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कोरोना की कराह के बीच भारत कैसे बना वैश्विक विकास का तेज गति इंजन?

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राम यादव

, शनिवार, 4 फ़रवरी 2023 (10:06 IST)
भारत की सरकार का ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के अर्थिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि भारत, इस समय अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आकाश में एक चमकते हुए तारे के समान है। भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी के दिन संसद के बजट-सत्र के समक्ष आर्थिक सर्वे प्रस्तुत करते हुए जब यह कहा कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की विकास दर इस नए वर्ष में भी दुनिया की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं जैसी रहेगी, तब बहुतों ने इसे 'अपने मुंह मियां मिट्ठू' बनने जैसी ही एक आत्मप्रशंसा से अधिक महत्व नहीं दिया होगा।
 
यह नहीं सोचा होगा कि पिछले 3 वर्षों से पूरी दुनिया कोविड-19 नाम की एक भयंकर महामारी की मार से पहले ही कराह रही थी। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने अपूर्व ऊर्जा संकट और महंगाई को भी न्योता दे दिया। पश्चिमी जगत के सबसे धनी और साधन-संपन्न देश भी इस तिहरी मार से उबर नहीं पा रहे हैं।
 
निर्मला सीतारमण के अनुसार वित्त वर्ष 2023 में भारत की आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत रहेगी। भारत की अपनी आर्थिक विकास दर, वैश्विक विकास दर के कारकों से पूरी तरह मुक्त नहीं रह सकती इसलिए अगले वर्ष यानी 2024 में हो सकता है कि वह किंचित घटकर 6 से 6.8 प्रतिशत के बीच रहे।
 
भारतीय वित्त मंत्रालय के आकलनों और अमेरिका में वॉशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के भारत संबंधी आकलनों में कुछ अंतर जरूर हैं, पर बहुत कम। मुद्राकोष ने भी 31 जनवरी को ही अपना वैश्विक आकलन प्रकाशित किया। उसका कहना है कि भारत का GDP, वर्ष 2022 के 6.8 प्रतिशत से घटकर 2023 में 6.1 प्रतिशत हो जाएगा किंतु 2024 में बढ़कर पुन: 6.8 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।
 
दोनों के बीच विरोधाभास इतना ही है कि 2023 के लिए मुद्राकोष का आकलन भारतीय आकलन से कुछ कम है जबकि 2024 के लिए भारतीय आकलन मुद्राकोष के आकलन से कुछ कम है। अपने नए वैश्विक आकलन में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का कहना है कि 2022 में औसत वैश्विक विकास दर 3.4 प्रतिशत रही लेकिन 2023 में उसके घटकर 2.9 प्रतिशत रह जाने का डर है। इसे देखते हुए भारत की इससे दोगुनी विकास दर को वह विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए एक गतिदायक इंजन की तरह मानता है।
 
मुद्राकोष के शब्दों में बाहरी आंधियों के होते हुए भी भारत में घरेलू मांग का लचीलापन बढ़ रहा है। मुद्राकोष के शोध-निदेशक पीयेर-ओलिवर गोरिंशा ने कहा कि भारत एक चमकीला बिंदु बना हुआ है। वैश्विक विकास में इस साल भारत और चीन का हिस्सा आधे के बराबर होगा जबकि अमेरिका और यूरोप का मिला-जुला योगदान भी मात्र 10वें हिस्से के बराबर रहेगा। मुद्राकोष का मानना है कि चीन की विकास दर इस साल 4.4 प्रतिशत से बढ़कर 5.2 प्रतिशत हो जाएगी।
 
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का अनुमान है कि 2023 में विश्व के कम विकसित विकासशील देशों की औसत विकास दर 4 प्रतिशत और 2024 में 4.2 प्रतिशत रहेगी। 80 प्रतिशत से अधिक देशों में महंगाई दर इस वर्ष भी उस दर से अधिक ही रहेगी, जो कोविड-19 महामारी फैलने से पहले हुआ करती थी। सभी देशों के केंद्रीय बैंक महंगाई से लड़ने और यूक्रेन के विरुद्ध रूसी युद्ध के परिणामों से निपटने में इस वर्ष भी व्यस्त रहेंगे।
 
2023 में वैश्विक औसत महंगाई दर कुछ घट सकती है, लेकिन तब भी 6.6 प्रतिशत से कम नहीं होगी। इस महंगाई को नियंत्रण में लाने के लिए देशों के केंद्रीय बैंक अपनी ब्याज दरें बढ़ाने का प्रयास करेंगे जिसका एक उलटा परिणाम यह हो सकता है कि बाजार में खरीदारी घटने लगे।
 
27 देशों वाले यूरोपीय संघ के जिन 20 देशों में यूरो साझी मुद्रा होने के कारण उन्हें 'यूरो जोन' कहा जाता है, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का आकलन है कि इन देशों में GDP बढ़ने की दर इस साल औसतन मात्र 0.7 प्रतिशत रहेगी जबकि पिछले वर्ष यह दर 3.5 प्रतिशत थी।
 
यूरोप के लगभग सभी देश तेल, गैस और बिजली की महंगाई से बुरी तरह परेशान हैं। ऊर्जा के संकट ने विकास दर को ठप कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष इसी को कुछ कम सफलता नहीं मानता कि इन देशों की अर्थव्यवस्था चरमराई नहीं और वे मंदी के शिकार नहीं बने।
 
तब भी यूरोप में कम से कम एक ऐसा नामी देश अवश्य है जिसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष आर्थिक मंदी का शिकार होता देख रहा है। उसका नाम है ग्रेट ब्रिटेन। विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की सूची में ब्रिटेन अकेला ऐसा देश है जिसके बारे में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने उसका GDP 0.6 प्रतिशत घट जाने की भविष्यवाणी की है।
 
ब्रिटेन में इन दिनों महंगाई रोकने और वेतन आदि बढ़ाने के लिए हर दिन भारी प्रदर्शन हो रहे हैं। ब्रिटेन की हालत इसलिए भी खस्ता है कि 3 वर्ष पूर्व यूरोपीय संघ से अलग हो जाने पर वहां धन-धान्य से परिपू्र्ण जिन लहलहाते सब्जबागों के सपने दिखाए गए थे, वे बाग ही नदारद हैं।
 
प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी बोरिस जॉन्सन की उसी टोरी पार्टी के नेता हैं जिसने ब्रिटिश जनता को यूरोपीय संघ से अलग होने के ब्रेक्सिट का सुनहला सपना दिखाया था। जनता के एक बड़े वर्ग का माथा अब ठनक रहा है कि उसे झांसा देकर ठगा गया है।
 
Edited by: Nrapendra Gupta

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