नई दिल्ली। अफगानिस्तान में शांति बहाली के प्रयासों के तहत भारत शुक्रवार को पहली बार आतंकी संगठन तालिबान के साथ बातचीत की मेज पर बैठेगा। तीन दशकों से युद्ध और आतंक का दंश झेल रहे अफगानिस्तान के भविष्य के लिहाज से ये बहुपक्षीय बैठक बेहद महत्वपूर्ण है। इस बैठक में तालिबान के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे।
इस खबर को सुनकर उमर अब्दुल्ला ने तंज कसा है कि यदि मोदी सरकार को बातचीत की मेज पर तालिबान कबूल है तो जम्मू और कश्मीर में केंद्र मुख्यधारा से इतर दूसरे तत्वों से बात क्यों नहीं कर सकती है। उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, 'ऐसी बैठक जहां की तालिबान भागीदारी है, इसमें मोदी सरकार को अपना गैर आधिकारिक प्रतिनिधित्व मंजूर है तो सरकार जम्मू और कश्मीर में भी मुख्यधारा से इतर काम कर रहे संगठनों से केन्द्र गैर आधिकारिक बात क्यों नहीं करती है।'
हालांकि रूस में हो रही इस बैठक में अफगानिस्तान में शांति और स्थायित्व के मुद्दे पर भारत को भी चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया है। भारत ने गुरुवार को कहा कि वह अफगानिस्तान पर रूस द्वारा आयोजित की जा रही बैठक में 'गैर-आधिकारिक स्तर' पर भाग लेगा। अफगानिस्तान में भारत के राजदूत रह चुके अमर सिन्हा और पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त टीसीए राघवन इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
रूसी विदेश मंत्रालय ने पिछले सप्ताह कहा था कि अफगानिस्तान पर मास्को- प्रारूप बैठक नौ नवंबर को होगी और अफगान तालिबान के प्रतिनिधि उसमें भाग लेंगे। बैठक में भारत की भागीदारी के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि हम अवगत हैं कि रूस नौ नवंबर को मास्को में अफगानिस्तान पर एक बैठक की मेजबानी कर रहा है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत अफगानिस्तान में शांति और सुलह के सभी प्रयासों का समर्थन करता है जो एकता और बहुलता को बनाए रखेगा तथा देश में स्थिरता और समृद्धि लाएगा। अफगानिस्तान में भारत के प्रयासों से ही स्कूल, अस्पताल, बस और नव-निर्माण के अन्य कार्य चल रहे हैं। भारत चाहता है कि यह देश फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो।
गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन भारत दौरे पर आए थे। इस दौरान पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कई वैश्विक मुद्दों पर बातचीत की थी। उसके बाद ही यह बैठक आयोजित की जा रही है।