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आजाद भारत का पहला 'तिरंगा' लालटेन की रोशनी में सिला गया

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हिमा अग्रवाल

, रविवार, 7 अगस्त 2022 (17:43 IST)
साल 2022 में देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर 'अमृत महोत्सव' (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है।। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिन हर घर तिरंगा लहराने की अपील की है। देश की आन-बान-शान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से रंगा है, इसलिए तिरंगा कहलाता है। भारत में पहला तिरंगा झंडा बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है।

16 अगस्त 1947 को आजाद भारत में पहला तिरंगा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लालकिले पर फहराकर सलामी दी। लालकिले के ललाट पर फहरने वाले इस तिरंगे का निर्माण देश की क्रांतिधरा मेरठ में हुआ। खादी का तिरंगा ध्वज रातोंरात मेरठ के गांधी आश्रम में नत्थे सिंह ने सिला था। तिरंगे की रूपरेखा भले ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिंगली वेंकैया ने तैयार की थी, मगर आजाद भारत में राष्ट्रध्वज को अपने हाथों से तैयार करने वाले सबसे पहले व्यक्ति यूपी के नत्थे सिंह ही थे।

मेरठ के सुभाष नगर के रहने वाले नत्थे सिंह का जन्म 1925 में हुआ था। जिस समय उन्होंने आजाद भारत के लिए पहला तिरंगा सिला था उस समय उनकी उम्र 22 वर्ष की थी, तब से नत्थे सिंह जीवंतपर्यंत तिरंगा सिलते रहे। 2019 में 94 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया, अब उनका पूरा परिवार और बेटा रमेशचंद्र तिरंगा झंडा सिलने के काम में दिन-रात जुटे हैं।
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रमेश की पत्नी और दो बेटियां भी तिरंगा बनाने में सहयोग कर रही हैं। रमेशचंद्र गौरवान्वित होते हुए कहहते हैं कि देशप्रेम और तिरंगा झंडा सम्मान को देखकर हमने भी तय कर लिया कि अब हम भी तिरंगा झंडा सिलेंगे और पिता की इस परिपाटी को आगे बढ़ाएंगे।

नत्थे सिंह के बेटे रमेश अपने पिता की स्मृतियों को याद करते हुए कहते हैं कि उनके पिता ने बताया था कि जब देश आजाद हुआ और संसद भवन में मीटिंग हुई। मीटिंग के बाद क्षेत्रीय गांधी आश्रम, मेरठ को पहली बार तिरंगा बनाने का काम सौंपा गया।

यहां पर आजाद भारत के पहले राष्ट्रध्वज को बनाने की जिम्मेदारी नत्थे सिंह को ही दी गई थी।उस समय पिता में देशप्रेम की भावना इतनी गाढ़ी थी कि राष्ट्रीय ध्वज पूरे अनुष्ठान के साथ बनाया जाता। झंडा हमेशा सम्मान से मलमल के कपड़े में लपेटकर लकड़ी के नए बक्से में रखा जाता था। जब तिरंगा भेजा जाता था तो फूलों के बॉक्स में सजाकर भेजा था।

नत्थे सिंह के बेटे रमेश कहते हैं कि उस समय लाइट नहीं थी, आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पर्याप्त मात्रा में लालटेन के अंदर घासलेट भी नहीं था। लालटेन जलाने के लिए पिताजी ने पड़ोसियों के घर से मिट्टी का तेल लिया। लालटेन की रोशनी में पहला खादी का झंडा सिला गया। आजाद देश का पहला तिरंगा लालटेन की रोशनी में तैयार हुआ और आज बाजार में सिलाई की ऑटोमेटिक मशीनें आ गई हैं।

बड़े पैमाने पर सिलाई मशीन पर कारीगर झंडा बना रहे हैं, एक कुटीर उद्योग की तरह यह व्यवसाय फलफूल रहा है। सरकारी, प्राइवेट संस्थाओं में, स्कूल-कॉलेज, राष्ट्रीय पर्व के अतिरिक्त धार्मिक आयोजनों, कांवड़ यात्रा में भी तिरंगे की मांग बढ़ रही है।

केंद्र सरकार की अपील 'हर घर तिरंगा योजना' को परवान चढ़ाने के लिए पूरे देश में स्वयंसेवी संस्थाएं, सरकारी मशीनरी जुटी हुई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी भी अमृत महोत्सव को सफल बनाने के लिए प्रयासरत हैं, जगह-जगह तिरंगा यात्राएं निकाली जा रही हैं, ऐप बनाकर 'हर घर तिरंगा' के लिए रजिस्ट्रेशन खुले हुए हैं।

ग्रामीणों को लुभाने के लिए अधिकांश डीएम और अन्य अधिकारी ब्लॉक स्तर पर झंडा लगाने की प्रतियोगिता आयोजित कर रहे हैं। 'हर घर तिरंगा' और 'अमृत महोत्सव' के चलते बाजार में तिरंगे झंडे की मांग बढ़ गई है, जिसके चलते लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

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