज़्यादातर हेलीकॉप्टर और हताहत या आपदा की स्थिति में राहत पहुंचाने के लिए ज़्यादातर ऑपरेशन भी इसी बेस से संचालित किये जाते हैं।
यह स्टेशन भारतीय वायुसेना के सबसे पुराने हवाई अड्डों में से एक है और यहीं पर 10 मार्च 1948 को नंबर 1 विंग का गठन किया गया था। यह विंग गर्मियों के दौरान श्रीनगर से और सर्दियों के दौरान जम्मू से संचालित होता था।
25 जनवरी 1963 को विंग कमांडर जे की कमान में जम्मू में नंबर 23 विंग का गठन किया गया था। एंड्रयूज और नंबर 1 विंग को स्थायी तौर पर श्रीनगर शिफ़्ट कर दिया गया।
आज़ादी से पहले, सियालकोट-जम्मू रेलवे लाइन जहां समाप्त होती थी उसी जगह पर आज जम्मू एयरफोर्स स्टेशन है। जम्मू एयर फोर्स स्टेशन हेलीकॉप्टर्स के ठहरने की सबसे महत्वपूर्ण जगह है।
शुरुआत में तो सिर्फ़ एमआई-4 हेलीकॉप्टर ही यहां थे लेकिन उसके बाद चेतक और अब 130 हेलीकॉप्टर यूनिट के एमआई-17 हेलीकॉप्टर के लिए भी यही पड़ाव है।
जम्मू-कश्मीर की चुनौती भरी परिस्थितियों में ये हेलीकॉप्टर ही मदद का सबसे भरोसेमंद माध्यम हैं। दुनिया के 'सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र' सियाचिन ग्लेशियर का रख-रखाव इन्हीं हेलीकॉप्टर्स की मदद से सुनिश्चित किया जाता है। सियाचिन ग्लेशियर की सुरक्षा में इतना महत्व रखने के कारण ही इस स्टेशन को "ग्लेशियर के संरक्षक" का नाम दिया गया है।
इस क्षेत्र में जम्मू एयर फ़ोर्स स्टेशन हमेशा से भारतीय सेना के लिए मदद मुहैया कराने का मुख्य ज़रिया रहा है। वो चाहे करगिल ऑपरेशन के दौरान मोर्चे पर सैनिकों को रसद सहायता देना रहा हो या फिर ज़ख्मी सैनिकों को वापस लाना।